ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 24/ मन्त्र 12
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - ब्रह्मणस्पतिरिन्द्रश्च
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
विश्वं॑ स॒त्यं म॑घवाना यु॒वोरिदाप॑श्च॒न प्र मि॑नन्ति व्र॒तं वा॑म्। अच्छे॑न्द्राब्रह्मणस्पती ह॒विर्नोऽन्नं॒ युजे॑व वा॒जिना॑ जिगातम्॥
स्वर सहित पद पाठविश्व॑म् । स॒त्यम् । म॒घ॒ऽवा॒ना॒ । यु॒वोः । इत् । आपः॑ । च॒न । प्र । मि॒न॒न्ति॒ । व्र॒तम् । वा॒म् । अच्छ॑ । इ॒न्द्रा॒ब्र॒ह्म॒ण॒स्प॒ती॒ इति॑ । ह॒विः । नः॒ । अन्न॑म् । युजा॑ऽइव । वा॒जिना॑ । जि॒गा॒त॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वं सत्यं मघवाना युवोरिदापश्चन प्र मिनन्ति व्रतं वाम्। अच्छेन्द्राब्रह्मणस्पती हविर्नोऽन्नं युजेव वाजिना जिगातम्॥
स्वर रहित पद पाठविश्वम्। सत्यम्। मघऽवाना। युवोः। इत्। आपः। चन। प्र। मिनन्ति। व्रतम्। वाम्। अच्छ। इन्द्राब्रह्मणस्पती इति। हविः। नः। अन्नम्। युजाऽइव। वाजिना। जिगातम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 24; मन्त्र » 12
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
विषय - शक्ति व ज्ञान का समन्वय
पदार्थ -
१. 'इन्द्र' शक्ति का देवता है और 'ब्रह्मणस्पति' ज्ञान का । हे (मघवाना) = ऐश्वर्यवाले इन्द्राब्रह्मणस्पती=इन्द्र और ब्रह्मणस्पति (युवोः) = आप दोनों का (विश्वं सत्यम् इत्) = सब सत्य ही है। जब इन्द्र और ब्रह्मणस्पति का मेल हो जाता है तो सब कुछ सत्य ही प्रतीत होता है । शक्ति और ज्ञान का मेल सब असत्य को दूर कर देता है। (च) = और (आपः) = ['आपो वै सर्वा देवता:' ऐ० २.१६ 'आपो वै सर्वे देवाः' श० १०.५.४.१४] सब देव (वाम्) = आपके (व्रतम्) = व्रत को (न प्रमिनन्ति) = हिंसित नहीं करते हैं। वस्तुतः देववृत्ति के व्यक्ति 'इन्द्र व ब्रह्मणस्पति' दोनों के ही पूजक होते हैं। वे शक्ति और ज्ञान को लक्ष्य बना करके ही सब कर्म करते हैं । २. (नः) = हमारा भी (हविः) = त्यागपूर्वक अदन, यज्ञशेष का सेवन इन्द्राब्रह्मणस्पती अच्छा इन्द्र और ब्रह्मणस्पति का लक्ष्य करके हो । इन्द्र व ब्रह्मणस्पति हमारी हवि को इस प्रकार प्राप्त हों (इव) = जैसे (युजा वाजिना) = इकट्ठे जुतनेवाले घोड़े (अन्नं जिगातम्) = अन्न की ओर जाते हैं । 'युजा वाजिना' में कोई घोड़ा छोटा और कोई बड़ा नहीं है। इसी प्रकार 'इन्द्र और ब्रह्मणस्पति' में कोई छोटा व कोई बड़ा नहीं। शक्ति व ज्ञान दोनों का ही महत्त्व समानरूप से है। इनको प्राप्त करने के लिए हम हवि को स्वीकार करें।
भावार्थ - भावार्थ - हमारा जीवन शक्ति व ज्ञान का समन्वय करके चले ।
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