ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 43/ मन्त्र 3
आ पु॒त्रासो॒ न मा॒तरं॒ विभृ॑त्राः॒ सानौ॑ दे॒वासो॑ ब॒र्हिषः॑ सदन्तु। आ वि॒श्वाची॑ विद॒थ्या॑मन॒क्त्वग्ने॒ मा नो॑ दे॒वता॑ता॒ मृध॑स्कः ॥३॥
स्वर सहित पद पाठआ । पु॒त्रासः॑ । न । मा॒तर॑म् । विऽभृ॑त्राः । सानौ॑ । दे॒वासः॑ । ब॒र्हिषः॑ । स॒द॒न्तु॒ । आ । वि॒श्वाची॑ । वि॒द॒थ्या॑म् । अ॒न॒क्तु॒ । अग्ने॑ । मा । नः॒ । दे॒वऽता॑ता । मृधः॑ । क॒रिति॑ कः ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पुत्रासो न मातरं विभृत्राः सानौ देवासो बर्हिषः सदन्तु। आ विश्वाची विदथ्यामनक्त्वग्ने मा नो देवताता मृधस्कः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठआ। पुत्रासः। न। मातरम्। विऽभृत्राः। सानौ। देवासः। बर्हिषः। सदन्तु। आ। विश्वाची। विदथ्याम्। अनक्तु। अग्ने। मा। नः। देवऽताता। मृधः। करिति कः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 43; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
विषय - शासक माता के गुणों से युक्त हो
पदार्थ -
पदार्थ - (विभृत्राः पुत्रासः मातरं न) = भरण योग्य पुत्र जैसे माता को प्राप्त होते हैं वैसे ही (विभृत्रा:) = विशेष भृति द्वारा रक्षित राज-पुरुष (पुत्रासः न) = राज-पुत्रों के समान प्रिय होकर, (मातरं) = मातृभूमि को प्राप्त होकर (देवासः) = विजयेच्छु जन (बर्हिषः) = राष्ट्र तथा प्रजाजन के (सानौ) = समुन्नत पदों पर (सदन्तु) = विराजें। (विश्वाची) = समस्त जनों की बनी सभा (विदथ्याम्) = संग्राम-सम्बन्धिनी नीति को (आ अनक्तु) = प्रकट करे। हे (अग्रे) = तेजस्विन्! (देवताता) = यज्ञ और युद्ध में (नः मृधः) = हमारे हिंसकों को (मा कः) = मत उत्पन्न कर
भावार्थ - भावार्थ- राजा पंचायत सभा की सम्मति से राष्ट्रोन्नति की नीति तैयार करे तथा मातृभूमि को समर्पित राजपुरुषों- सरकारी सेवा में नियुक्त पुरुषों को योग्यता के अनुसार समुन्नत पदों पर नियुक्त करे। कुशल नायक हिंसक राष्ट्रद्रोहियों को उत्पन्न न होने दे। -
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