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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 43/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ते सी॑षपन्त॒ जोष॒मा यज॑त्रा ऋ॒तस्य॒ धाराः॑ सु॒दुघा॒ दुहा॑नाः। ज्येष्ठं॑ वो अ॒द्य मह॒ आ वसू॑ना॒मा ग॑न्तन॒ सम॑नसो॒ यति॒ ष्ठ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । सी॒ष॒प॒न्त॒ । जोष॑म् । आ । यज॑त्राः । ऋ॒तस्य॑ । धाराः॑ । सु॒ऽदुघाः॑ । दुहा॑नाः । ज्येष्ठ॑म् । वः॒ । अ॒द्य । महः॑ । आ । वसू॑नाम् । आ । ग॒न्त॒न॒ । सऽम॑नसः । यति॑ । स्थ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते सीषपन्त जोषमा यजत्रा ऋतस्य धाराः सुदुघा दुहानाः। ज्येष्ठं वो अद्य मह आ वसूनामा गन्तन समनसो यति ष्ठ ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते। सीषपन्त। जोषम्। आ। यजत्राः। ऋतस्य। धाराः। सुऽदुघाः। दुहानाः। ज्येष्ठम्। वः। अद्य। महः। आ। वसूनाम्। आ। गन्तन। सऽमनसः। यति। स्थ ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 43; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    पदार्थ - (ते) = वे (यजत्राः) = एकत्र संगत जन (ऋतस्य) = सत्य वचन और धन की (सुदुघाः धाराः दुहाना:) = सुख से पूर्ण करनेवाली वाणियों का प्रयोग करते हुए (जोषम्) = प्रीतिपूर्वक (आ सीषपन्त) = मिलकर रहें और (वः वसूनां) = बसनेवाले आप लोगों में से (महे) = पूज्य(ज्येष्ठं) = सबसे बड़े को (अद्य) = आज आप (समनसः) = समान चित्त होकर (आ गन्तन) = प्राप्त होओ और (यति स्थ) = यत्न में लगे रहो।

    भावार्थ - भावार्थ- राजकोष से वेतन पानेवाले सभी राजकर्मचारी अपनी नियुक्ति के समय ली शपथ के अनुसार अपने सत्य वचन पर दृढ़ रहते हुए प्रीतिपूर्वक राष्ट्र के प्रति निष्ठा रखें अपने ज्येष्ठ अधिकारी के पूर्णविश्वासपात्र बने रहें ऐसा यत्न करें।

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