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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 44/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - लिङ्गोक्ताः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    आ नो॑ दधि॒क्राः प॒थ्या॑मनक्त्वृ॒तस्य॒ पन्था॒मन्वे॑त॒वा उ॑। शृ॒णोतु॑ नो॒ दैव्यं॒ शर्धो॑ अ॒ग्निः शृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ महि॒षा अमू॑राः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नः॒ । द॒धि॒ऽक्राः । प॒थ्या॑म् । अ॒न॒क्तु॒ । ऋ॒तस्य॑ । पन्था॑म् । अनु॑ऽए॒त॒वै । ऊँ॒ इति॑ । शृ॒णोतु॑ । नः॒ । दैव्य॑म् । शर्धः॑ । अ॒ग्निः । शृ॒ण्वन्तु॑ । विश्वे॑ । म॒हि॒षाः । अमू॑राः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नो दधिक्राः पथ्यामनक्त्वृतस्य पन्थामन्वेतवा उ। शृणोतु नो दैव्यं शर्धो अग्निः शृण्वन्तु विश्वे महिषा अमूराः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। नः। दधिऽक्राः। पथ्याम्। अनक्तु। ऋतस्य। पन्थाम्। अनुऽएतवै। ऊँ इति। शृणोतु। नः। दैव्यम्। शर्धः। अग्निः। शृण्वन्तु। विश्वे। महिषाः। अमूराः ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 44; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    पदार्थ- जैसे (दधिक्राः) = रथ वा मनुष्यों को ले च में समर्थ अश्व मार्ग में चलते हुए अच्छी चाल प्रकट करता है वैसे ही (नः) = हममें से (दधि-क्रा:) = सहयोगी जनों को साथ लेकर बढ़नेवाला पुरुष (ऋतस्य पन्थाम् अन्वेतव) = न्यायमार्ग को स्वयं चलने और औरों को चलाने के लिये (नः) = हमारे लिये (पथ्याम्) = हितकारिणी नीति को (अनक्तु) = प्रकट करे। वह सन्मार्ग प्रकट करने से (अग्निः) = अग्नि-तुल्य प्रकाशक (न:) = हमारे (दैव्यं) = मनुष्य- हितकारी (शर्ध:) = बल को (शृणोतु) = सुने, जाने और (विश्वे) = समस्त (अमूराः) = मोह-रहित, (महिषा:) = बड़े लोग भी (शृण्वन्तु) = हमारे कार्यों को सुनें।

    भावार्थ - भावार्थ- राष्ट्र का नियुक्त प्रधानमन्त्री सभी सहयोगी जनों को साथ लेकर चलनेवाला, सत्य व न्याय के मार्ग पर स्वयं चलने व अन्यों को चलानेवाला, राष्ट्रहित की नीति लागू कर सबका हितकारी तथा प्रजा की समस्याओं को ध्यान से सुननेवाला पुरुष ज्ञानी तथा निष्पक्ष होना चाहिए। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ और देवता सविता है।

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