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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 95 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 95/ मन्त्र 4
    ऋषिः - प्रस्कण्वः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    तं म॑र्मृजा॒नं म॑हि॒षं न साना॑वं॒शुं दु॑हन्त्यु॒क्षणं॑ गिरि॒ष्ठाम् । तं वा॑वशा॒नं म॒तय॑: सचन्ते त्रि॒तो बि॑भर्ति॒ वरु॑णं समु॒द्रे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । म॒र्मृ॒जा॒नम् । म॒हि॒षम् । न । सानौ॑ । अं॒शुम् । दु॒ह॒न्ति॒ । उ॒क्षण॑म् । गि॒रि॒ऽस्थाम् । तम् । वा॒व॒शा॒नम् । म॒तयः॑ । स॒च॒न्ते॒ । त्रि॒तः । बि॒भ॒र्ति॒ । वरु॑णम् । स॒मु॒द्रे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं मर्मृजानं महिषं न सानावंशुं दुहन्त्युक्षणं गिरिष्ठाम् । तं वावशानं मतय: सचन्ते त्रितो बिभर्ति वरुणं समुद्रे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । मर्मृजानम् । महिषम् । न । सानौ । अंशुम् । दुहन्ति । उक्षणम् । गिरिऽस्थाम् । तम् । वावशानम् । मतयः । सचन्ते । त्रितः । बिभर्ति । वरुणम् । समुद्रे ॥ ९.९५.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 95; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (तम्) = उस (मर्मृजानम्) = अत्यन्त शुद्ध करते हुए, जीवन को पवित्र बनाते हुए, (अंशुम्) = सोम को (महिषं न) = जो अत्यन्त पूज्य के समान है, (दुहन्ति) = अपने में प्रपूरित करते हैं। इस सोम का दोहन (सानौ) = सानु के निमित्त करते हैं, जिससे यह हमें शिखर तक ले जानेवाला हो, उन्नति की चरम सीमा तक इस सोम ने ही तो हमें ले जाना है। उस सोम का अपने में प्रपूरण करते हैं, जो (उक्षणम्) = अपने में शक्ति का सेचन करनेवाला है और (गिरिष्ठाम्) = ज्ञान की वाणियों में स्थित होनेवाला है। यह सोम ही हमें शरीर में शक्ति सम्पन्न बनाता है, तो मस्तिष्क में यह हमें ज्ञानसम्पन्न करता है। इस प्रकार यह हमें उन्नति के शिखर पर ले जाता है। (वावशानं तम्) = प्रभु प्राप्ति की कामना वाले उस सोम को (मतयः) = बुद्धियाँ सचन्ते समवेत होती हैं। सोमरक्षण से प्रभु की ओर झुकाव होता है और बुद्धि की तीव्रता प्राप्त होती है । (त्रितः) = काम-क्रोध-लोभ को तैरनेवाला व्यक्ति (वरुणम्) = इस सब कष्टों का निवारण करनेवाले सोम को (समुद्रे) = उस [स+मुद्] आनन्दमय प्रभु की प्राप्ति के निमित्त (बिभर्ति) = धारण करता है । सोमरक्षण द्वारा ही हम वासनाओं को तैरकर प्रभु को प्राप्त होते हैं ।

    भावार्थ - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमारे में शक्ति का सेचन करता है, हमें ज्ञान वाणियों में प्रतिष्ठित करता है और आनन्दमय प्रभु में धारण करता है ।

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