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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 37/ मन्त्र 4
    ऋषिः - रहूगणः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स त्रि॒तस्याधि॒ सान॑वि॒ पव॑मानो अरोचयत् । जा॒मिभि॒: सूर्यं॑ स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । त्रि॒तस्य॑ । अधि॑ । सान॑वि । पव॑मानः । अ॒रो॒च॒य॒त् । जा॒मिऽभिः॑ । सूर्य॑म् । स॒ह ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स त्रितस्याधि सानवि पवमानो अरोचयत् । जामिभि: सूर्यं सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । त्रितस्य । अधि । सानवि । पवमानः । अरोचयत् । जामिऽभिः । सूर्यम् । सह ॥ ९.३७.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 37; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (सः) वह परमात्मा (त्रितस्य अधिसानवि) नीतिशास्त्रों में सर्वोपरि नेता है (पवमानः) लोकों को शुद्ध करनेवाले उसी परमात्मा ने (जामिभिः सह) तेजों के सहित (सूर्यम् अरोचयत्) सूर्य को देदीप्यमान किया ॥४॥

    भावार्थ - सब प्रकार की विद्यायें उसी परमात्मा से मिलती हैं और वही परमात्मा राजनीति से राजधर्मों का निर्माता तथा विधाता है ॥४॥

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