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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 37/ मन्त्र 3
    ऋषिः - रहूगणः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स वा॒जी रो॑च॒ना दि॒वः पव॑मानो॒ वि धा॑वति । र॒क्षो॒हा वार॑म॒व्यय॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । वा॒जी । रो॒च॒ना । दि॒वः । पव॑मानः । वि । धा॒व॒ति॒ । र॒क्षः॒ऽहा । वार॑म् । अ॒व्यय॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वाजी रोचना दिवः पवमानो वि धावति । रक्षोहा वारमव्ययम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । वाजी । रोचना । दिवः । पवमानः । वि । धावति । रक्षःऽहा । वारम् । अव्ययम् ॥ ९.३७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 37; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (सः) वह परमात्मा (वाजी) अत्यन्तबलवाला (दिवः रोचना) तथा अन्तरिक्ष का प्रकाशक है (रक्षोहा) असत्कर्मियों का हनन करनेवाला (वारम्) सबका भजनीय और (अव्ययम्) अविनाशी है (पवमानः) एवम्भूत परमात्मा सबको पवित्र करता हुआ (विधावति) सर्वत्र व्याप्त हो रहा है ॥३॥

    भावार्थ - सूर्य चन्द्रमादि सब लोक-लोकान्तर उसी के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं। स्वयंप्रकाश एकमात्र वही परमात्मा है। अन्य कोई वस्तु स्वतःप्रकाश नहीं ॥३॥

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