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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 920
ऋषिः - दृढच्युत आगस्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
1

सं꣢ दे꣣वैः꣡ शो꣢भते꣣ वृ꣡षा꣢ क꣣वि꣢꣫र्यो꣣नाव꣡धि꣢ प्रि꣣यः꣢ । प꣡व꣢मानो꣣ अ꣡दा꣢भ्यः ॥९२०॥

स्वर सहित पद पाठ

सम् । दे꣣वैः꣢ । शो꣣भते । वृ꣡षा꣢꣯ । क꣡विः꣢ । यो꣡नौ꣢꣯ । अ꣡धि꣢꣯ । प्रि꣣यः꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । अ꣡दा꣢꣯भ्यः । अ । दा꣣भ्यः ॥९२०॥


स्वर रहित मन्त्र

सं देवैः शोभते वृषा कविर्योनावधि प्रियः । पवमानो अदाभ्यः ॥९२०॥


स्वर रहित पद पाठ

सम् । देवैः । शोभते । वृषा । कविः । योनौ । अधि । प्रियः । पवमानः । अदाभ्यः । अ । दाभ्यः ॥९२०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 920
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

मन्त्र की देवता ‘पवमान सोम' है – पवित्र करनेवाली वीर्यशक्ति। यह सोम शरीर के अन्दर ओषधियों का सारभूत तत्त्व है । यह (अधियोनौ) = इस अपने उत्पत्तिस्थानभूत शरीर में १. (देवैः) = दिव्य गुणों के साथ (संशोभते) = उत्तमता से शोभायमान होता है। सोम के कारण शरीर में सब दिव्य गुणों का जन्म होता है । २. (वृषा) - यह सोम वृषा है— शक्ति को जन्म देनेवाला है । ३. (कविः) = क्रान्तदर्शी है—मनुष्य की बुद्धि को तीव्र बनाकर उसे कवि बनानेवाला है, ४. (प्रियः) = यह तृप्ति और कान्ति पैदा करनेवाला है। इसके सुरक्षित होने पर जीवन में असन्तोष की भावना नहीं आती और चेहरे पर एक विशेष प्रकार की कान्ति बनी रहती है । ५. (पवमानः) = यह जीवन में पवित्रता का संचार करता है तथा ६. (अदाभ्यः) = अहिंसित होता है । इसके शरीर में सुरक्षित होने से किसी प्रकार के रोगादि की आशंका नहीं रहती ।

भावार्थ -

सोम हमें १. दिव्य गुणोंवाला बनाता है, २. शक्ति, ३. बुद्धि, ४. तृप्ति, ५. कान्ति, ६. पवित्रता तथा ७. नीरोगता देता है ।

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