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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 920
    ऋषिः - दृढच्युत आगस्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    सं꣢ दे꣣वैः꣡ शो꣢भते꣣ वृ꣡षा꣢ क꣣वि꣢꣫र्यो꣣नाव꣡धि꣢ प्रि꣣यः꣢ । प꣡व꣢मानो꣣ अ꣡दा꣢भ्यः ॥९२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । दे꣣वैः꣢ । शो꣣भते । वृ꣡षा꣢꣯ । क꣡विः꣢ । यो꣡नौ꣢꣯ । अ꣡धि꣢꣯ । प्रि꣣यः꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । अ꣡दा꣢꣯भ्यः । अ । दा꣣भ्यः ॥९२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं देवैः शोभते वृषा कविर्योनावधि प्रियः । पवमानो अदाभ्यः ॥९२०॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । देवैः । शोभते । वृषा । कविः । योनौ । अधि । प्रियः । पवमानः । अदाभ्यः । अ । दाभ्यः ॥९२०॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 920
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आगे फिर गुरु-शिष्य का ही विषय है।

    पदार्थ

    (वृषा) ज्ञान की वर्षा करनेवाला, (कविः) मेधावी, (प्रियः) शिष्यों से प्रीति रखनेवाला, (अदाभ्यः) ठगा न जा सकनेवाला (पवमानः) पवित्रतादायक आचार्य (योनौ अधि) गुरुकुलरूप घर में (देवैः) दिव्यगुणी शिष्यों के साथ (सं शोभते) भली-भाँति शोभा पाता है ॥२॥

    भावार्थ

    सुयोग्य गुरु और सुयोग्य शिष्य आपस में मिलकर बहुत अधिक शोभा पाते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (वृषा) सुखवर्षक (कविः) क्रान्तदर्शी (प्रियः) स्नेही (पवमानः) धारारूप में प्राप्त होने वाला (अदाभ्यः) न दबने न हिंसित करने योग्य*65 परमात्मा (देवैः योनौ अधि संशोभते) मुमुक्षु उपासकजनों द्वारा स्तुति से उनके (योनौ अधि) हृदय में दीप्त होता है—प्रकाशित होता है*66॥२॥

    टिप्पणी

    [*65. “न दब्धुमशक्नुवन्” [काठक॰ ३०.७]।] [*66. “शुभ दीप्तौ” [भ्वादि॰]।]

    विशेष

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    विषय

    सोम जनित रत्न सप्तक

    पदार्थ

    मन्त्र की देवता ‘पवमान सोम' है – पवित्र करनेवाली वीर्यशक्ति। यह सोम शरीर के अन्दर ओषधियों का सारभूत तत्त्व है । यह (अधियोनौ) = इस अपने उत्पत्तिस्थानभूत शरीर में १. (देवैः) = दिव्य गुणों के साथ (संशोभते) = उत्तमता से शोभायमान होता है। सोम के कारण शरीर में सब दिव्य गुणों का जन्म होता है । २. (वृषा) - यह सोम वृषा है— शक्ति को जन्म देनेवाला है । ३. (कविः) = क्रान्तदर्शी है—मनुष्य की बुद्धि को तीव्र बनाकर उसे कवि बनानेवाला है, ४. (प्रियः) = यह तृप्ति और कान्ति पैदा करनेवाला है। इसके सुरक्षित होने पर जीवन में असन्तोष की भावना नहीं आती और चेहरे पर एक विशेष प्रकार की कान्ति बनी रहती है । ५. (पवमानः) = यह जीवन में पवित्रता का संचार करता है तथा ६. (अदाभ्यः) = अहिंसित होता है । इसके शरीर में सुरक्षित होने से किसी प्रकार के रोगादि की आशंका नहीं रहती ।

    भावार्थ

    सोम हमें १. दिव्य गुणोंवाला बनाता है, २. शक्ति, ३. बुद्धि, ४. तृप्ति, ५. कान्ति, ६. पवित्रता तथा ७. नीरोगता देता है ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि गुरुशिष्यविषयमाह।

    पदार्थः

    (वृषा) ज्ञानवर्षकः, (कविः) मेधावी, (प्रियः) शिष्याणां वत्सलः, (अदाभ्यः) दब्धुं वञ्चयितुमशक्यः (पवमानः) पवित्रयिता आचार्यः (योनौ अधि) गृहे, गुरुकुले इत्यर्थः। [योनिरिति गृहनाम। निघं० १।१२।] (देवैः) दिव्यगुणयुक्तैः शिष्यैः सह (सं शोभते) संविभाति ॥२॥

    भावार्थः

    सुयोग्या गुरवः सुयोग्याः शिष्याश्च परस्परं मिलित्वाऽतितरां शोभन्ते ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।२५।३, ‘वृ॒त्र॒हा दे॑व॒वीत॑मः’ इति तृतीयः पादः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    A gladdening, purifying, invincible, lovable learned steadfast Yogi, looks. graceful along with other scholars.

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    Meaning

    Soma, omniscient poetic creator, generous and dear, dearest of divinities and destroyer of the evil and darkness of life, vibrating in the cave of the heart shines glorious in the soul and reflects beatific with the senses, mind, intelligence and will in the conduct and grace of the human personality in total freedom from suppression and inhibitions. (Rg. 9-25-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (वृषा) સુખવર્ષક, (कविः) ક્રાન્તદર્શી, (प्रियः) સ્નેહી, (पवमानः) ધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થનાર તથા (अदाभ्यः) ન દબાનાર, ન હિંસિત થનાર-નિત્ય પરમાત્મા (देवैः योनौ अधि संशोभते) મુમુક્ષુ ઉપાસકો દ્વારા સ્તુતિથી તેઓના (योनौ अधि) હૃદયમાં પ્રકાશિત થાય છે-દીપ્ત થાય છે. (૨)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सुयोग्य गुरू व सुयोग्य शिष्य आपापसात मिळून अतिशय शोभून दिसतात. ॥२॥

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