अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 23/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वा
देवता - आपः
छन्दः - एकावसानासमविषमात्रिपाद्गायत्री
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
आपो॒ यद्वो॒ऽर्चिस्तेन॒ तं प्र॑त्यर्चत॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥
स्वर सहित पद पाठआप॑: । यत् । व॒: । अ॒र्चि: । तेन॑ । तम् । प्रति॑ । अ॒र्च॒त॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म:॥२३.३॥
स्वर रहित मन्त्र
आपो यद्वोऽर्चिस्तेन तं प्रत्यर्चत यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥
स्वर रहित पद पाठआप: । यत् । व: । अर्चि: । तेन । तम् । प्रति । अर्चत । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म:॥२३.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
विषय - ५ स्वराविषमात्रिपाद्गायत्री॥
पदार्थ -
१, २, ३, ४, ५ एवं मन्त्र संख्या के केवल भावार्थ ही है |
भावार्थ -
सर्वव्यापक प्रभु अपने तप आदि के द्वारा द्वेषियों के द्वेष को दूर करे। राजा भी राष्ट्र में गुप्तचरों व अध्यक्षों के द्वारा व्यापक-सा होकर जहाँ भी द्वेष को देखे उसे दूर करने के लिए यत्नशील हो। ज्ञान-प्रचारक भी अपने हृदय को विशाल व उदार बनाता हुआ ज्ञान प्रसार व अपने क्रियात्मक उदाहरण से लोगों को द्वेष की भावना से ऊपर उठने की प्ररेणा दे।
उन्नीस से तेईस तक पाँच सूक्तों का उपदेश
१. इन सूक्तों का भाव ऊपर दिया ही है। मूल भावना द्वेष से ऊपर उठने की है। इस द्वेष से ऊपर उठने के लिए 'अनि, वायु, सूर्य, चन्द्र व आप:' बनना चाहिए। अग्नि की भाँति गतिशील [अगि गतौ], वायु की भाँति गति के द्वारा बुराइयों को दूर करनेवाला[वा गतिगन्धनयो:], सूर्य की भाँति सरणशील व कर्मप्रेरणा देनेवाला, चन्द्रमा की भाँति आहादमय तथा आपः की भौति व्यापकतावाला बनने से द्वेष का प्रसङ्ग रहता ही नहीं। २. इसीप्रकार द्वेष को दूर करने के लिए 'तपस, हरस, अर्चिस्, शोचिस् व तेजस्' का साधन आवश्यक है। तप सब मलों का
अथ द्वितीयं काण्डम् हरण करता है। ज्ञानज्वाला जीवन को शुचि व दीस बनाती है। तेजस्विता के सामने द्वेषादि भाव स्वयं अभिभूत व निस्तेज हो जाते है, तेजस्विता के साथ द्वेष का निवास नहीं। ३. अग्नि शरीर में 'वाणी' है, वायु 'प्राण', सूर्य'चक्षु', चन्द्र 'मन' और आपः 'रेतस्' है। 'वाणी का संयम, प्राणसाधना[प्राणायाम], तत्त्वदर्शन, मनो-निग्रह, ऊर्ध्व-रेतस्कता' द्वेष आदि सब अशुभ भावनाओं को समास कर देते हैं। एवं ये पाँच साधन मनुष्य के जीवन को अत्यन्त उन्नत व सुन्दर बनानेवाले हैं। अगले सूक्त में सब अशुभ वासनाओं के विनाश का ही निर्देश है। इस सूक्त का ऋषि ब्रह्मा है-वृद्धिवाला। देवता 'आयुः' है-उत्तम जीवन । ब्रह्मा चाहता है कि -
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