साइडबार
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 10 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
तमित्स॑खि॒त्व ई॑महे॒ तं रा॒ये तं सु॒वीर्ये॑। स श॒क्र उ॒त नः॑ शक॒दिन्द्रो॒ वसु॒ दय॑मानः॥
स्वर सहित पद पाठतम् । इत् । स॒खि॒ऽत्वे । ई॒म॒हे॒ । तम् । रा॒ये । तम् । सु॒ऽवीर्ये॑ । सः । श॒क्रः । उ॒त । नः॒ । श॒क॒त् । इन्द्रः॑ । वसु॑ । दय॑मानः ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमित्सखित्व ईमहे तं राये तं सुवीर्ये। स शक्र उत नः शकदिन्द्रो वसु दयमानः॥
स्वर रहित पद पाठतम्। इत्। सखिऽत्वे। ईमहे। तम्। राये। तम्। सुऽवीर्ये। सः। शक्रः। उत। नः। शकत्। इन्द्रः। वसु। दयमानः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 10; मन्त्र » 6
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 6
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 6
पदार्थ -
पदार्थ = हम सब लोग ( तम् इत् ) = उस इन्द्र को ही ( सखित्वे ) = मित्रता के लिए ( तम् राये ) = उसको धन के लिए ( तं सुवीर्ये ) = उसको बल पराक्रम के लिए ( ईमहे ) = माँगते हैं ( स शक्रः ) = वह शक्तिमान् है, ( उत ) = और ( इन्द्रः ) = उस इन्द्र ने ( नः ) = हमको ( वसु दयमानः ) = धन देते हुए ( शकत् ) = शक्तिमान् किया है ।
भावार्थ -
भावार्थ = हम सब लोग, उस इन्द्र परमेश्वर की, मित्रता के लिए, धन के लिए और उत्तम सामर्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं। उस शक्तिमान् इन्द्र प्रभु ने ही, हमें धन देते हुए, शक्तिमान् बनाया है। यदि वह परमात्मा, हमें शरीरबल, बुद्धिबल और सामाजिक बल न देता तो हम लोग कैसे जीवित रह सकते ? सृष्टिरचना के आदि में ही उस प्रभु ने मनुष्य जाति को उत्पन्न किया, बुद्धिबल आदि में ही उस प्रभु ने मनुष्य जाति को उत्पन्न किया, बुद्धिबल आदि इस जाति को दिए तब ही तो यह मनुष्य जाति जीवित है, नहीं तो यह जाति कब की नष्ट भ्रष्ट हो जाती । इस जाति का नाश उस परमात्मा को अभीष्ट नहीं है ।