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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 13 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 13/ मन्त्र 9
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - तिस्त्रो देव्यः- सरस्वतीळाभारत्यः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
इळा॒ सर॑स्वती म॒ही ति॒स्रो दे॒वीर्म॑यो॒भुवः॑। ब॒र्हिः सी॑दन्त्व॒स्रिधः॑॥
स्वर सहित पद पाठइळा॑ । सर॑स्वती । म॒ही । ति॒स्रः । दे॒वीः । म॒यः॒ऽभुवः॑ । ब॒र्हिः । सी॒द॒न्तु॒ । अ॒स्त्रिधः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुवः। बर्हिः सीदन्त्वस्रिधः॥
स्वर रहित पद पाठइळा। सरस्वती। मही। तिस्रः। देवीः। मयःऽभुवः। बर्हिः। सीदन्तु। अस्रिधः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 13; मन्त्र » 9
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
पदार्थ -
पदार्थ = ( इडा ) = वाणी ( सरस्वती ) = विद्या ( मही ) = मातृभूमि ( मयोभुव: ) = कल्याण करनेवाली और ( अस्त्रिधः ) = कभी हानि न पहुँचानेवाली ( तिस्रः देवी: ) = तीन देवियाँ ( बर्हिः ) = हमारे अन्त:करण में ( सीदन्तु ) = विराजमान हों ।
भावार्थ -
भावार्थ = प्रभु से प्रार्थना है कि हे दयामय परमात्मन्! हमारे देशवासियों में इन तीन देवियों की भक्ति हो । १. इडा अपनी मातृभाषा-भाषियों के साथ मातृभाषा में बातचीत करना । २. लोक, परलोक, जड़, चेतन, पुण्य, पाप, हित, अहित, कर्तव्य, अकर्तव्य को बतानेवाली सच्ची विद्या सरस्वती । ३. मही अपनी जन्मभूमि के वासी अपने बान्धवों से प्रेम। ये तीन देवियाँ मनुष्य को सदा सुख देनेवाली हैं, कभी हानि करनेवाली नहीं हैं। हर एक मनुष्य के अन्त:करण में, तीनों देवियों के प्रति भक्ति होनी चाहिए। जिस देश के वासियों की इन तीन देवियों में प्रीति होगी, वह देश उन्नत होगा। जिस देश में इन तीन देवियों में भक्ति नहीं है, जिनका अपनी भाषा और विद्या से प्रेम नहीं, अपनी मातृभूमि और मातृभूमि में बसनेवालों से प्रेम नहीं, वह देश अवनति के गढ़े में पड़ा रहेगा।
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