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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 30/ मन्त्र 7
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    योगे॑योगे त॒वस्त॑रं॒ वाजे॑वाजे हवामहे। सखा॑य॒ इन्द्र॑मू॒तये॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    योगे॑ऽयोगे । त॒वःऽत॑रम् । वाजे॑ऽवाजे । ह॒वा॒म॒हे॒ । सखा॑यः । इन्द्र॑म् । ऊ॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    योगेयोगे तवस्तरं वाजेवाजे हवामहे। सखाय इन्द्रमूतये॥

    स्वर रहित पद पाठ

    योगेऽयोगे। तवःऽतरम्। वाजेऽवाजे। हवामहे। सखायः। इन्द्रम्। ऊतये॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 30; मन्त्र » 7
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 29; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

     पदार्थ  = ( सखायः ) = हे मित्रो ! ( योगे योगे ) = प्रत्येक कार्य के आरम्भ में और ( वाजे वाजे ) प्रत्येक युद्ध में ( तवस्तरम् ) = अति बलवाले ( इन्द्रम् ) = इन्द्र को ( ऊतये ) = रक्षा के लिए ( हवामहे ) = हम बुलाते हैं ।

     

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे मित्रो ! सब कार्यों के और सब युद्धों के आरम्भ में, अति बलवान् इन्द्र की, अपनी रक्षा के लिए हम सब लोग प्रेम से प्रार्थना करते हैं, जिससे हमारे सब कार्य निर्विघ्नतया पूर्ण हों। हमारे मन में ही जो सदा देवासुर संग्राम बना रहता है, सात्त्विक दैवी गुण, अपनी विजय चाहते हैं और तामसी राक्षसी गुण, अपनी विजय चाहते हैं। उनमें तामसी गुणों की पराजय हो कर, हमारे दैवी गुणों की विजय हो, जिससे हम आभ्यन्तर युद्ध में विजयी होकर इस लोक और परलोक में सदा सुखी रहें ।
     

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