ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 121/ मन्त्र 2
ऋषिः - हिरण्यगर्भः प्राजापत्यः
देवता - कः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः । यस्य॑ छा॒यामृतं॒ यस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥
स्वर सहित पद पाठयः । आ॒त्म॒ऽदाः । ब॒ल॒ऽदाः । यस्य॑ । विश्वे॑ । उ॒प॒ऽआस॑ते । प्र॒ऽशिष॑म् । यस्य॑ । दे॒वाः । यस्य॑ । छा॒याम् । ऋत॑म् । यस्य॑ । मृ॒त्युः । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः । यस्य छायामृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
स्वर रहित पद पाठयः । आत्मऽदाः । बलऽदाः । यस्य । विश्वे । उपऽआसते । प्रऽशिषम् । यस्य । देवाः । यस्य । छायाम् । ऋतम् । यस्य । मृत्युः । कस्मै । देवाय । हविषा । विधेम ॥ १०.१२१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 121; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
पदार्थ -
पदार्थ = ( यः ) = जो ( आत्मदा ) = आत्मज्ञान का दाता ( बलदा ) = और शरीर, आत्मा और समाज के बल का दाता है ( यस्य ) = जिसकी ( विश्वे ) = सब ( देवा: ) = विद्वान् लोग ( उपासते ) = उपासना करते हैं और ( यस्य ) = जिसकी ( प्रशिषम् ) = उत्तम शासन-पद्धति को मानते हैं ( यस्य ) = जिसका ( छाया ) = आश्रय ही ( अमृतम् ) = मोक्ष सुखदायक है और ( यस्य ) = जिसका न मानना, भक्ति न करना ही ( मृत्युः ) = मरण है ( कस्मै देवाय ) = उस सुखस्वरूप सकल ज्ञानप्रद परमात्मा की प्राप्ति के लिए ( हविषा ) = श्रद्धा भक्ति से हम ( विधेम ) = वैदिक आज्ञापालन करने में तत्पर रहें।
भावार्थ -
भावार्थ = वह पूर्ण परमात्मा अपने भक्तों को अपना ज्ञान और सब प्रकार का बल प्रदान करता है । सब विद्वान् लोग जिसकी सदा उपासना करते हैं और जिसकी वैदिक आज्ञा को ही शिरोधार्य मानते हैं, जिसकी उपासना करना मुक्तिदायक है, जिसकी भक्ति न करना वारंवार संसार में, अनेक जन्ममरणादि कष्टों का देनेवाला है। इसलिए ऐसे प्रभु से हमें कभी विमुख न होना चाहिये।
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