ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 121/ मन्त्र 3
यः प्रा॑ण॒तो नि॑मिष॒तो म॑हि॒त्वैक॒ इद्राजा॒ जग॑तो ब॒भूव॑ । य ईशे॑ अ॒स्य द्वि॒पद॒श्चतु॑ष्पद॒: कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥
स्वर सहित पद पाठयः । प्रा॒ण॒तः । नि॒ऽमि॒ष॒तः । म॒हि॒ऽत्वा । एकः॑ । इत् । राजा॑ । जग॑तः । ब॒भूव॑ । यः । ईशे॑ । अ॒स्य । द्वि॒ऽपदः॑ । चतुः॑ऽपदः । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यः प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतो बभूव । य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पद: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
स्वर रहित पद पाठयः । प्राणतः । निऽमिषतः । महिऽत्वा । एकः । इत् । राजा । जगतः । बभूव । यः । ईशे । अस्य । द्विऽपदः । चतुःऽपदः । कस्मै । देवाय । हविषा । विधेम ॥ १०.१२१.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 121; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
पदार्थ -
पदार्थ = ( यः ) = जो ( प्राणतः ) = श्वास लेनेवाले ( निमिषत: ) = और अप्राणिरूप ( जगत: ) = जगत् का ( महित्वा ) = अपनी अनन्त महिमा से ( एक इत् ) = एक ही ( राजा )= विराजमान राजा ( बभूव ) = हुआ है ( यः ) = जो ( अस्य द्विपदः ) = इस दो पाँववाले शरीर और ( चतुष्पदः ) = गौ आदि चार पाँववाले शरीर की ( ईशे ) = रचना करके उन पर शासन करता है ( कस्मै ) = सुख स्वरूप, सुखदायक ( देवाय ) = कामना करने योग्य परमब्रह्म की प्राप्ति के लिए ( हविषा ) = सब सामर्थ्य से ( विधेम ) = विशेष भक्ति किया करें ।
भावार्थ -
भावार्थ = हे परमात्मन्! आप तो सब जगत् के महाराजाधिराज, समस्त जगत् के उत्पन्न करने हारे, सकल ऐश्वर्य युक्त महात्मा न्यायाधीश हैं। आप जगत्पति की उपासना से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, ये चारों पुरुषार्थ प्राप्त हो सकते हैं, अन्य की उपासना से कभी नहीं ।
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