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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 18 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 18/ मन्त्र 2
मृ॒त्योः प॒दं यो॒पय॑न्तो॒ यदैत॒ द्राघी॑य॒ आयु॑: प्रत॒रं दधा॑नाः । आ॒प्याय॑मानाः प्र॒जया॒ धने॑न शु॒द्धाः पू॒ता भ॑वत यज्ञियासः ॥
स्वर सहित पद पाठमृ॒त्योः । प॒दम् । यो॒पय॑न्तः । यत् । ऐत॑ । द्राघी॑यः । आयुः॑ । प्र॒ऽत॒रम् । दधा॑नाः । आ॒प्याय॑मानाः । प्र॒ऽजया॑ । धने॑न । शु॒द्धाः । पू॒ताः । भ॒व॒त॒ । य॒ज्ञि॒या॒सः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मृत्योः पदं योपयन्तो यदैत द्राघीय आयु: प्रतरं दधानाः । आप्यायमानाः प्रजया धनेन शुद्धाः पूता भवत यज्ञियासः ॥
स्वर रहित पद पाठमृत्योः । पदम् । योपयन्तः । यत् । ऐत । द्राघीयः । आयुः । प्रऽतरम् । दधानाः । आप्यायमानाः । प्रऽजया । धनेन । शुद्धाः । पूताः । भवत । यज्ञियासः ॥ १०.१८.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 18; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
पदार्थ -
पदार्थ = ( मृत्योः पदम् ) = मृत्यु के पाँव को ( योपयन्त:) = परे हटाते हुए ( द्राघीयः आयुः ) = लम्बी आयु को ( प्रतरम् ) = अधिक दीर्घ बनाकर ( दधाना: ) = धारण करते हुए ( यदा एत ) = जब तुम चलो तब ( प्रजया धनेन ) = प्रजा से और धन से ( आप्यायमाना: ) = वृद्धि को प्राप्त होते हुए ( शुद्धा: ) = बाहर से शुद्ध ( पूता: ) = मन से पवित्र ( यज्ञियास: ) = पूजनीय ( भवत ) = होओ।
भावार्थ -
भावार्थ = परम दयालु जगदीश का उपदेश है – कि मेरे प्यारे पुत्रो ! आप लोग मृत्यु के पाँव, दुराचार और मन की अपवित्रता को परे हटाते हुए, सत्संग सदाचार ब्रह्मचर्य और वेदों के स्वाध्यायादि साधनों से, अपनी आयु को बढ़ाते हुए मेरे मार्ग पर आओ। मेरी अनन्य भक्ति, आप लोगों को अन्दर बाहर से शुद्ध करती हुई, प्रजा धनादिकों से सन्तुष्ट करके पूजनीय बनाएगी।
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