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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 26 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
अ॒हं भूमि॑मददा॒मार्या॑या॒हं वृ॒ष्टिं दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य। अ॒हम॒पो अ॑नयं वावशा॒ना मम॑ दे॒वासो॒ अनु॒ केत॑मायन् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम् । भूमि॑म् । अ॒द॒दा॒म् । आर्या॑य । अ॒हम् । वृ॒ष्टिम् । दा॒शुषे॑ । मर्त्या॑य । अ॒हम् । अ॒पः । अ॒न॒य॒म् । व॒व॒शा॒नाः । मम॑ । दे॒वासः॑ । अनु॑ । केत॑म् । आ॒य॒न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अहं भूमिमददामार्यायाहं वृष्टिं दाशुषे मर्त्याय। अहमपो अनयं वावशाना मम देवासो अनु केतमायन् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठअहम्। भूमिम्। अददाम्। आर्याय। अहम्। वृष्टिम्। दाशुषे। मर्त्याय। अहम्। अपः। अनयम्। वावशानाः। मम। देवासः। अनु। केतम्। आयन् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 26; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
पदार्थ -
पदार्थ = ( आर्याय अहं भूमिम् अददाम् ) = मैं अपने पुत्र आर्य पुरुष को पृथ्वी देता हूँ, ( अहम् ) = मैं ( दाशुषे मर्त्याय ) = दानशील मनुष्य के लिए धन की ( वृष्टिम् ) = वर्षा करता हूं ( अहम् ) = मैं ही ( वावशाना: अप: ) = बड़े शब्द करनेवाले जलों को ( अनयम् ) = पृथिवी पर लाया हूँ ( देवासः ) = विद्वान् लोग ( मम केतम् ) = मेरे ज्ञान के ( अनुआयन् ) = अनुसार चलते हैं।
भावार्थ -
भावार्थ = दयामय परमात्मा का उपदेश है कि बुद्धिमान् आर्य पुरुषो! मैं अपने पुत्र आर्य पुरुषों आप लोगों को पृथिवी देता हूँ, धनादि उत्तम पदार्थों की आपके लिए वर्षा करता हूँ, नदियों का उत्तम जल भी मैं आप लोगों के लिए लाता और बरसाता हूँ, तुम अपनी अयोग्यता से खो देते हो । धार्मिक विद्वान् बनो, क्योंकि सब विद्वान् मेरे ज्ञान और मेरी आज्ञा के अनुसार चल कर ही सुखी होते हैं ।
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