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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 31 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 31/ मन्त्र 10
अ॒स्माँ अ॑वन्तु ते श॒तम॒स्मान्त्स॒हस्र॑मू॒तयः॑। अ॒स्मान्विश्वा॑ अ॒भिष्ट॑यः ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मान् । अ॒व॒न्तु॒ । ते॒ । श॒तम् । अ॒स्मान् । स॒हस्र॑म् । ऊ॒तयः॑ । अ॒स्मान् । विश्वाः॑ । अ॒भिष्ट॑यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्माँ अवन्तु ते शतमस्मान्त्सहस्रमूतयः। अस्मान्विश्वा अभिष्टयः ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठअस्मान्। अवन्तु। ते। शतम्। अस्मान्। सहस्रम्। ऊतयः। अस्मान्। विश्वाः। अभिष्टयः ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 31; मन्त्र » 10
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
पदार्थ -
पदार्थ = हे इन्द्र ! ( ते ) = आपकी ( शतम् ऊतयः ) = सैकड़ों रक्षाएँ ( अस्मान् ) = हमारी ( अवन्तु ) = रक्षा करें और ( सहस्त्रम् ) = हज़ारों ( ऊतयः ) = रक्षाएं ( अस्मान् अवन्तु ) = हमारी रक्षा करें ( विश्वा ) = सब ( अभिष्टयः ) = वाञ्छित पदार्थ ( अस्मान् अवन्तु ) = हमारी रक्षा करें ।
भावार्थ -
भावार्थ = हे दयामय परमात्मन् ! आपकी सैकड़ों और हज़ारों रक्षायें हमारी रक्षा करें। भगवन्! आपके दिये हुए अनेक मनोवाञ्छित पदार्थ, हमारी रक्षा करें। ऐसा न हो कि, हम अनेक पदार्थों को प्राप्त होकर, आपसे विमुख हुए, उन पदार्थों से अनेक उपद्रव करके पाप के भागी बन जायें, किन्तु उन पदार्थों को संसार के उपकार में लगाते हुए, आपकी कृपा के पात्र बनें ।
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