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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 16 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 29
सु॒वीरं॑ र॒यिमा भ॑र॒ जात॑वेदो॒ विच॑र्षणे। ज॒हि रक्षां॑सि सुक्रतो ॥२९॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽवीर॑म् । र॒यिम् । आ । भ॒र॒ । जात॑ऽवेदः॑ । विऽच॑र्षणे । ज॒हि । रक्षां॑सि । सु॒ऽक्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुवीरं रयिमा भर जातवेदो विचर्षणे। जहि रक्षांसि सुक्रतो ॥२९॥
स्वर रहित पद पाठसुऽवीरम्। रयिम्। आ। भर। जातऽवेदः। विऽचर्षणे। जहि। रक्षांसि। सुऽक्रतो इति सुऽक्रतो ॥२९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 29
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
पदार्थ -
पदार्थ = हे ( जातवेदः ) = वेद प्रकट करनेवाले प्रभो अथवा अनेक प्रकार का धन उत्पन्न कर्त्ता ईश्वर ! ( सुवीरम् ) = उत्तम वीरों से युक्त ( रयिम् ) = धन को ( आभर ) = दो ( विचर्षणे ) = हे सर्वज्ञ सर्वद्रष्टा परमात्मन् ! ( सुक्रतो ) = हे जगत् उत्पादन पालनादि उत्तम और दिव्य कर्म करनेवाले प्रभो ! ( रक्षांसि ) = दुष्ट राक्षसों का ( जहि ) = नाश कर ।
भावार्थ -
भावार्थ = हे परमात्मन्! दानवीर कर्मवीरादि पुरुषों से युक्त धन हमें प्रदान करो। हम दीन मलीन पराधीन दरिद्री कभी न हों । हे महासमर्थ प्रभो ! दुष्ट राक्षसों का दुष्ट स्वभाव छुड़ा कर, उनको धर्मात्मा श्रेष्ठ बनाओ, जिससे वे लोग भी किसी की कभी हानि न कर सकें ।
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