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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1302
ऋषिः - पवित्र आङ्गिरसो वा वसिष्ठो वा उभौ वा
देवता - पवमानाध्येता
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
1
ये꣡न꣢ दे꣣वाः꣢ प꣣वि꣡त्रे꣢णा꣣त्मा꣡नं꣢ पु꣣न꣢ते꣣ स꣡दा꣢ । ते꣡न꣢ स꣣ह꣡स्र꣢धारेण पावमा꣣नीः꣡ पु꣢नन्तु नः ॥१३०२
स्वर सहित पद पाठये꣡न꣢꣯ । दे꣣वाः꣢ । प꣣वि꣡त्रे꣢ण । आ꣣त्मा꣡न꣢म् । पु꣣न꣡ते꣢ । स꣡दा꣢꣯ । ते꣡न꣢꣯ । स꣣ह꣡स्र꣢धारेण । स꣣ह꣡स्र꣢ । धा꣣रेण । पावमानीः꣣ । पु꣣नन्तु । नः ॥१३०२॥
स्वर रहित मन्त्र
येन देवाः पवित्रेणात्मानं पुनते सदा । तेन सहस्रधारेण पावमानीः पुनन्तु नः ॥१३०२
स्वर रहित पद पाठ
येन । देवाः । पवित्रेण । आत्मानम् । पुनते । सदा । तेन । सहस्रधारेण । सहस्र । धारेण । पावमानीः । पुनन्तु । नः ॥१३०२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1302
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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पदार्थ -
शब्दार्थ = ( येन पवित्रेण ) = पवित्र करनेवाले जिस कर्म से ( देवाः ) = विद्वान् ( आत्मानम् ) = अपने आत्मा को ( सदा पुनते ) = सदा पवित्र करते हैं ( तेन सहस्रधारेण ) = उस अनन्त धाराओंवाले कर्म से ( पावमानी: ) = पवित्र करनेवाली वेद की ऋचाएँ ( नः पुनन्तु ) = हमें पवित्र करें।
भावार्थ -
भावार्थ = जिस प्रणव जप और वेदों के पवित्र मन्त्रों के स्वाध्याय रूप पवित्र कर्म से, प्रभु के उपासक, स्वाध्यायशील विद्वान् महात्मा लोग, अपने आत्मा को सदा पवित्र करते हैं, उस अनन्त धारण शक्तियों से सम्पन्न, ईश्वरप्राणिधान और वेद स्वाध्याय रूप से कर्म से, सारे संसार को पवित्र करनेवाली वेदों की ऋचाएँ हमको पवित्र करें ।
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