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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1303
ऋषिः - पवित्र आङ्गिरसो वा वसिष्ठो वा उभौ वा
देवता - पवमानाध्येता
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
1
पा꣣वमानीः꣡ स्व꣣स्त्य꣡य꣢नी꣣स्ता꣡भि꣢र्गच्छति नान्द꣣न꣢म् । पु꣡ण्या꣢ꣳश्च भ꣣क्षा꣡न्भ꣢क्षयत्यमृत꣣त्वं꣡ च꣢ गच्छति ॥१३०३
स्वर सहित पद पाठपावमानीः꣣ । स्व꣣स्त्य꣡य꣢नीः । स्व꣣स्ति । अ꣡य꣢꣯नीः । ता꣡भिः꣢꣯ । ग꣣च्छति । नान्दन꣢म् । पु꣡ण्या꣢꣯न् । च꣣ । भक्षा꣢न् । भ꣣क्षयति । अमृतत्व꣢म् । अ꣣ । मृतत्व꣢म् । च꣣ । गच्छति ॥१३०३॥
स्वर रहित मन्त्र
पावमानीः स्वस्त्ययनीस्ताभिर्गच्छति नान्दनम् । पुण्याꣳश्च भक्षान्भक्षयत्यमृतत्वं च गच्छति ॥१३०३
स्वर रहित पद पाठ
पावमानीः । स्वस्त्ययनीः । स्वस्ति । अयनीः । ताभिः । गच्छति । नान्दनम् । पुण्यान् । च । भक्षान् । भक्षयति । अमृतत्वम् । अ । मृतत्वम् । च । गच्छति ॥१३०३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1303
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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पदार्थ -
शब्दार्थ = ( पावमानी: ) = पवित्र स्वरूप और पवित्र करनेवाली वेद की ऋचाएँ ( स्वस्त्ययनीः ) = कल्याण करने हारी ( ताभिः ) = उन के अध्ययन और मनन करने से मनुष्य ( नान्दनम् ) = आनन्द को ( गच्छति ) = प्राप्त होता है ( च ) = और ( पुण्यान् ) = पवित्र ( भक्षान् ) = भोज्यों को ( भक्षयति ) = भोजन करता है ( च ) = तथा ( अमृतत्वं ) = अमर भाव को अर्थात् मुक्ति के आनन्द को ( गच्छति ) = प्राप्त हो जाता है ।
भावार्थ -
भावार्थ = वेद की पवित्र ऋचाएँ, स्वाध्यायशील धार्मिक पुरुष को पवित्र करतीं और शरीर को नीरोग रखकर अनेक सुन्दर भोज्य पदार्थों को प्राप्त कराती हैं और मुक्तिधाम तक पहुँचाती हैं, क्योंकि वेदवाणी परमात्मा की दिव्यवाणी है उसका श्रवण, मनन और निदिध्यासन करने से परमात्मा का ज्ञान और सब दुःखों का भञ्जन करनेवाली परमात्मा की परा- भक्ति प्राप्त होती है। इसी से अधिकारी मुमुक्षु मोक्ष धाम को प्राप्त होता है ।
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