Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 234
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
1

त्वा꣡मिद्धि हवा꣢꣯महे सा꣣तौ꣡ वाज꣢꣯स्य का꣣र꣡वः꣢ । त्वां꣢ वृ꣣त्रे꣡ष्वि꣢न्द्र꣣ स꣡त्प꣢तिं꣣ न꣢र꣣स्त्वां꣢꣫ काष्ठा꣣स्व꣡र्व꣢तः ॥२३४॥

स्वर सहित पद पाठ

त्वा꣢म् । इत् । हि । ह꣡वा꣢꣯महे । सा꣣तौ꣢ । वा꣡ज꣢꣯स्य । का꣣र꣡वः꣢ । त्वाम् । वृ꣣त्रे꣡षु꣢ । इ꣣न्द्र । स꣡त्प꣢꣯तिम् । सत् । प꣣तिम् । न꣡रः꣢꣯ । त्वाम् । का꣡ष्ठा꣢꣯सु । अ꣡र्व꣢꣯तः ॥२३४॥


स्वर रहित मन्त्र

त्वामिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः । त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः ॥२३४॥


स्वर रहित पद पाठ

त्वाम् । इत् । हि । हवामहे । सातौ । वाजस्य । कारवः । त्वाम् । वृत्रेषु । इन्द्र । सत्पतिम् । सत् । पतिम् । नरः । त्वाम् । काष्ठासु । अर्वतः ॥२३४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 234
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
Acknowledgment

पदार्थ -

शब्दार्थ = हे  ( इन्द्र ) = परमेश्वर  ( अर्वतः नरः ) = अश्वादि पर चढ़नेवाले वीर नर ( वृत्रेषु त्वाम् ) = शत्रुओं से घेरे जाने पर आपका ही सहारा लेते हैं, ( काष्ठासु ) = सब दिशाओं में  ( सत्पतिम् त्वाम् ) = महात्मा सन्त जनों के पालक और रक्षक,आपको ही भजते हैं इसलिए  ( कारव: ) = आपकी स्तुति करनेवाले हम भी  ( वाजस्य सातौ ) = बल के दान निमित्त  ( त्वाम् इत् हि ) = केवल आपको ही  ( हवामहे ) = पुकारते हैं।

भावार्थ -

भावार्थ = हे प्रभो ! सब दिशाओं में सन्तजनों के रक्षक आप परमेश्वर को जैसे शत्रुओं से घेरे जाने पर बल प्राप्ति के लिए वीर पुरुष पुकारते हैं, ऐसे ही हम आपके सेवक भक्तजन भी काम क्रोधादि शत्रुओं से घेरे जाने पर, उनको जीतने के लिए आपसे ही बल माँगते हैं। दयामय ! जो आपकी शरण आता है खाली नहीं जाता। हम भी आपकी शरण आये हैं हम अपने भक्तों को आपकी आज्ञा रूप वेदों में दृढ़ विश्वासी और जगत् का उपकारक बनाओ, हम नास्तिक और स्वार्थी कभी न बनें, ऐसी कृपा करो ।

इस भाष्य को एडिट करें
Top