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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 27
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    मधु॒ वाता॑ऽ ऋताय॒ते मधु॑ क्षरन्ति॒ सिन्ध॑वः। माध्वी॑र्नः स॒न्त्वोष॑धीः॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑। वाताः॑। ऋ॒ता॒य॒ते। ऋ॒त॒य॒त इत्यृ॑तऽय॒ते। मधु॑। क्ष॒र॒न्ति॒। सिन्ध॑वः। माध्वीः॑। नः॒। स॒न्तु॒। ओष॑धीः ॥२७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधु वाताऽऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मधु। वाताः। ऋतायते। ऋतयत इत्यृतऽयते। मधु। क्षरन्ति। सिन्धवः। माध्वीः। नः। सन्तु। ओषधीः॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 27
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    भावार्थ -
    ( मधु ) मधुर ( वाता: ) वायुएं ( ऋतायते ) जल के समान शीतल लगें । अथवा ( ऋतायते ) सत्य ज्ञान, यज्ञ की, ब्रह्मचर्य की साधना या कामना करने वाले के लिये ( वाता: ) वायुएं और (सिन्धवः) समुद्र भी ( मधु चरन्ति ) मधुर रस ही बहाते हैं। (नः) हमें (औषधीः) ओषधियें भी (माध्वी :) मधुर रस से पूर्ण (सन्तु) हों ॥ शत० ७।५।१।३।४॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गोतम ऋषिः। विश्वेदेवा देवताः । निचृद्गायत्री षड्जः ॥

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