ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 73/ मन्त्र 10
इ॒मा ब्रह्मा॑णि॒ वर्ध॑ना॒श्विभ्यां॑ सन्तु॒ शंत॑मा। या तक्षा॑म॒ रथाँ॑इ॒वावो॑चाम बृ॒हन्नमः॑ ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मा । ब्रह्मा॑णि । वर्ध॑ना । अ॒श्विऽभ्या॑म् । स॒न्तु॒ । शम्ऽत॑मा । या । तक्षा॑म । रथा॑न्ऽइव । अवो॑चाम । बृ॒हत् । नमः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा ब्रह्माणि वर्धनाश्विभ्यां सन्तु शंतमा। या तक्षाम रथाँइवावोचाम बृहन्नमः ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठइमा। ब्रह्माणि। वर्धना। अश्विऽभ्याम्। सन्तु। शम्ऽतमा। या। तक्षाम। रथान्ऽइव। अवोचाम। बृहत्। नमः ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 73; मन्त्र » 10
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
विषय - missing
भावार्थ -
भा०- (या ) जिन ( ब्रह्माणि ) धनों, ज्ञानों और उत्तम अन्नों को हम ( रथान् इव ) रथों और नाना रम्य पदार्थों के समान ( तक्षाम ) उत्पन्न करते और बनाते हैं वे ( अश्विभ्यां ) जितेन्द्रिय रथी सारथिवत् राजा रानी, गृहपति पत्नी आदि स्त्री पुरुषों को (वर्धना ) बढ़ाने वाले होकर ( शन्तमा ) अत्यन्त शान्तिदायक ( सन्तु ) हों। हम आप दोनों का ( बृहत् नमः ) बड़ा उत्तम आदरसूचक नमस्कार का वचन ( अवोचाम ) कहा करें । इति द्वादशो वर्गः ॥
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - पौर आत्रेय ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः - १, २, ४, ५, ७ निचृद-नुष्टुप् ॥ ३, ६, ८,९ अनुष्टुप् । १० विराडनुष्टुप् ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥
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