ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒ते सोमा॑स आ॒शवो॒ रथा॑ इव॒ प्र वा॒जिन॑: । सर्गा॑: सृ॒ष्टा अ॑हेषत ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । सोमा॑सः । आ॒शवः॑ । रथाः॑ऽइव । प्र । वा॒जिनः॑ । सर्गाः॑ । सृ॒ष्टाः । अ॒हे॒ष॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते सोमास आशवो रथा इव प्र वाजिन: । सर्गा: सृष्टा अहेषत ॥
स्वर रहित पद पाठएते । सोमासः । आशवः । रथाःऽइव । प्र । वाजिनः । सर्गाः । सृष्टाः । अहेषत ॥ ९.२२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
विषय - पवमान सोम। वीरों, विद्यार्थियों, विद्वानों का रथों के तुल्य उत्साहपूर्वक आगे बढ़ना।
भावार्थ -
(एते) ये (सोमासः) उत्पन्न होने वाले जीव गण और कार्य में नियुक्त वीर जन, शिष्य गण और विद्वान् पुरुप (रथाः इव) रथों के समान (आशवः) शीघ्र गति से जाने वाले, क्षिप्रकारी और (वाजिनः) देह में प्राणों के समान बलवान्, ज्ञानवान् होकर (सृष्टाः) छोड़े जाकर (सर्गाः) जल धाराओं के समान (प्र अहेषत) उत्तम ध्वनि करते वा खूब वेग से जाते हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २ गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ४-७ निचृद गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
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