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अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 8/ मन्त्र 1
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - साम्नी उष्णिक्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
सोऽर॑ज्यत॒ ततो॑राज॒न्योऽजायत ॥
स्वर सहित पद पाठस: । अ॒र॒ज्य॒त॒ । तत॑: । राज॒न्य᳡: । अ॒जा॒य॒त॒ ॥८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
सोऽरज्यत ततोराजन्योऽजायत ॥
स्वर रहित पद पाठस: । अरज्यत । तत: । राजन्य: । अजायत ॥८.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
विषय - व्रात्य राजा।
भावार्थ -
(सः) वह व्रात्य प्रजापति (अरज्यत) सबका प्रेमपात्र हो रहा। (ततः) उसके बाद, उसी कारण से वह (राजन्यः अजायत) राजन्य अर्थात् राजा हुआ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १ साम्नी उष्णिक्, २ प्राजापत्यानुष्टुप् ३ आर्ची पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥
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