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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 3

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 3/ मन्त्र 1
    सूक्त - आदित्य देवता - आसुरी गायत्री छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    मू॒र्धाहंर॑यी॒णां मू॒र्धा स॑मा॒नानां॑ भूयासम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मू॒र्धा । अ॒हम्। र॒यी॒णाम् । मू॒र्धा । स॒मा॒नाना॑म् । भू॒या॒स॒म् ॥३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मूर्धाहंरयीणां मूर्धा समानानां भूयासम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मूर्धा । अहम्। रयीणाम् । मूर्धा । समानानाम् । भूयासम् ॥३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 3; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (रयीणाम्) समस्त रयि, एैश्वर्यों और बलों का (अहम्) मैं (मूर्धा) शिरोमणि अधिष्ठाता, उनका बांधने वाला स्वामी बनूं। और (समानानाम्) अपने समान बल एैश्वर्य वालों में भी सब का (मूर्धा) शिरोमणि मैं ही (भूयासम्) हो जाऊं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्माऋषिः। आदित्यो देवता। १ आसुरी गायत्री, २, ३ आर्च्यनुष्टुभौ, ५ प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ५ साम्नी उष्णिक, ६ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्। षडृयं तृतीयं पर्यायसूक्तम्।

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