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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 11

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 11/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा, भृग्वङ्गिराः देवता - इन्द्राग्नी, आयुः, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायुप्राप्ति सूक्त

    मु॒ञ्चामि॑ त्वा ह॒विषा॒ जीव॑नाय॒ कम॑ज्ञातय॒क्ष्मादु॒त रा॑जय॒क्ष्मात्। ग्राहि॑र्ज॒ग्राह॒ यद्ये॒तदे॑नं॒ तस्या॑ इन्द्राग्नी॒ प्र मु॑मुक्तमेनम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मु॒ञ्चामि॑ । त्वा॒ । ह॒विषा॑ । जीव॑नाय । कम् । अ॒ज्ञा॒त॒ऽय॒क्ष्मात् । उ॒त । रा॒ज॒ऽय॒क्ष्मात् । ग्राहि॑: । ज॒ग्राह॑ । यदि॑ । ए॒तत् । ए॒न॒म् । तस्या॑: । इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑ । प्र । मु॒मु॒क्त॒म् । ए॒न॒म् ॥११.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मुञ्चामि त्वा हविषा जीवनाय कमज्ञातयक्ष्मादुत राजयक्ष्मात्। ग्राहिर्जग्राह यद्येतदेनं तस्या इन्द्राग्नी प्र मुमुक्तमेनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मुञ्चामि । त्वा । हविषा । जीवनाय । कम् । अज्ञातऽयक्ष्मात् । उत । राजऽयक्ष्मात् । ग्राहि: । जग्राह । यदि । एतत् । एनम् । तस्या: । इन्द्राग्नी इति । प्र । मुमुक्तम् । एनम् ॥११.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 11; मन्त्र » 1

    भावार्थ -

    बालकों और घर के रोगग्रस्त पुरुषों के आरोग्य रखने और दीर्घायु होने के उपायों का उपदेश करते हैं । हे बालक ! (त्वा) तुझ को मैं गृहपति (जीवनाय) सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कराने के लिये (हविषा) सुगन्धित पुष्टिकारक चरु द्वारा (अज्ञातयक्ष्माद्) अज्ञात स्वरूप वाले, संग दोष से लगने वाले रोग से और (उत राजयक्ष्मात्) तपेदिक जैसे भयंकर, शोषक रोग से भी (मुञ्चामि) बचाये रक्खूं । (यदि) यदि (एनं) इस बालक को (ग्राहिः) सब अंगों को पकड़ लेने वाला, मसाने का रोग या शीत-वात रोग भी (जग्राह) पकड़ ले तो भी (इन्द्राग्नी) इन्द्रः= शुद्ध वायु या सूर्य का आतप या विद्युत् और अग्निः=होमाग्नि या सेक दोनों (एनं) इस बालक को (तस्याः) उस रोग से (प्र मुमुक्तम्) मुक्त करें । प्राभातिक वायु, उषा कालिक सूर्य-प्रभा, सेक और होमाग्नि बालकों को सब रोगों से मुक्त करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    ब्रह्मा भृग्वङ्गिराश्च ऋषि । ऐन्द्राग्न्युषसो यक्ष्मनाशनो वा देवता । ४ शक्वरीगर्भा जगती । ५, ६ अनुष्टुभौ । ७ उष्णिग् बृहतीगर्भा । पण्यापक्तिः । ८ त्र्यवसाना षट्पदा बृहतीगर्भा जगती । १ - ३ त्रिष्टुभः । अष्टर्चं सूक्तम् ।

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