Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 23

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - चन्द्रमाः, योनिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वीरप्रसूति सूक्त

    येन॑ वे॒हद्ब॒भूवि॑थ ना॒शया॑मसि॒ तत्त्वत्। इ॒दं तद॒न्यत्र॒ त्वदप॑ दू॒रे नि द॑ध्मसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । वे॒हत् । ब॒भूवि॑थ । ना॒शया॑मसि । तत् । त्वत् । इ॒दम् । तत् । अ॒न्यत्र॑ । त्वत् । अप॑ । दू॒रे । नि । द॒ध्म॒सि॒ ॥२३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन वेहद्बभूविथ नाशयामसि तत्त्वत्। इदं तदन्यत्र त्वदप दूरे नि दध्मसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । वेहत् । बभूविथ । नाशयामसि । तत् । त्वत् । इदम् । तत् । अन्यत्र । त्वत् । अप । दूरे । नि । दध्मसि ॥२३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 23; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे नारि ! (येन) जिस कारण से (वेहद्) तू बांझ या को पुत्र को उत्पन्न करने में असमर्थ (बभूविथ) है (तत्) उस कारण को (त्वत्) तुझ से (नाशयामसि) हम दूर करते हैं। (इदं) इस (तद्) उस अप्रत्यक्ष कारण को (त्वद् अन्यत्र) तुझ से (दूर) दूर (अप नि दध्मसि) परे कर देते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। चन्द्रमा उत योनिर्देवता। ५ उपरिष्टाद-भुरिग्-बृहती । ६ स्कन्धोग्रीवी बृहती। १-४ अनुष्टुभः। षडृचं सूक्तम्।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top