अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
सूक्त - जगद्बीजं पुरुषः
देवता - अश्वत्थः (वनस्पतिः)
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
पुमा॑न्पुं॒सः परि॑जातोऽश्व॒त्थः ख॑दि॒रादधि॑। स ह॑न्तु॒ शत्रू॑न्माम॒कान्यान॒हं द्वेष्मि॒ ये च॒ माम् ॥
स्वर सहित पद पाठपुमा॑न् । पुं॒स: । परि॑ऽजात: । अ॒श्व॒त्थ: । ख॒दि॒रात् । अधि॑ । स: । ह॒न्तु॒ । शत्रू॑न् । मा॒म॒कान् । यान् । अ॒हम् । द्वेष्मि॑ । ये । च॒ । माम् ॥६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पुमान्पुंसः परिजातोऽश्वत्थः खदिरादधि। स हन्तु शत्रून्मामकान्यानहं द्वेष्मि ये च माम् ॥
स्वर रहित पद पाठपुमान् । पुंस: । परिऽजात: । अश्वत्थ: । खदिरात् । अधि । स: । हन्तु । शत्रून् । मामकान् । यान् । अहम् । द्वेष्मि । ये । च । माम् ॥६.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
विषय - वीर सैनिकों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
जिस प्रकार (खदिराद् अधि) खदिर नामक वृक्ष पर (परिजातः) उत्पन्न हुआ (अश्वत्थः) पीपल का वृक्ष गुणों में अति अधिक हो जाता है उसी प्रकार (पुंसः) वीर्यवान् पुरुष से उत्पन्न हुआ (पुमान्) वीर्यवान् पुरुष भी बड़ा गुणी, बलवान् और निर्भय होता है । राजा ऐसे पुरुषों से यह आशा करे कि (सः) वह वीर पिता के वीर्य से उत्पन्न, वीर पुरुष (अश्वत्थः) अश्व पर आरूढ़ होकर या अश्व सैन्य का प्रमुख होकर (मामकान्) मेरे उन (शत्रून्) शत्रुओं को (हन्तु) विनाश करे (यान्) जिनको (अहं) मैं (द्वेष्मि) प्रेमभाव से नहीं देखता और साथ ही (ये च) और जो (माम्) मुझ से भी द्वेष करते हैं ।
जिस प्रकार वैद्य तीक्ष्णवीर्य ओषधि को प्राप्त करने की इच्छा से ऐसे पीपल को खोजता है जो तीक्ष्णवीर्य खदिर पर उत्पन्न हुआ हो उसी प्रकार राजा भी युद्ध में शत्रु के विजय के लिये ऐसे पुरुषों को अपनी सेना में ले जिनके पूर्व पुरुषा, मां बाप बलशाली, वीर्यवान् हों। उनके संस्कार साहस के कार्यों में प्रबल होते हैं । ऐसे पुरुषों को अश्वस्थ से उपमा देने के कारण उनको उसी प्रकार का जो चिह्न धारण कराया जावे उसका भी नाम ‘अश्वत्थमणि’ समझना उचित है ।
टिप्पणी -
(प्र०) ‘परिजातो अश्वत्थः’ (च०) ‘यांश्चाहं’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - जगद्बीजं पुरुष ऋषिः । वनस्पतिरश्वत्थो देवता । अरिक्षयाय अश्वत्थदेवस्तुतिः । १-८ अनुष्टुभः । अष्टर्चं सूक्तम् ॥
इस भाष्य को एडिट करें