Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 116

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 116/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वाङ्गिराः देवता - चन्द्रमाः छन्दः - एकावसाना द्विपदार्च्यनुष्टुप् सूक्तम् - ज्वरनाशन सूक्त

    नमो॑ रू॒राय॒ च्यव॑नाय॒ नोद॑नाय धृ॒ष्णवे॑। नमः॑ शी॒ताय॑ पूर्वकाम॒कृत्व॑ने ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । रू॒राय॑ । च्यव॑नाय । नोद॑नाय । धृ॒ष्णवे॑ । नम॑: । शी॒ताय॑ । पू॒र्व॒का॒म॒ऽकृत्व॑ने ॥१२१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो रूराय च्यवनाय नोदनाय धृष्णवे। नमः शीताय पूर्वकामकृत्वने ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । रूराय । च्यवनाय । नोदनाय । धृष्णवे । नम: । शीताय । पूर्वकामऽकृत्वने ॥१२१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 116; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (रूराय) रोगी को तड़पाने वाले, (च्यवनाय) बल वीर्य के नाशक (नोदनाय) धक्का लगाने वाले (धृष्णवे) मनुष्य को निराश करने वाले (पूर्वकाम-कृत्वने) मनुष्य की पूर्व की अभिलाषाओं या पूर्णकार्य, वीर्य, बलको काट डालनेवाले (शीताय) शीतज्वर के (नमः नमः) नाना उपाय करो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। चन्द्रमाः देवता। १ परा उष्णिक्। २ एकावसानाद्विपदा आर्ची अनुष्टुप्। द्वयृचं सक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top