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अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
अदि॑ति॒र्द्यौरदि॑तिर॒न्तरि॑क्ष॒मदि॑तिर्मा॒ता स पि॒ता स पु॒त्रः। विश्वे॑ दे॒वा अदि॑ति॒र्पञ्च॒ जना॒ अदि॑तिर्जा॒तमदि॑ति॒र्जनि॑त्वम् ॥
स्वर सहित पद पाठअदि॑ति: । द्यौ: । अदि॑ति: । अ॒न्तरि॑क्षम् । अदि॑ति: । मा॒ता । स: । पि॒ता । स । पु॒त्र: । विश्वे॑ । दे॒वा: । अदि॑ति: । पञ्च॑ । जना॑: । अदि॑ति: । जा॒तम् । अदि॑ति: । जनि॑त्वम् ॥६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः। विश्वे देवा अदितिर्पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥
स्वर रहित पद पाठअदिति: । द्यौ: । अदिति: । अन्तरिक्षम् । अदिति: । माता । स: । पिता । स । पुत्र: । विश्वे । देवा: । अदिति: । पञ्च । जना: । अदिति: । जातम् । अदिति: । जनित्वम् ॥६.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
विषय - आत्मज्ञान का उपदेश।
भावार्थ -
(द्यौः) द्युलोक (अदितिः) अदिति, अदीन, अखंडित, अविनाशी प्रकृति का बना है। (अन्तरिक्षम्) यह अन्तरिक्ष भी (अदितिः) उसी अविनाशी प्रकृति का बना है। (माता) सब पदार्थों को बनाने वाली उनकी माता यह पृथिवी भी (अदितिः) प्रकृति ही है। (सः पिता) इस संसार का पालन करने वाला सूर्य भी (अदितिः) प्राकृतिक है, (सः पुत्रः) वह पुत्र अर्थात् पृथिवी सूर्य से उत्पन्न मेघ आदि भी प्रकृति के बने हैं। (विश्वे देवाः अदितिः) समस्त दिव्य शक्तियों से युक्त पदार्थ सूर्य, चन्द्र आदि अथवा पृथिवी, अप्, तेज, वायु, आकाश आदि भूत या महत्तत्व आदि विकार सब (अदितिः) प्रकृति ही हैं, (पंचजनाः अदितिः) पंचजन=ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, निषाद अथवा देव, मनुष्य, गन्धर्व, अप्सरस्, सर्प और पित्तर ये सब जीव भी प्रकृति गुणों के भेद से उत्पन्न होते हैं, (जातम्) जो पदार्थ उत्पन्न होने वाला है वह सब (अदितिः) प्रकृति ही है, (जनित्वम्) अर्थात् उत्पत्ति का आधार ही (अदितिः) प्रकृति है। अथवा अविनाशशील परमात्मशक्ति को ‘अदिति’ कहा गया है। यह द्यौ, अन्तरिक्ष, माता, पिता, पुत्र, पंचभूत, पञ्चजन, संसार इत्यादि सब पदार्थ उसी ब्रह्म की शक्ति का विलास हैं।
टिप्पणी -
अजमेरमुद्रितसंहितायां सूक्तमिदं चतुर्ऋचं पठ्यते पञ्चपटलिकानुसारम्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
अथर्वा ऋषिः। यजुर्वेदे १ प्रजापतिर्ऋषिः, २ वामदेवः। ऋग्वेदे गोतमो । राहूगण ऋषिः। अदितिर्देवता । त्रिष्टुप्। १ भुरिक्। ३, ४ विराड्-जगत्यौ। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
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