ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 33/ मन्त्र 3
पुन॒र्ये च॒क्रुः पि॒तरा॒ युवा॑ना॒ सना॒ यूपे॑व जर॒णा शया॑ना। ते वाजो॒ विभ्वाँ॑ ऋ॒भुरिन्द्र॑वन्तो॒ मधु॑प्सरसो नोऽवन्तु य॒ज्ञम् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठपुनः॑ । ये । च॒क्रुः । पि॒तरा॑ । युवा॑ना । सना॑ । यूपा॑ऽइव । ज॒र॒णा । शया॑ना । ते । वाजः॑ । विऽभ्वा॑ । ऋ॒भुः । इन्द्र॑वन्तः॑ । मधु॑ऽप्सरसः । नः॒ । अ॒व॒न्तु॒ । य॒ज्ञम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनर्ये चक्रुः पितरा युवाना सना यूपेव जरणा शयाना। ते वाजो विभ्वाँ ऋभुरिन्द्रवन्तो मधुप्सरसो नोऽवन्तु यज्ञम् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठपुनः। ये। चक्रुः। पितरा। युवाना। सना। यूपाऽइव। जरणा। शयाना। ते। वाजः। विऽभ्वा। ऋभुः। इन्द्रऽवन्तः। मधुऽप्सरसः। नः। अवन्तु। यज्ञम् ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 33; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
विषय - वाज, विम्वा ऋभु, इन का रहस्य ।
भावार्थ -
(पुनः) और (ये) जो (यूपा इव) ‘यूप’ अर्थात् स्तम्भों के समान दृढ़ (युवानौ पितरौ) युवा माता पिता को (सना) उत्तम दानशील, (जरणा) जीर्ण, वृद्ध और (शयाना) मृत्युशय्या पर सोने वाला (चक्रुः) कर देते हैं अर्थात् जो माता पिता की वृद्धावस्था और मृत्यु पर्यन्त सेवा करते हैं (ते) वे (वाजः) बलवान्, ज्ञानवान्, (विभ्वा) बड़े भारी ज्ञान से वा व्यापक, शक्तिमान् परमेश्वर के अनुग्रह से युक्त, (ऋभुः) और ऋत, सत्य ज्ञान से प्रकाशित, अति तेजस्वी ये सभी (इन्द्रवन्तः) ऐश्वर्यवान्, ज्ञानवान्, गुरु आदि अज्ञान नाशक जनों वाले, (मधु-प्सरसः) मधुर, सौम्यमुख एवं मधु, ज्ञान और उत्तम अन्न जल का उपयोग करने वाले, सात्त्विक पुरुष (नः यज्ञम् अवन्तु) हमारे यज्ञ, मैत्रीभाव, सत्संगति, ज्ञान, धनादि के दानादान और गुरु जनों के पूजा सत्कार आदि कर्मों की (अवन्तु) रक्षा करें । (२) राष्ट्र तीन प्रकार के मुख्य व्यक्ति हों (१) ‘वाज’ जो बलवान् हो, (२) विम्वा विशेष सामर्थ्य और ऐधर्यवान्, सत्तावान्, (३) ‘ऋभु’ सत्य न्यायवान् वे सब अपने अपने ऊपर इन्द्र राजा को धारण करें । मधु मक्खियों से संगृहीत मधु के तुल्य समस्त प्रजा से संगृहीत करके उसपर उपयोग वेतनादि प्राप्त करें। वे राष्ट्र के राजा प्रजा व्यवहार, संगति आदी की रक्षा करें।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वामदेव ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्द:- १ भुरिक् त्रिष्टुप् । २, ४, ५, ११ त्रिष्टुप् । ३, ६, १० निचृत्त्रिष्टुप। ७, ८ भुरिक् पंक्तिः । ९ स्वराट् पंक्तिः॥
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