यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 11
ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः
देवता - लिङ्गोक्ता देवताः
छन्दः - अतिशक्वरी
स्वरः - पञ्चमः
1
अहा॑नि॒ शं भव॑न्तु नः॒ शꣳ रात्रीः॒ प्रति॑ धीयताम्।शन्न॑ऽ इन्द्रा॒ग्नी भ॑वता॒मवो॑भिः॒ शन्न॒ऽ इन्द्रा॒वरु॑णा रा॒तह॑व्या।शन्न॑ऽ इन्द्रापू॒षणा॒ वाज॑सातौ॒ शमिन्द्रा॒सोमा॑ सुवि॒ताय॒ शंयोः॥११॥
स्वर सहित पद पाठअहा॑नि। शम्। भव॑न्तु। नः॒। शम्। रात्रीः॑। प्रति॑। धी॒य॒ता॒म्। शम्। नः॒ इ॒न्द्रा॒ग्नी इती॑न्द्रा॒ग्नी। भ॒व॒ता॒म्। अवो॑भि॒रित्यवः॑ऽभिः। शम्। नः॒। इ॒न्द्रा॒वरु॑णा। रा॒तह॒व्येति॑ रा॒तऽह॑व्या। शम्। नः॒। इ॒न्द्रा॒पू॒षणा॑। वाज॑साता॒विति॒ वाज॑ऽसातौ। शम्। इन्द्रा॒सोमा॑। सु॒वि॒ताय॑। शंयोः ॥११ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अहानि शम्भवन्तु नः शँ रात्रीः प्रति धीयताम् । शन्न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शन्न इन्द्रावरुणा रातहव्या । शन्न इन्द्रापूषणा वाजसातौ शमिन्द्रासोमा सुविताय शँयोः ॥
स्वर रहित पद पाठ
अहानि। शम्। भवन्तु। नः। शम्। रात्रीः। प्रति। धीयताम्। शम्। नः इन्द्राग्नी इतीन्द्राग्नी। भवताम्। अवोभिरित्यवःऽभिः। शम्। नः। इन्द्रावरुणा। रातहव्येति रातऽहव्या। शम्। नः। इन्द्रापूषणा। वाजसाताविति वाजऽसातौ। शम्। इन्द्रासोमा। सुविताय। शंयोः॥११॥
विषय - प्रार्थनाविषयः
व्याखान -
हे क्षणादिकालपते! (अहानि, शं, भवन्तु, नः) आपके नियम से [नियन्त्रित] सब दिवस हमको सुखरूप ही हों, (शम्, रात्री:, प्रतिधीयताम्) हे भगवन् ! हमारे लिए सर्वरात्रियाँ भी आनन्द से बीतें। दिन और रात्रियों को हमारे लिए सुखकारक ही आप धारण करो, जिससे सब समय में हम लोग सुखी ही रहें । हे सर्वस्वामिन् ! (इन्द्राग्नी) सूर्य तथा अग्नि–ये दोनों (नः) हमको आपके अनुग्रह से और नानाविध रक्षाओं से (शम् भवताम्) सुखकारक हों । (इन्द्रावरुणा रातहव्या) हे प्राणाधार! आपकी प्रेरणा से होम से शुद्धगुणयुक्त हुए वायु और चन्द्र (नः) हम लोगों के लिए (शम्) सुखरूप ही सदा हों। (इन्द्रापूषणा, वाजसातौ) हे प्राणपते ! आपकी रक्षा से पूर्ण आयु और बलयुक्त प्राणवाले तथा अत्यन्त पुरुषार्थयुक्त [होके] हम लोग अपने युद्ध में स्थिर रहें, जिससे शत्रुओं के सम्मुख हम निर्बल कभी न हों (इन्द्रासोमा सुविताय शंयो:) [प्राणापानौ वा इन्द्राग्नी इत्यादि शतपथे'] हे महाराज ! आपके प्रबन्ध से [ शासित होकर] राजा और प्रजा परस्पर विद्यादि सत्यगुणयुक्त होके अपने ऐश्वर्य का उत्पादन करें तथा आपकी कृपा से परस्पर प्रीतियुक्त हों [तथा] अत्यन्त सुख-लाभों को प्राप्त हों । हम पुत्र लोगों को सुखी देखके आप अत्यन्त प्रसन्न हों और हम भी प्रसन्नता से आप और आपकी जो सत्य आज्ञा है, उसमें ही तत्पर हों ॥ २३ ॥ ।
टिपण्णी -
१. गोपथ उ० २।१
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