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यजुर्वेद अध्याय - 38

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  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 20
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    चतुः॑स्रक्ति॒र्नाभि॑र्ऋ॒तस्य॑ स॒प्रथाः॒ स नो॑ वि॒श्वायुः॑ स॒प्रथाः॒ स नः॑ स॒र्वायुः॑ स॒प्रथाः॑।अप॒ द्वे॒षो॒ऽअप॒ ह्वरो॒ऽन्यव्र॑तस्य सश्चिम॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चतुः॑स्रक्ति॒रिति॒ चतुः॑ऽस्रक्तिः। नाभिः॑। ऋ॒तस्य॑। स॒प्रथा॒ इति॑ स॒ऽप्रथाः॑। सः। नः॒। वि॒श्वायु॒रिति॑ वि॒श्वऽआ॑युः। स॒प्रथा॒ इति॑ स॒ऽप्रथाः॑। सः। नः॒। स॒र्वायु॒रिति॑ स॒र्वऽआ॑युः। स॒प्रथा॒ इति॑ स॒ऽप्रथाः॑ ॥ अप॑। द्वेषः॑। अप॑। ह्वरः॑। अ॒न्यव्र॑त॒स्येत्य॒न्यऽव्र॑तस्य। स॒श्चि॒म॒ ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चतुःस्रक्तिर्नाभिरृतस्य सप्रथाः स नो विश्वायुः सप्रथाः स नः सर्वायुः सप्रथाः । अप द्वेषोऽअप ह्वरोन्यव्रतस्य सश्चिम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    चतुःस्रक्तिरिति चतुःऽस्रक्तिः। नाभिः। ऋतस्य। सप्रथा इति सऽप्रथाः। सः। नः। विश्वायुरिति विश्वऽआयुः। सप्रथा इति सऽप्रथाः। सः। नः। सर्वायुरिति सर्वऽआयुः। सप्रथा इति सऽप्रथाः॥ अप। द्वेषः। अप। ह्वरः। अन्यव्रतस्येत्यन्यऽव्रतस्य। सश्चिम॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 20
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    व्याखान -

    हे महावैद्य ! सर्वरोगनाशकेश्वर ! चार कोणेवाली नाभि [मर्मस्थान] (ऋतस्य) ऋत [रस] की भरी, नैरोग्य और विज्ञान का घर (सप्रथा:)  विस्तीर्ण और सुखयुक्त आपकी कृपा से हो तथा आपकी कृपा से (विश्वायुः) पूर्ण आयु हो। आप जैसे (सप्रथाः) सर्वसामर्थ्य से विस्तीर्ण हो, वैसे ही (नः, सर्वायुः सप्रथा:)  विस्तृत सुखयुक्त विस्तारसाहित सर्वायु हमको दीजिए। हे शान्तस्वरूप ! हम (अपद्वेषः) आपकी कृपा से द्वेषरहित तथा (अपह्वरः) चलन – [कम्पन] -रहित हों, आपकी आज्ञा और आपसे भिन्न को लेशमात्र भी ईश्वर न मानें, यही हमारा व्रत है, (अन्यव्रतस्य) इससे अन्य व्रत को कभी न माने, किन्तु आपको (सश्चिम) सदा सेवें, यही हमारा परमनिश्चय है । इस परमनिश्चय की रक्षा आप ही स्वकृपा से करें ॥ ४१ ॥

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