Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 30

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 3
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    2

    विश्वा॑नि देव सवितर्दुरि॒तानि॒ परा॑ सुव। यद्भ॒द्रं तन्न॒ऽआ सु॑व॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वा॑नि। दे॒व॒। स॒वि॒तः॒। दु॒रि॒तानीति॑ दुःऽइ॒तानि॑। परा॑। सु॒व॒। यत्। भ॒द्रम्। तत्। नः॒। आ। सु॒व॒ ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव । यद्भद्रन्तन्नऽआ सुव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वानि। देव। सवितः। दुरितानीति दुःऽइतानि। परा। सुव। यत्। भद्रम्। तत्। नः। आ। सुव॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    व्याख्यानम् -

    हे सच्चिदानन्दानन्तस्वरूप! हे परमकारुणिक! हे अनन्तविद्य! हे विद्याविज्ञानप्रद! (देव) हे सूर्यादिसर्वजगद्विद्याप्रकाशक! हे सर्वानन्दप्रद! (सवितः) हे सकलजगदुत्पादक! (नः) अस्माकम् (विश्वानि) सर्वाणि (दुरितानि) दुःखानि सर्वान्दुष्टगुणांश्च (परा सुव) दूरे गमय, (यद्भद्रम्) यत्कल्याणं सर्वदुःखरहितं सत्यविद्याप्राप्त्याऽभ्युदयनिःश्रेयस्सुखकरं भद्रमस्ति (तन्नः) अस्मभ्यं (आ सुव) आ समन्तादुत्पादय कृपया प्रापय।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top