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यजुर्वेद अध्याय - 36

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  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 17
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - भुरिक्छक्वरी स्वरः - धैवतः
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    द्यौः शान्ति॑र॒न्तरि॑क्ष॒ꣳ शान्तिः॑ पृथि॒वी शान्ति॒रापः॒ शान्ति॒रोषध॑यः॒ शान्तिः॑। वन॒स्पत॑यः॒ शान्ति॒र्विश्वे॑ दे॒वाः शान्ति॒र्ब्रह्म॒ शान्तिः॒ सर्व॒ꣳ शान्तिः॒ शान्ति॑रे॒व शान्तिः॒ सा मा॒ शान्ति॑रेधि॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यौः। शान्तिः॑। अ॒न्तरि॑क्षम्। शान्तिः॑। पृ॒थि॒वी। शान्तिः॑। आपः॑। शान्तिः॑। ओष॑धयः। शान्तिः॑ ॥ वन॒स्पत॑यः। शान्तिः॑। विश्वे॑। दे॒वाः। शान्तिः॑। ब्रह्म॑। शान्तिः॑। सर्व॑म्। शान्तिः॑। शान्तिः॑। ए॒व। शान्तिः॑। सा। मा॒। शान्तिः॑। ए॒धि॒ ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्यौः शान्तिरन्तरिक्षँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्वँ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    द्यौः। शान्तिः। अन्तरिक्षम्। शान्तिः। पृथिवी। शान्तिः। आपः। शान्तिः। ओषधयः। शान्तिः॥ वनस्पतयः। शान्तिः। विश्वे। देवाः। शान्तिः। ब्रह्म। शान्तिः। सर्वम्। शान्तिः। शान्तिः। एव। शान्तिः। सा। मा। शान्तिः। एधि॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 17
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    व्याखान -

    हे समस्त दुःख हरु लाई शान्ति प्रदागर्नु हुने प्रभो ! द्यौः शान्तिः सबै लोक हरु भन्दा माथि जुन आकाश छ त्यो हाम्रा लागी सर्वदा शान्त [निरुपद्रव] सुख कारक नै रहोस् । अन्तरिक्षम् शान्तिः अन्तरिक्ष=मध्यस्थलोक र तेसमा रहने वायु आदि पदार्थ, पृथिवी शान्तिः पृथिवी र पृथिवीस्थ पदार्थ, = आपः शान्तिः = जल र जलस्थ पदार्थ, ओषधयः शान्तिः = औषधी र तेसमा रहने गुण हरु, वनस्पतयः शान्तिः = वनस्पति र वनस्पतिस्थ गुण हरु, विश्वेदेवाः शान्तिः = जगत् का सबै विद्वान् तथा विश्वद्योतक वेदमन्त्र हरु, इन्द्रिय, सूर्यादि र तिनका किरण र तत्रस्थ गुण हरु ब्रह्म शान्तिः= ब्रह्म=परमात्मा तथा वेदशास्त्र, स्थूल तथा सूक्ष्म चराचर जगत् ई सबै पदार्थ हाम्रा लागी शान्ति प्रदायक हुन्, हे सर्व शक्ति मन् परमात्मन् ! तपाईंका कृपा ले शान्तिः एव शान्तिः = 'शान्ति अर्थात् निरुपद्रव सदा अनुकूल र सुखदायक हुन् । सा मा शान्तिः एधि = साथै मँलाई पनि त्यो शान्ति प्राप्त होस् जसले मँ पनि हजुर को कृपा ले शान्त, दुष्टक्रोधादि उपद्रव रहित हूँ तथा समस्त संसारस्थ जीव हरु पनि दुष्टक्रोधादि उपद्रव रहित हुन् ॥ २५ ॥
     

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