ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 166/ मन्त्र 1
तन्नु वो॑चाम रभ॒साय॒ जन्म॑ने॒ पूर्वं॑ महि॒त्वं वृ॑ष॒भस्य॑ के॒तवे॑। ऐ॒धेव॒ याम॑न्मरुतस्तुविष्वणो यु॒धेव॑ शक्रास्तवि॒षाणि॑ कर्तन ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । नु । वो॒चा॒म॒ । र॒भ॒साय॑ । जन्म॑ने । पूर्व॑म् । म॒हि॒त्वम् । वृ॒ष॒भस्य॑ । के॒तवे॑ । ऐ॒धाऽइ॑व । याम॑न् । म॒रु॒तः॒ । तु॒वि॒ऽस्व॒णः॒ । यु॒धाऽइ॑व । श॒क्राः॒ । त॒वि॒षाणि॑ । क॒र्त॒न॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तन्नु वोचाम रभसाय जन्मने पूर्वं महित्वं वृषभस्य केतवे। ऐधेव यामन्मरुतस्तुविष्वणो युधेव शक्रास्तविषाणि कर्तन ॥
स्वर रहित पद पाठतत्। नु। वोचाम। रभसाय। जन्मने। पूर्वम्। महित्वम्। वृषभस्य। केतवे। ऐधाऽइव। यामन्। मरुतः। तुविऽस्वणः। युधाऽइव। शक्राः। तविषाणि। कर्तन ॥ १.१६६.१
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 166; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ मरुच्छब्दार्थप्रतिपाद्यविदुषां गुणानाह ।
अन्वयः
हे तुविष्वणः शक्रा मरुतो युष्मान् प्रति वृषभस्य रभसाय केतवे जन्मने यत्पूर्वं महित्वं तद्वयं वोचाम यूयमैधेव यामन् युधेव तविषाणि निजकर्मभिर्नु कर्त्तन ॥ १ ॥
पदार्थः
(तत्) (नु) सद्यः (वोचाम्) उपदिशेम (रभसाय) वेगयुक्ताय (जन्मने) जाताय (पूर्वम्) (महित्वम्) महेर्महतो भावम् (वृषभस्य) श्रेष्ठस्य (केतवे) विज्ञानाय (ऐधेव) ऐधैः काष्ठैरिव (यामन्) यामनि मार्गे (मरुतः) मनुष्याः (तुविष्वणः) तुविर्बहुविधः स्वनो येषान्ते। अत्र व्यत्ययेनैकवचनम्। (युधेव) युद्धेनेव (शक्राः) शक्तिमन्तः (तविषाणि) बलानि (कर्त्तन) कुरुत ॥ १ ॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। विद्वांसो जिज्ञासून् प्रति वर्त्तमानजन्मनां प्राग्जन्मनाञ्च सञ्चितनिमित्तज्ञानं कार्यं दृष्ट्वोपदिशेयुः। यथा मनुष्याणां ब्रह्मचर्यजितेन्द्रियत्वादिभिः शरीरात्मबलानि पूर्णानि स्युस्तथा कुरुतेति च ॥ १ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अथ द्वितीयाष्टक के चतुर्थाध्याय और एकसौ छियासठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके आरम्भ से ही मरुच्छब्दार्थप्रतिपाद्य विद्वानों के गुणों को कहते हैं ।
पदार्थ
हे (तुविष्वणः) बहुत प्रकार के शब्दोंवाले (शक्राः) शक्तिमान् (मरुतः) मनुष्यो ! तुम्हारे प्रति (वृषभस्य) श्रेष्ठ सज्जन का (रभसाय) वेगयुक्त अर्थात् प्रबल (केतवे) विज्ञान (जन्मने) जो उत्पन्न हुआ उसके लिये जो (पूर्वम्) पहिला (महित्वम्) माहात्म्य (तत्) उसको हम (वोचाम) कहें उपदेश करें, तुम (ऐधवे) काष्ठों के समान वा (यामन्) मार्ग में (युधेव) युद्ध के समान अपने कर्मों से (तविषाणि) बलों को (नु) शीघ्र (कर्त्तन) करो ॥ १ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। विद्वान् जन जिज्ञासु जनों के प्रति वर्त्तमान जन्म और पूर्व जन्मों के सञ्चित कर्मों के निमित्त ज्ञान को उनके कार्यों को देख कर उपदेश करें। और जैसे मनुष्यों के ब्रह्मचर्य और जितेन्द्रियत्वादि गुणों से शरीर और आत्मबल पूरे हों, वैसे करें ॥ १ ॥
विषय
शक्ति व प्रभु का प्रकाश
पदार्थ
१. हे (मरुतः) = प्राणो! हम (नु) = अब आपके (तत्) = उस (पूर्वम् महित्वम्) = पूरण करनेवाली महिमा को अथवा [पूर्व = of the first rank] सर्वोत्कृष्ट महत्त्व को (वोचाम) = कहते हैं। आपकी साधना (रभसाय जन्मने) = प्रचण्डतायुक्त [robust] जीवन के लिए होती है। प्राणसाधना से जीवन शक्तिशाली बनता है। यह प्राणसाधना (वृषभस्य) = शक्तिशाली प्रभु के (केतवे) = ज्ञान के लिए होती है। प्राणसाधना से अशुद्धि का नाश होकर ज्ञानदीप्ति से आत्मा का साक्षात्कार होता है। २. हे (मरुतः) = प्राणो! तुम (यामन्) = इस जीवन-यात्रा में (ऐधा इव) = [तेजांसि इव] तेजस्विताओं के समान होते हो और (तुविष्वणः) = महान् स्वनवाले होते हो। इस प्राणसाधना से हृदय की मलिनता का नाश होकर हृदयस्थ प्रभु की महनीय प्रेरणा की वाणी सुनाई पड़ती है। ३. (शक्रा:) = हे शक्तिशाली प्राणो! तुम (युधा इव) = मानो युद्ध के द्वारा (तविषाणि) = बलों को (कर्तन) = उत्पन्न करते हो । प्राण वासनाओं के साथ युद्ध करके उनके पराजय के द्वारा हृदय में शक्ति का सञ्चार करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से जीवन शक्तियुक्त बनता है और प्रभु के प्रकाशवाला होता है ।
विषय
शिष्यों का गुरु के अधीन ज्ञानों का लाभ ।
भावार्थ
हे ( मरुतः ) विद्या के अभिलाषी विद्यार्थी जनो ! शत्रु हन्ता वीर सैनिक जनो ! ( वृषभस्य केतवे ) वर्षणशील मेघ को उत्पन्न करने के लिये और उसके ( रभसाय जन्मने ) वेग से उत्पन्न होने के लिये जिस प्रकार वायु गणों का सबसे पूर्व, सबसे अधिक ( महित्वं ) महान् सामर्थ्य होता है इसी प्रकार ( वृषभस्य ) मेघ के समान निष्पक्ष पात होकर ज्ञान वर्षण करने वाले आचार्य के ( केतवे ) ज्ञान को प्राप्त करने और ( रभसाय ) वेग या बल पूर्वक उसके अधीन रहकर ( जन्मने ) उत्तम द्विजत्व प्राप्त कर विद्या में जन्म लेने के लिये जो आप लोगों का ( पूर्वं ) पूर्व का, माता पिता से प्राप्त या पूर्व जन्मों से प्राप्त ( महित्वम् ) महान सामर्थ्य है ( तत् नु वोचाम ) उसका उपदेश करते हैं । अथवा—( वृषभस्य रभसाय, जन्मने केतवे च पूर्वं महित्वं तत् नु वोचाम ) ज्ञान के वर्षक गुरु के अधीन प्राप्त करने योग्य वेग, दृढ़ता, उत्तम जन्म अर्थात् द्विजत्व लाभ, और स्वरूप, और केतु अर्थात् ज्ञान प्राप्ति का पूर्ण महत्व है उसका हम उपदेश करें । हे ( तुविष्वणः ) नाना प्रकार की वेदध्वनियों को करने वाले शिष्यो ! जिस प्रकार ( यामन् एधा इव ) मार्ग बनाने के लिये वृक्षादि की लकड़ियों को काट दिया जाता है और जिस प्रकार ( यामन् ) राज्य शासन के जमाने के लिये ( युधा ) युद्ध या शस्त्र प्रहारों से ( तविषाणि ) शत्रुओं के सैन्यों को काट गिराया जाता है उसी प्रकार आप लोग ( शक्राः ) शक्तिमान् होकर ( यामनि ) संयम के पालन के लिये ( तविषाणि ) बलों का ( कर्त्तन ) सम्पादन करो ।
टिप्पणी
‘कर्त्तन’ -अत्र क्रियाश्लेषः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मैत्रावरुणोऽगस्त्य ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः– १, २, ८ जगती । ३, ५, ६, १२, १३ निचृज्जगती । ४ विराट् जगती । ७, ९, १० भुरिक् त्रिष्टुप् । ११ विराट् त्रिष्टुप् । १४ त्रिष्टुप् । १५ पङ्क्तिः ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात मरुत शब्दार्थाने विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. विद्वान लोकांनी जिज्ञासू लोकांना वर्तमान जन्म व पूर्व जन्माच्या संचित कर्मानिमित्त ज्ञान त्यांचे कार्य पाहून उपदेश करावा व माणसाचे ब्रह्मचर्य व जितेंद्रियता इत्यादी गुणांनी शरीर व आत्मबल पूर्ण होईल असे करावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Maruts, roaring heroes of the strength and speed of the winds, for a full life of courage and enthusiasm and the distinction of leadership and overflowing generosity, we sing and celebrate your ancient and original heroism. Blazing like fire, advancing like warriors, do wondrous deeds of valour worthy of admiration.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of the learned persons are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Mighty Maruts (learned brave your persons)! you use many techniques in your preaching. We would tell you soon the greatness of your learning, which would reveal speedily the source of great happiness. You exert your vigorous energies for our march to noble path of righteousness. We are alert on this front like a soldier and a performer of the Yajna, who are always ready to onslaught ?
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
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