ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 75/ मन्त्र 4
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - अग्निः
छन्दः - यवमध्यापादनिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्वं जा॒मिर्जना॑ना॒मग्ने॑ मि॒त्रो अ॑सि प्रि॒यः। सखा॒ सखि॑भ्य॒ ईड्यः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । जा॒मिः । जना॑नाम् । अग्ने॑ । मि॒त्रः । अ॒सि॒ । प्रि॒यः । सखा॑ । सखि॑ऽभ्यः । ईड्यः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं जामिर्जनानामग्ने मित्रो असि प्रियः। सखा सखिभ्य ईड्यः ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। जामिः। जनानाम्। अग्ने। मित्रः। असि। प्रियः। सखा। सखिऽभ्यः। ईड्यः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 75; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्याह ॥
अन्वयः
हे अग्ने विद्वन् ! यतस्त्वं जनानां जामिर्मित्रः प्रिय ईड्यः सन् सखिभ्यः सखाऽसि तस्मात् सर्वैस्सत्कर्त्तव्योऽसि ॥ ४ ॥
पदार्थः
(त्वम्) सर्वोपकारी (जामिः) उदकमिव शान्तिप्रदः। जामिरित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (जनानाम्) मनुष्याणाम् (अग्ने) अत्यन्तविद्यायोगेनानूचान (मित्रः) सर्वसुहृत् (असि) वर्त्तते (प्रियः) कामयमानः प्रियकारी (सखा) सुखप्रदः (सखिभ्यः) मित्रेभ्यः (ईड्यः) स्तोतुमर्हः ॥ ४ ॥
भावार्थः
मनुष्यैर्यः सर्वदा मित्रो भूत्वा सर्वेभ्यो विद्यादिशुभगुणान् सुखानि च ददाति, स कथं न सेवनीयः ॥ ४ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वह विद्वान् कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) पण्डित ! जिस कारण (जनानाम्) मनुष्यों को (जामिः) जल के तुल्य सुख देनेवाले (मित्रः) सबके मित्र (प्रियः) कामना को पूर्ण करनेवाले योग्य विद्वान् (त्वम्) आप (सखिभ्यः) सबके मित्र मनुष्यों को (ईड्यः) स्तुति करने योग्य (सखा) मित्र हो, इसीसे सबको सेवने योग्य विद्वान् (असि) हो ॥ ४ ॥
भावार्थ
मनुष्यों को उस परमेश्वर और उस विद्वान् मनुष्य की सेवा क्यों नहीं करनी चाहिये कि जो संसार में विद्यादि शुभ गुण और सबको सुख देता है ॥ ४ ॥
विषय
प्रिय मित्र
पदार्थ
१. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (त्वम्) = आप (जनानां जामिः) = सब लोगों के बन्धु हैं । गुणों में सर्वाधिक होते हुए आप सब लोगों का हित करनेवाले हैं । २. ठीक - ठीक बात तो यह है कि आप ही (प्रियः मित्रः असि) = सबके प्रिय मित्र हैं । सांसारिक मनुष्य किसी के मित्र हैं तो दूसरे के वे शत्रु भी होते हैं, परन्तु हे प्रभो ! आप तो सबके मित्र - ही - मित्र हैं, आपकी किसी से शत्रुता नहीं । (सखिभ्यः) = संसार में सखित्व से चलनेवाले लोगों के लिए (सखा) = मित्र हैं । जो भी व्यक्ति शत्रुता को छोड़कर परस्पर प्रेमभाव से वर्तते हैं, वे प्रभु को प्रिय होते हैं । ये प्रभु (ईड्यः) = स्तुति के योग्य हैं, परस्पर सखी - भाव की वृद्धि के लिए प्रभु का स्तवन आवश्यक है । इस स्तवन से हम सब एक प्रभु के पुत्र हैं, यह भावना दृढ़ होती है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु हमारे प्रिय मित्र हैं । वे ही स्तुति के योग्य हैं । प्रभु - स्तवन से परस्पर बन्धुत्व की भावना दृढ़ होती है ।
विषय
राजा और विद्वान् के कर्तव्योपदेश ।
भावार्थ
हे (अग्ने ) ज्ञानवन् विद्वन् ! परमेश्वर ! ( त्वं ) तू ही ( जनानां जामिः ) समस्त जनों का बन्धु है। तू ही ( प्रियः मित्रः असि ) प्रिय मित्र है । तू ( सखिभ्यः ) हित मित्र जनों का ( ईड्यः ) स्तुति योग्य ( सखा ) परम सखा है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो राहूगण ऋषिः । निर्देवता । छन्दः—१ गायत्री । २, ४, ५ निचृद्गायत्री । ३ विराड् गायत्री । पञ्चर्चं सूक्तम् ।
विषय
विषय (भाषा)- फिर वह विद्वान् कैसा हो, यह विषय इस मन्त्र में कहा है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे अग्ने विद्वन् ! यतः त्वं जनानां जामिः मित्रः प्रियः ईड्यः सन् सखिभ्यः सखा असि तस्मात् सर्वैः सत्कर्त्तव्यः असि ॥४॥
पदार्थ
पदार्थः- हे (अग्ने) अत्यन्तविद्यायोगेनानूचान=उत्कृष्ट विद्या के योग से वेद और वेदाङ्गों के, (विद्वन्)= विद्वान् ! (यतः)=क्योंकि, (त्वम्) सर्वोपकारी=सबका उपकार करनेवाले, (जनानाम्) मनुष्याणाम्= मनुष्यों को, (जामिः) उदकमिव शान्तिप्रदः=जल के समान शान्ति प्रदान करनेवाले, (मित्रः) सर्वसुहृत्=मित्र, (प्रियः) कामयमानः प्रियकारी= कामना को पूर्ण करनेवाले और प्रिय कार्यों को करनेवाले, (ईड्यः+सन्) स्तोतुमर्हः=स्तुति किये जाने के योग्य होते हुए, (सखिभ्यः) मित्रेभ्यः=मित्रों के लिये, (सखा) सुखप्रदः=सुख प्रदान करनेवाले, (असि) वर्त्तते=हो। (तस्मात्)=इसलिये, (सर्वैः) =सबके द्वारा, (सत्कर्त्तव्यः)=उत्तम कर्त्तव्य किये जाने योग्य, (असि)=हो, [अर्थात् सब तुम्हारा अनुकरण करें] ॥४॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- मनुष्यों के द्वारा जो मित्र हो करके विद्यादि शुभ गुण और सबको सुखों को देता है, वह परमेश्वर क्यों न पूजा किये जाने योग्य है? ॥४॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (अग्ने) उत्कृष्ट विद्या के योग से वेद और वेदाङ्गों के (विद्वन्) विद्वान् ! (यतः) क्योंकि (त्वम्) सबका उपकार करनेवाले, (जनानाम्) मनुष्यों को (जामिः) जल के समान शान्ति प्रदान करनेवाले, (मित्रः) मित्र, (प्रियः) कामना को पूर्ण करनेवाले व प्रिय कार्यों को करनेवाले और (ईड्यः+सन्) स्तुति किये जाने के योग्य होते हुए (सखिभ्यः) मित्रों के लिये (सखा) सुख प्रदान करनेवाले (असि) हो। (तस्मात्) इसलिये (सर्वैः) सबके द्वारा (सत्कर्त्तव्यः) पूजा किये जाने के योग्य (असि) हो॥४॥
संस्कृत भाग
त्वम् । जा॒मिः । जना॑नाम् । अग्ने॑ । मि॒त्रः । अ॒सि॒ । प्रि॒यः । सखा॑ । सखि॑ऽभ्यः । ईड्यः॑ ॥ विषयः- पुनः स कीदृश इत्याह ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- मनुष्यैर्यः सर्वदा मित्रो भूत्वा सर्वेभ्यो विद्यादिशुभगुणान् सुखानि च ददाति, स कथं न सेवनीयः ॥४॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी नेहमी मित्र बनून सर्वांना विद्या शुभ गुण सुख देणाऱ्यांची सेवा का करू नये?
इंग्लिश (3)
Meaning
Agni, you are the brother and saviour of the people. You are the friend. You are so dear and affectionate a source of fulfilment. You are the friend of friends, adorable for your companions.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The answer to the questions is to be found in the next mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person! as you are giver of peace to all men like water, their friend giver of happiness to your friends and praise-worthy, therefore we honour you.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(जामि:) उदकमिव शान्तिप्रदः जामिरित्युदकनाम (निघ० १.१२ ) = Giver of peace like water.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Why should not men serve a person who being friendly to all, gives knowledge and other good virtues and happiness ?
Translator's Notes
Besides the above meaning taking Agni for a highly learned person, there is the spiritual meaning of the Mantra relating to God as the following metrical translation shows : Thou art our Kith and Kin. Thou art our Dearest Friend. Thou art Our Friend Worthy of praise. Do us Lord always raise.
Subject of the mantra
Then, how should that scholar be?This subject has been discussed in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (agne) =of Vedas and Vedāṅgas due to excellent knowledge, (vidvan) =scholar, (yataḥ)=because, (tvam) =the one who does good to everyone, (janānām) =to humans, (jāmiḥ)=who provides peace like water, (mitraḥ) =friend, (priyaḥ) =one who fulfills desires and does favorite activities and, (īḍyaḥ+san)=being worthy of praise, (sakhibhyaḥ) =for friends, (sakhā) =giver of happiness, (asi) =are, (tasmāt) =therefore, (sarvaiḥ) =by all, (satkarttavyaḥ) = worthy of worship,(asi) =are.
English Translation (K.K.V.)
O scholar of Vedas and Vedāṅgas due to excellent knowledge! Because you are the one who does good to everyone, who provides peace like water to humans, who is a friend, who fulfills desires, who performs favourite tasks and who is worthy of being praised and who provides happiness to friends. Therefore, You are worthy of worship.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
Why is that God who, by becoming a friend of humans, bestows knowledge, good qualities and happiness to everyone, is not worthy of being worshipped?
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