ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 129/ मन्त्र 3
ऋषिः - प्रजापतिः परमेष्ठी
देवता - भाववृत्तम्
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
तम॑ आसी॒त्तम॑सा गू॒ळ्हमग्रे॑ऽप्रके॒तं स॑लि॒लं सर्व॑मा इ॒दम् । तु॒च्छ्येना॒भ्वपि॑हितं॒ यदासी॒त्तप॑स॒स्तन्म॑हि॒नाजा॑य॒तैक॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठतमः॑ । आ॒सी॒त् । तम॑सा । गू॒ळ्हम् । अग्रे॑ । अ॒प्र॒ऽके॒तम् । स॒लि॒लम् । सर्व॑म् । आः॒ । इ॒दम् । तु॒च्छ्येन॑ । आ॒भु । अपि॑ऽहितम् । यत् । आसी॑त् । तप॑सः । तत् । म॒हि॒ना । अ॒जा॒य॒त॒ । एक॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तम आसीत्तमसा गूळ्हमग्रेऽप्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम् । तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम् ॥
स्वर रहित पद पाठतमः । आसीत् । तमसा । गूळ्हम् । अग्रे । अप्रऽकेतम् । सलिलम् । सर्वम् । आः । इदम् । तुच्छ्येन । आभु । अपिऽहितम् । यत् । आसीत् । तपसः । तत् । महिना । अजायत । एकम् ॥ १०.१२९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 129; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
पदार्थ
(अग्रे) सृष्टि से पूर्व (तमसा) अन्धकार से (गूढम्) आवृत (तमः-आसीत्) अन्धकाररूप था (इदं सर्वम्) यह सब उस समय (सलिलम्-आः) फैले जल जैसा (अप्रकेतम्) अविज्ञेय-न जानने योग्य था (तुच्छ्येन) तुच्छभाव से (यत्-अपिहितम्) आवृत ढका हुआ (आभु) आभु नाम से अव्यक्त उपादान कारण (आसीत्) था, जिससे यह सृष्टि आभूत-आविर्भूत हुई (तपसः) परमात्मा के ज्ञानमय तप से (तत्-महिना) महत्तत्त्व एकरूप एक उत्पन्न हुआ ॥३॥
भावार्थ
सृष्टि से पूर्व अन्धकार से आच्छादित अन्धकारमय था, जलसमान अवयवरहित न जानने योग्य “आभु” नाम से परमात्मा के सम्मुख तुच्छरूप में एकदेशी अव्यक्त प्रकृतिरूप उपादान कारण था, जिससे सृष्टि आविर्भूत होती है, उसके ज्ञानमय तप से प्रथम महत्तत्त्व उत्पन्न हुआ ॥३॥
विषय
तमस्तत्त्व का वर्णन
पदार्थ
(अग्रे) = सृष्टि से पूर्व (तमः आसीत्) = 'तमस्' था। यह सब (तमसा गूढम्) = तमस से व्याप्त था वह (अप्र-केतम्) = कुछ भी विशेष ज्ञानयोग्य न था । वह (सलिलम्) = एक व्यापक (गतिमत्) = तत्त्व था जो (सर्वम् इदम् आ) = इस समस्त को व्यापे हुए था । उस समय (यत्) = जो था भी वह (तुच्छ्येन) = सूक्ष्म रूप से (आभू-अपिहितम्) = चारों ओर से ढका हुआ था । (तत्) = वह (तपसः महिना) = तपस् के महान् सामर्थ्य से (एकम्) = एक अजायत प्रकट हुआ ।
भावार्थ
भावार्थ - उस समय गहन तम=मूल प्रकृति से सब आच्छादित था ।
विषय
सृष्टि के पूर्व क्या था? तमस्तव का वर्णन।
भावार्थ
(अग्रे) सृष्टि होने के पूर्व, (तमः आसीत्) ‘तमस’ था। वह सब (तमसा गूढम्) तमस से व्याप्त था। वह (अप्र-केतम्) ऐसा था कि उसका कुछ भी विशेष ज्ञान योग्य न था। वह (सलिलम्) सलिल, एक व्यापक गतिमत् तत्त्व था, जो (सर्वम् इदम् आ) इस समस्त को व्यापे था। उस समय (यत्) जो था भी वह (तुच्छ्रयेन) तुच्छ सूक्ष्म रूप से (आभू-अपिहितम्) चारों ओर का सब विद्यमान पदार्थ ढका था। (तत्) वह (तपसः महिना) तपस् के महान् सामर्थ्य से (एकम्) एक (अजायत) प्रकट हुआ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः प्रजापतिः परमेष्ठी। देवता—भाववृत्तम्॥ छन्दः–१–३ निचृत् त्रिष्टुप्। ४—६ त्रिष्टुप्। ७ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(अग्रे तमसा गूठम्) सृष्टि से पूर्व जो था अन्धकार से आवृत (तमः आसीत्) अन्धकाररूप था (इदं सर्व सलिलम् आः-अप्रकेतम्) यह सब उस समय जो था वह जल की भांति जलसमान एकीभूत अविज्ञेय था (तुच्छ्येन यत्-अपि-हितम्-अभु आसीत्) तुच्छरूप से छिपा हुआ 'प्रभु' सब ओर फैला हुआ जो अव्यक्त-प्रकृतिनामक उपादान कारण था (तपस:) परमात्मा के ज्ञानमय तपसे (तत्-महिना-एकम् अजायत) वह महत्तत्त्व के रूप में एक अनन्त परमात्मा के सम्मुख प्रादुर्भूत हुआ ॥३॥
टिप्पणी
"शर्म सुखनाम" (निघ० ३।६) "अप एव ससर्जादौ तासु बीजमवासृजत्" (मनु० १।८)
विशेष
ऋषिः–प्रजापतिः परमेष्ठी (सृष्टि से पूर्व स्वस्वरूप में वर्तमान विश्वराट विश्वर चीयता परमात्मा, उपाधिरूप में भाववृत्त का ज्ञाता एवं प्रचारक भी प्रजापतिरूप में प्रसिद्धि प्राप्त विद्वान्) देवता- भाववृत्तम् (वस्तुओं का उत्पत्तिवृत)
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अग्रे तमसा गूढम्) सृष्टेः पूर्वं यदासीत् तदन्धकारेणावृतमासीत् (तमः-आसीत्) अन्धकाररूपमासीत् (इदं सर्वं सलिलम्-आ-अप्रकेतम्) एतत् सर्वं जलमिवैकीभूतमविज्ञेयमासीत् (तुच्छ्येन यत्-अपि-हितम्) तुच्छरूपेण यदावृतं गुप्तं यत् (आभु-आसीत्) तत् ‘आभु’ नामकं सर्वत्र प्रसृतमव्यक्तमुपादानकारणमासीत् “इयं सृष्टिर्यत आबभूव” इति वचनात् सृष्टेरुपादानं (तपसः) परमात्मनो ज्ञानमयात् तपसः (तत्-महिना एकम् अजायत) तन्महत्तत्त्वरूपमेकं जातम् ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
There is only dark, darker and deeper than darkness itself before the world of existence comes into being, something misty beyond knowledge and experience, this all that now is. That living mystery, which then exists, covered in something more mysterious than mystery itself, self-manifests by the exercise of Its own grandeur of power and potential solely by Itself.
मराठी (1)
भावार्थ
सृष्टीपूर्वी अंधकाराने आच्छादित सर्व अंधकारमय होते. जलाप्रमाणे अवयवरहित व जाणण्यायोग्य ‘‘आभु’’ नावाने परमात्म्यासमोर तुच्छरूपाने एकदेशी अव्यक्त प्रकृतिरूपी उपादान कारण होते. ज्यापासून सृष्टी आविर्भूत होते. त्याच्या ज्ञानमय तपाने प्रथम महतत्त्व उत्पन्न झाले. ॥३॥
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