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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 148 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 148/ मन्त्र 1
    ऋषिः - पृथुर्वैन्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सु॒ष्वा॒णास॑ इन्द्र स्तु॒मसि॑ त्वा सस॒वांस॑श्च तुविनृम्ण॒ वाज॑म् । आ नो॑ भर सुवि॒तं यस्य॑ चा॒कन्त्मना॒ तना॑ सनुयाम॒ त्वोता॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒स्वा॒नासः॑ । इ॒न्द्र॒ । स्तु॒मसि॑ । त्वा॒ । स॒स॒ऽवांसः॑ । च॒ । तु॒वि॒ऽनृ॒म्ण॒ । वाज॑म् । आ । नः॒ । भ॒र॒ । सु॒वि॒तम् । यस्य॑ । चा॒कन् । त्मना॑ । तना॑ । स॒नु॒या॒म॒ । त्वाऽऊ॑ताः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुष्वाणास इन्द्र स्तुमसि त्वा ससवांसश्च तुविनृम्ण वाजम् । आ नो भर सुवितं यस्य चाकन्त्मना तना सनुयाम त्वोता: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुस्वानासः । इन्द्र । स्तुमसि । त्वा । ससऽवांसः । च । तुविऽनृम्ण । वाजम् । आ । नः । भर । सुवितम् । यस्य । चाकन् । त्मना । तना । सनुयाम । त्वाऽऊताः ॥ १०.१४८.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 148; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    इस सूक्त में जो परमात्मा की स्तुति करता है, वह उसका प्रिय हो जाता है, मोक्षभागी बन जाता है, वह उसकी सारी कामनाएँ पूरी करता है इत्यादि विषय हैं।

    पदार्थ

    (तुविनृम्ण) हे बहुत धनवाले (इन्द्र) परमात्मन् ! (सुष्वाणासः) हम अच्छे वक्ता होते हुए (त्वां स्तुमसि) तेरी स्तुति करते हैं (च) और (वाजम्) अमृतान्न भोग को (ससवांसः) सेवन करते हुए-तेरी स्तुति करते हुए (नः) हमारे लिए (सुवितम्) शुभ धन को (आ भर) भलीभाँति धारण करा (यस्य चाकन्) जिसकी तू यथायोग्य कामना करता है (त्वोताः) तेरे द्वारा रक्षित हुए (तना) धनों को (त्मना) आत्मभाव से (सनुयाम) सेवन करें ॥१॥

    भावार्थ

    उपासक परमात्मा के गुणों का अत्यन्त वर्णन करता हुआ उससे मोक्षसम्बन्धी भोगों को माँगता हुआ उससे रक्षा और शरण की कामना करे ॥१॥

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    विषय

    सोमरक्षण व शक्ति का भरण

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (सुष्वाणासः) = सोम का [ = वीर्य का] उत्तमता से सवन [= उत्पादन] करते हुए हम (त्वा स्तुमसि) = आपका स्तवन करते हैं । (च) = और हे (तुविनृम्ण) = महान् शक्तिवाले प्रभो ! (वाजं ससवांसः) = शक्ति का सम्भजन [उपासन] करते हुए हम आपका स्तवन करते हैं। वस्तुतः प्रभु का उपासक सोम का रक्षण करता है और इस प्रकार अपने को शक्तिशाली बनाता है । [२] प्रभो ! आप (नः) = हमारे लिये (सुवितम्) = उस उत्तम गति का, 'दुरित' से विपरीत 'सुवित' का (आभरः) = भरण करिये (यस्य चाकन्) = जिसकी आप हमारे लिये कामना करते हैं । प्रभु हमें सदा दुरितों से दूर व सुवितों के समीप देखना चाहते हैं । इन सुवितों को भी तो प्रभु ने ही प्राप्त कराना है। [३] हे प्रभो ! (त्वोता:) = आप से रक्षित हुए हुए हम (त्मना) = स्वयं दूसरों पर आश्रित न होते हुए, (तना) = धनों को (सनुयाम) = प्राप्त करें। हम स्वयं पुरुषार्थ से धनों का विजय करनेवाले बनें।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम के रक्षण के द्वारा शक्तिशाली बनकर हम प्रभु के उपासक बनें। प्रभु कृपा से हम सन्मार्ग पर चलते हुए, अपने श्रम से धनार्जन करनेवाले हों ।

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    विषय

    इन्द्र। धन समृद्धि आदि के लिये परमेश्वर की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! प्रभो ! हम (सु-स्वानासः) तेरी उपासना करने हारे (त्वा स्तुमसि) तेरी ही स्तुति करते हैं। हे (तुवि-नृम्ण) बहुत से धनों को प्राप्त करने हारे हम तेरी उपासना से ही (वाजं ससवांसः) ऐश्वर्य को प्राप्त हो जाते हैं। तू (यस्य चाकन्) जिस धन को चाहे (नः) हमें वही (सुवितम् आभर) सुखजनक एवं उत्तम रीति से प्राप्त करने योग्य धन प्राप्त करा। हम (त्वा-उताः) तेरे या प्रेम जन, तेरे से चिपटे, तेरे भक्त, तेरे द्वारा सुरक्षित, तेरी शरण होकर (त्मना) अपने सामर्थ्य से (तना सनुयाम) नाना धन प्राप्त करें और दान दें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः- १—५ पृथुवैन्यः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १ विराट् त्रिष्टुप्। २ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। ३, ५ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अत्र सूक्ते परमात्मानं यः स्तौति स परमात्मनः प्रियो भवति मोक्षस्य भागी च भवति तस्य याः कामा भवन्ति परमात्मा ताः पूरयतीत्येवमादयो विषयाः सन्ति।

    पदार्थः

    (तुविनृम्ण-इन्द्र) हे बहुधनवन् “तुवि बहुनाम” [निघ० ३।१] “नृम्णं धननाम” [निघ० २।१०] (सुष्वाणासः-त्वां स्तुमसि) वयं सुवक्तारः “सुष्वाणेभिः-सुष्ठु शब्दायमानैः” [यजु० २९।२ दयानन्दः] त्वां स्तुमः (वाजं ससवांसः-च) अमृतान्नभोगम् “अमृतोऽन्नं वै वाजः” [जै० २।१९३] सम्भजमानाश्च त्वां स्तुमः-इत्यन्वयः (नः-सुवितम्-आ भर) अस्मभ्यं सुगतं शुभं धनं समन्ताद्धारय (यस्य चाकन्) यस्य यथायोग्यं त्वं कामयसे (त्वोताः) त्वया पालिताः (तना) धनानि “तना धननाम” [निघ० ३।१०] (त्मना सनुयाम) आत्मभावेन सम्भजेमहि ॥१॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of abundant wealth and power, creative and expressive devotees with divine gifts of heavenly food and energy, we celebrate and adore you. Pray bless us with that wealth and well being which you please is for our good, so that, under your gracious protection, we may win the power and prosperity of life to live well and enjoy the beauty and goodness of life to the fulfilment of our heart and soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    उपासकाने परमात्म्याच्या गुणांचे वर्णन करत त्याच्याकडून मोक्षभोग मागून रक्षण व शरण यांची कामना करावी. ॥१॥

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