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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 190/ मन्त्र 1
ऋषिः - अघमर्षणो माधुच्छन्दसः
देवता - भाववृत्तम्
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
ऋ॒तं च॑ स॒त्यं चा॒भी॑द्धा॒त्तप॒सोऽध्य॑जायत । ततो॒ रात्र्य॑जायत॒ तत॑: समु॒द्रो अ॑र्ण॒वः ॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒तम् । च॒ । स॒त्यम् । च॒ । अ॒भी॑द्धात् । तप॑सः । अधि॑ । अ॒जा॒य॒त॒ । ततः॑ । रात्री॑ । अ॒जा॒य॒त॒ । ततः॑ । स॒मु॒द्रः । अ॒र्ण॒वः ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत । ततो रात्र्यजायत तत: समुद्रो अर्णवः ॥
स्वर रहित पद पाठऋतम् । च । सत्यम् । च । अभीद्धात् । तपसः । अधि । अजायत । ततः । रात्री । अजायत । ततः । समुद्रः । अर्णवः ॥ १०.१९०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 190; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 48; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 48; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
इस सूक्त में परमात्मा प्रकृति से सृष्टि को रचता है, इससे सूर्य-चन्द्र आदि को पूर्व सृष्टि की भाँति रचता है, पुनः-पुनः सृष्टिरचना उसका कौशल है, इत्यादि विषय हैं।
पदार्थ
(ऋतं च) यथार्थ सर्वविद्याधिकरण वेदज्ञान भी (सत्यं च) सत् वर्त्तमान पदार्थों में साधु-सब को साधनेवाला तीन गुणोंवाला प्रकृति-नामक उपादान तथा (अभीद्धात् तपसः) सब ओर से दीप्त ज्ञानमय तप से (अध्यजायत) प्रसिद्ध होता है (ततः) उससे (रात्री) महाप्रलय के अनन्तर प्रलयरूप रात्रि (अजायत) प्रसिद्ध होती है (ततः) पुनः (अर्णवः समुद्रः) गतिमान् परमाणु समुद्र प्रसिद्ध होता है ॥१॥
भावार्थ
सृष्टि उत्पत्ति से पूर्व उत्पत्ति, स्थितिविषयक मूलज्ञान वेद तथा उपादानकारण प्रकृतिरूप अव्यक्त सृष्टिकर्ता परमेश्वर के ज्ञानमय तप से उसके सम्मुख आते हैं। दोनों के संसर्ग से महाप्रलय का अन्त प्रलयरूप रात्रि बनती है, उससे गतिवाला हलचल करता हुआ परमाणुओं का समुद्र प्रकट हो जाता है, यह हलचल सृष्टिप्रवाह को चालू करती है ॥१॥
विषय
तपसे ऋत व सत्य की उत्पत्ति
पदार्थ
[१] प्रलय की समाप्ति पर प्रभु सृष्टि के निर्माण का ईक्षण, विचार व कामना करते हैं 'तदैक्षत०, सोऽकामयत्' । प्रभु का यह ईक्षण - ज्ञान ही तप कहलाता है 'यस्य ज्ञानमयं तपः ' । प्रभु के इस (अभि इद्वात्) = सर्वतः देदीप्यमान (तपसः) = तप से (ऋतं च) ऋत (च) = व (सत्यं च) = सत्य (अध्यजायत) = - प्रकट हुए। प्रकृति विषयक सब नियम 'ऋत' कहलाते हैं और जीव विषयक सब नियम 'सत्य' कहलाते हैं । [२] इन नियमों के प्रादुर्भूत हो जाने पर (ततः) = तब इन नियमों के अनुसार (रात्री) = शक्ति की तरह अन्धकारमयी 'तम' नामवाली यह प्रकृति [तम आसीत् तमसा गूढमग्रे] (अजायत) = सृष्टि के रूप में हो गई । 'तमः ' वाग्नी प्रकृति ने इस विकृतिरूप संसार को जन्म दिया। [३] (ततः) = उस समय (समुद्रः) = प्रकृति का यह अणुसागर (अर्णवः) = खूब गतिवाला हो उठा [अर्णस्=wave] इसमें लहरें उठने लगीं। अणु समुद्र में गति आने पर ही द्व्यणुक आदि क्रम से सृष्टि के पदार्थों के निर्माण का प्रारम्भ होता है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु के तप से ऋत व सत्य उत्पन्न हुए ।
विषय
भाववृत्त। अघमर्षण सूक्त। तप से ऋत, सत्य की उत्पत्ति। उससे जगत् का प्रादुर्भाव। प्रभु का अनादि प्रवाहयुक्त जगत्सर्ग
भावार्थ
(अभीद्धात् तपसः) सब ओर से प्रकाशमान ‘तप’ से (ऋतं च सत्यं च भजायत) ऋत और सत्य भी प्रकट हुआ। (ततः रात्री अजायत) उसीसे रात्रि उत्पन्न होती है। (ततः) उस तप से ही (अर्णवः समुद्रः) यह जल से युक्त महान् समुद्र और सूक्ष्म जलों से व्याप्त आकाश प्रकट हुआ।
टिप्पणी
‘ऋतं’—ऋतमिति सत्य नाम। ऋतं मानसं यथार्थसंकल्पनं, सत्यं वाचिकं यथार्थभाषणं चकराद्-यदपि शास्त्रीयं धर्मजातं समुच्चीयते॥ सा०॥ ‘तपः’ पुरा सृष्ट्यर्थं कृतं तपः (सा०) ‘समुद्रः’—समुद्रशब्दोऽन्तरिक्षोदध्योः साधारणः। सा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिरघमर्षणो माधुच्छन्दसः। देवता—भाववृत्तम्॥ छन्दः– १ विराडनुष्टुप्। २ अनुष्टुप्। ३ पादनिचृदनुष्टुप्॥
संस्कृत (1)
विषयः
अत्र सूक्ते परमात्मा प्रकृतितः सृष्टिं रचयति ततः सूर्यचन्द्रादिकं पूर्वसृष्टिवद् रचयति पुनः पुनः सृष्टिरचनं तस्य कौशलम्, इत्यादि विषयाः सन्ति।
पदार्थः
(ऋतं च सत्यं च) ऋतं यथार्थं सर्वविद्याधिकरणं वेदज्ञानं च सत्यं सत्सु साधु त्रिगुणमयं प्रकृत्यात्मकमुपादानञ्च (अभीद्धात्-तपसः) अभितः सर्वत इद्धात्-दीप्तात्-ज्ञानमयात् तपसः ‘तस्य ज्ञानमयं तपः’ (अध्यजायत) प्रसिद्धं भवति (ततः रात्री-अजायत) ततो महाप्रलयानन्तरं प्रलयरूपा रात्री प्रसिद्धा भवति (ततः-अर्णवः समुद्रः) तदनन्तरं-अर्णवो गतिमान् परमाणुसमुद्रः प्रसिद्धो भवति ॥१॥
इंग्लिश (1)
Meaning
By the arduous will of Divinity, Prakrti manifested in existence in its simultaneous modes of Satyam and Rtam, constant and mutable, under the Eternal Law. Then arose the night and darkness of no positive name. Then arose the spatial ocean of indeterminate particles of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
सृष्टी उत्पत्तीपूर्वी उत्पत्ती, स्थितीविषयी मूळ ज्ञान वेद व उपादान कारण प्रकृतीरूपी अव्यक्त सृष्टिकर्ता परमेश्वराच्या ज्ञानमय तपाने त्याच्या समोर येतात. त्याच्याद्वारेच प्रलयरूप रात्री बनते. त्याच्यापासून गती करणारा, हालचाल करणारा परमाणूंचा समुद्र प्रकट होतो. ही हालचालच सृष्टिप्रवाह चालू ठेवते. ॥१॥
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