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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 37/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अभितपाः सौर्यः देवता - सूर्यः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    सा मा॑ स॒त्योक्ति॒: परि॑ पातु वि॒श्वतो॒ द्यावा॑ च॒ यत्र॑ त॒तन॒न्नहा॑नि च । विश्व॑म॒न्यन्नि वि॑शते॒ यदेज॑ति वि॒श्वाहापो॑ वि॒श्वाहोदे॑ति॒ सूर्य॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । मा॒ । स॒त्यऽउ॑क्तिः । परि॑ । पा॒तु॒ । वि॒श्वतः॑ । द्यावा॑ । च॒ । यत्र॑ । त॒तन॑न् । अहा॑नि । च॒ । विश्व॑म् । अ॒न्यत् । नि । वि॒श॒ते॒ । यत् । एज॑ति । वि॒श्वाहा॑ । आपः॑ । वि॒श्वाहा॑ । उत् । ए॒ति॒ । सूर्यः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सा मा सत्योक्ति: परि पातु विश्वतो द्यावा च यत्र ततनन्नहानि च । विश्वमन्यन्नि विशते यदेजति विश्वाहापो विश्वाहोदेति सूर्य: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सा । मा । सत्यऽउक्तिः । परि । पातु । विश्वतः । द्यावा । च । यत्र । ततनन् । अहानि । च । विश्वम् । अन्यत् । नि । विशते । यत् । एजति । विश्वाहा । आपः । विश्वाहा । उत् । एति । सूर्यः ॥ १०.३७.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 37; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (सा सत्योक्तिः) वह सत्यवाक्-वेदवाणी-ईश्वरीय वाणी (मा विश्वतः परि पातु) मुझे सब ओर से सुरक्षित रखे (यत्र) जिसके आश्रय में (द्यावा च) दोनों द्यावापृथिवी-द्युलोक व पृथ्वीलोक (अहानि च) दिन और रात्रियाँ (ततनन्) प्रसार पाती हैं (विश्वम्-अन्यत्-निविशते) सब अन्य वस्तु निविष्ट-रखी हुई हैं (यत्-एजति) जो चेतन वस्तु चेष्ठा कर रही है (आपः-विश्वाहा) जलधाराएँ बह रही हैं (सूर्यः-विश्वाहा-उदेति) सूर्य नित्य उदय होता है ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा की सत्य वाणी-श्रुति वेदवाणी मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करती है। उसी सत्य वाणी के अनुसार आकाश से लेकर पृथ्वीपर्यन्त लोक-लोकान्तर और अहर्गण तथा  रात्रिगण प्रसारित हो रहे हैं-क्रमशः चालू हैं। सब जड़ और चेतन पदार्थ अपने-अपने स्वरूप में स्थित चेष्टा करते हैं तथा तदनुसार जलधाराएँ बहती हैं, सूर्य उदय होता है, ऐसे उस परमात्मा का ध्यान और उसकी वेदवाणी का ज्ञान करना चाहिये ॥२॥

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    विषय

    प्रार्थनाविषयः

    व्याखान

    हे सर्वाभिरक्षकेश्वर! (सा मा सत्योक्तिः) आपकी सत्य- आज्ञा, जिसका हमने अनुष्ठान किया है, वह (विश्वतः, परिपातु) हमको सब संसार से सर्वथा पालन से युक्त और सब दुष्ट कामों से सदा पृथक् रक्खे, जिससे हमको अधर्म करने की इच्छा भी कभी न हो (द्यावा च) और सदा दिव्य सुख से युक्त करके हमारी यथावत् रक्षा करे । (यत्र) जिस दिव्य सृष्टि में (अहानि) सूर्यादिकों को दिवस आदि होने के निमित्त (ततनन्) आपने ही विस्तारे हैं, वहाँ भी हमारा सब उपद्रवों से रक्षण करो। (विश्वमन्यत्) आपसे अन्य [भिन्न] विश्व अर्थात् सब जगत् जिस समय आपके सामर्थ्य से [प्रलय में] (निविशते) प्रवेश करता है [सब कार्य कारणात्मक होता है], उस समय में भी आप हमारी रक्षा करो । (यदेजति) जिस समय यह जगत् आपके सामर्थ्य से चलित होके उत्पन्न होता है, उस समय भी सब पीड़ाओं से आप हमारी रक्षा करें । (विश्वाहापो, विश्वाहा) जो-जो विश्व का हन्ता [दुःख देनेवाला] उसको आप नष्ट कर देओ, क्योंकि आपके सामर्थ्य से सब जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होती है, आपके सामने कोई राक्षस [दुष्टजन] क्या कर सकता है, क्योंकि आप सब जगत् में उदित [प्रकाशमान] हो रहे हो कृपा करके हमारे हृदय में भी सूर्यवत् प्रकाशित होओ, जिससे हमारी अविद्यान्धकारता सब नष्ट हो॥४७॥

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    विषय

    सत्योक्ति

    पदार्थ

    [१] (सा) = वह (सत्योक्तिः) = सत्य का कथन (मा) = मुझे (विश्वतः) = सब ओर से (परिपातु) = रक्षित करे। यह अध्यात्म उन्नति में तो मेरे लिये सहायक होगी ही, लौकिक दृष्टिकोण से भी सत्य मेरे लिये अभ्युदय का उत्पादक होगा। यह सत्योक्ति तो वह है (यत्र) = जहाँ (द्यावा) = प्रकाशमय लोक (च) = तथा (अहानि) = प्रकाशभाव दिन आदि काल (ततनन्) = विस्तृत किये जाते हैं । वस्तुतः स्थान व समय की प्रकाशमयता इस सत्योक्ति पर ही निर्भर है। सत्य के अभाव में सर्वत्र और सर्वथा अन्धकार ही अन्धकार होता है । [२] इस स्थान और समय के (अन्यत्) = अतिरिक्त (विश्वम्) = वह सारा संसार भी (यत्) = जो (एजति) = गतिशील है, अर्थात् सारा प्राणि जगत् भी इस सत्य में ही (निविशते) = निविष्ट है । सत्य ही सबका आधार है 'सत्येनोत्तभिताभूमिः' [अथर्व० १४ । १ । १] सत्य से ही तो सारा जगत् थमा हुआ है। [३] (विश्वाहा) = सदा (आप:) = जल इस सत्य के आधार से ही प्रवाहित होते हैं और (विश्वाहा) = सदा (सूर्य:) = सूर्य भी इस सत्य के आधार में ही (उदेति) = उदय होता है । 'ऋतेनादित्यास्तिष्ठन्ति' [अथर्व० १४ । १ । १] आदित्य ऋत के आधार में ही स्थित हैं । सत्य के अभाव में जल भी अपनी मर्यादा को छोड़ जाते हैं और सूर्य भी मर्यादातीत तपनवाला होकर तपता है और अत्युष्णता व अतिशीतता के रूप में आधिदैविक आपत्तियाँ नहीं आती।

    भावार्थ

    भावार्थ- सत्य ऐहिक व पारलौकिक उन्नति का कारण है। इससे सब समय व स्थान प्रकाशमय बनते हैं । यही आधिदैविक आपत्तियों से हमारा रक्षण करता है ।

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    विषय

    सर्वाश्रय सत्य-वचन से रक्षा की आकांक्षा।

    भावार्थ

    (यत्र) जिसके आश्रय (द्यावा च अहानि च) दिन और रात्रियें भी (ततनन्) उत्पन्न होती हैं, (यद् एजति) जो चल रहा है वह (अन्यत् विश्वम्) जड़से भिन्न चेतन भी जिसके आश्रय (नि-विशते) बसा है और जिसके आश्रय (आपः विश्वाहा) सर्वदा जल, नदी, समुद्रादि, प्राण, लिंग, शरीरादि, और समस्त प्रजाएं स्थित हैं, (विश्वाहा सूर्यः उदेति) जिसके आश्रय पर सूर्य उदय को प्राप्त होता है। (सा सत्योक्तिः) वह सत्य वचन (मा विश्वतः परिपातु) मेरी सब प्रकार से रक्षा करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अभितपाः सौर्य ऋषिः॥ छन्दः-१-५ निचृज्जगती। ६-९ विराड् जगती। ११, १२ जगती। १० निचृत् त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सा सत्योक्तिः मा विश्वतः परिपातु) सा सत्यवाक्-वेदवाक् श्रुतिरीश्वरवाणी मां सर्वतः खलु परिरक्षति सम्यक् सेवनेन ‘अत्र लडर्थे लोट्’ (यत्र) यदाश्रये (द्यावा च) द्यावौ “द्यावा…द्यावौ” [निरु० २।२१] द्यावापृथिव्यौ-द्युलोकपृथिवीलोकौ च (अहानि च) दिनानि च चकाराद् रात्रयश्च (ततनन्) प्रसरन्ति (विश्वम्-अन्यत्-निविशते) सर्वमन्यत्-यत् खलु स्थिरत्वं प्राप्तं जडं वस्तु (यत्-एजति) यच्च चेष्टते-चेतनं वस्तु (आपः-विश्वाहा) आपः सर्वदा प्रवहन्ति (सूर्यः-विश्वाहा-उदेति) सूर्यश्च नित्यमुदेति ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May the word of truth abide by me and protect and sustain me all round all time: That Sun, light of the world, is the presence in which the heavens of light and the green earth abide, days and nights arise and expand, wherein the other worlds abide and all else moves and abides, wherein all dynamics of the universe abide and move day and night, wherein the sun rises every morning for all time in the existential world.

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    Purport

    O God, Protector of all! O Saviour from all sides ! Your true commandment which we have observed in our life, may protect us by all means, in the whole world and keep us ever aloof from evil deeds, so that we would never be inclined to commit sins-to do unrighteous deeds actions. Uniting us with divine happiness He should duly protect us. In this divine creation you have created the sun and other planets, which casue the formation of the day and night, there too protect us from all hindrances and obstacles. When the whole world, which is distinct from you, dissolves [the matter atter assumes the atomic form], with your power, at that stage also protect us. When this world through your might comes again into existence at that stage also protect us from all ailments. Whosoever wants to harm and injure the world, rub him off altogether. You are the creator, sustainer and dissolver of the universe with your might, surely no demon can face you [can stand against you]. You are manifest in the whole world and illuminate it. By your kind Grace just like sun be illuminated in our heart, so that all our ignorance should vanish.
     

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    परमेश्वराची सत्यवाणी-श्रुती-वेदवाणी माणसांचे सर्व प्रकारे रक्षण करते. त्याच सत्यवाणीनुसार आकाशापासून पृथ्वीपर्यंत लोक-लोकांतर व दिवस-रात्र प्रसारित होत आहेत. -क्रमश: चालू आहेत. सर्व जड व चेतन पदार्थ आपापल्या स्वरूपात स्थित असून, प्रयत्न करत असतात व त्यानुसार जलधारा वाहतात, सूर्याचा उदय होतो. त्या परमात्म्याचे ध्यान व त्याच्या वेदवाणीचे ज्ञान प्राप्त केले पाहिजे. ॥२॥

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    विषय

    प्रार्थना

    व्याखान

    हे सर्वांच्या पूर्ण रक्षक ईश्वरा !(सा मा सत्योक्ति) तुझ्या सत्य आशेचे आम्ही अनुष्ठान केलेले आहे (विश्वतः परि पातु नः) आमचे सर्व संसारात सर्वया पालन करून सर्व दुष्ट कामापासून दूर ठेवावे म्हणजे आम्हाला अधर्म करण्याची ईच्छा कधीही होऊ नये, (द्यावा च) व तू दिव्य सुख द्यावेस व आमचे रक्षण करावेस. (यत्र) ज्या दिव्य सृष्टीत (अहानि) सूर्य वगैरेना दिवसाच्या रूपाने (ततनन्) तूच विस्तारीत केलेले आहेस तेथेही तू सर्व उपद्रवापासून आमचे रक्षण कर. (विश्वमन्यत्) तुझ्या अन्य (विश्व) जगापेक्षा म्हणजेच त्याचेळी तुझ्या सामर्थ्याने सर्व सृष्टीचा प्रलय (निविशते) होतो [सर्व कार्य कारणात्मक असते] अशा स्थितीतही तू आमचे रक्षण कर. (यदेजति) ज्यावेळी हे जग तुझ्या सामर्थ्यनि गतिमान होऊन त्याची निर्मिती होते त्यावेळीही सर्व त्रासातून तूच आमचे रक्षण कर. (विश्वाहापो विश्वाहा) जो जो विश्वाला दुःख देणारा आहे त्याला तू नष्ट कर. कारण तुझ्या सामर्थ्याने सर्व जगाची उत्पत्ति , स्थिती, प्रलय होतो. तुझ्यासमोर कोणत्याही राक्षसाचे [दुष्ट लोकांचे] काय चालणार? कारण सर्वजगात तुझा प्रकाश पसरलेला आहे. कृपा करून सूर्याप्रमाणे आमच्या हृदयात प्रकाशित हो, ज्यामुळे आमच्यातील [अन्तःकरणातील] अविद्यारुपी अंधःकार नष्टे होवो ॥४७॥

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    नेपाली (1)

    विषय

    प्रार्थनाविषयः

    व्याखान

    हे सर्वाभिरक्षकेश्वर ! सा मा सत्योक्तिः= हजुरको सत्य आज्ञा, जसको हामीले अनुष्ठान गरेका छौं तेसले विश्वतः, परिपातु = हामीलाई सबै संसार संगै पालन कार्य ले युक्त र समस्त दुष्ट कार्यदेखि सदा अलग्ग राखोस्, जसले हामीलाई अधर्म गर्न लाई कहिल्यै पनि इच्छा न होस् द्यावा च= अनि सदा दिव्य सुखसंग युक्त गरी यथावत हाम्रो रक्षा गरोस् । यत्र= जुन दिव्य सृष्टि मा अहानि = सूर्यादिक हरु लाई दिवस आदि बनाउन का निमित्त ततनन् = तपाईंले नै विस्तारे का हुन् यद्वा फैलाए का हुन् त्यहाँ पनि हाम्रो सबै खाले उपद्रव हरु बाट रक्षण गर्नु होला । विश्वमन्यत् = तपाईं भन्दा अन्य [भिन्न ] विश्व अर्थात् सम्पूर्ण जगत् जतिखेर हजुरको सामर्थ्य बाट [प्रलय मा] निविशते= प्रवेश गर्दछ [सबै कार्यकारणात्मक हुन्छ] तेतिखेर पनि हजुर ले हाम्रो रक्षा गर्नु होला । यदेजति जतिखेर यो जगत् हजुरको सामर्थ्य बाट चलित भएर उत्पन्न हुन्छ, तेस बेला पनि सबै पीडा हरु बाट हाम्रो रक्षा गर्नु होला ! विश्वाहापो, विश्वाहा - जुन-जुन विश्व हन्ता तत्व [दुःखदायी तत्व] छन् तिन लाई हजुर ले नष्ट गरिदिनु होस् किनकि हजुर कै सामर्थ्य बाट सकल जगत् को उत्पक्ति, स्थिति र प्रलय हुन्छ, हजुर का समक्ष कुनै राक्षस अर्थात् दुष्टजन ले के गर्न सक्तछ र किनभने तपाईं समस्त जगत् मा उदित [प्रकाशमान्] भइ रहनु भएको छ, कृपा गरेर हाम्रा हृदय मा पनि सूर्य झैं प्रकाशित हुनु होस्, जसले हाम्रो अविद्यान्ध कारता सबै नष्ट होस् ॥४७॥

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