ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 16/ मन्त्र 5
वृष्णः॒ कोशः॑ पवते॒ मध्व॑ ऊ॒र्मिर्वृ॑ष॒भान्ना॑य वृष॒भाय॒ पात॑वे। वृष॑णाध्व॒र्यू वृ॑ष॒भासो॒ अद्र॑यो॒ वृष॑णं॒ सोमं॑ वृष॒भाय॑ सुष्वति॥
स्वर सहित पद पाठवृष्णः॒ । कोशः॑ । प॒व॒ते॒ । मध्वः॑ । ऊ॒र्मिः । वृ॒ष॒भऽअ॑न्नाय । वृ॒ष॒भाय॑ । पात॑वे । वृष॑णा । अ॒ध्व॒र्यू इति॑ । वृ॒ष॒भासः॑ । अद्र॑यः । वृष॑णम् । सोम॑म् । वृ॒ष॒भाय॑ । सु॒स्व॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वृष्णः कोशः पवते मध्व ऊर्मिर्वृषभान्नाय वृषभाय पातवे। वृषणाध्वर्यू वृषभासो अद्रयो वृषणं सोमं वृषभाय सुष्वति॥
स्वर रहित पद पाठवृष्णः। कोशः। पवते। मध्वः। ऊर्मिः। वृषभऽअन्नाय। वृषभाय। पातवे। वृषणा। अध्वर्यू इति। वृषभासः। अद्रयः। वृषणम्। सोमम्। वृषभाय। सुस्वति॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 16; मन्त्र » 5
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
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अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सूर्यविषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्या यथा मध्व ऊर्मिर्वृष्णः कोशो वृषभान्नाय वृषभाय पवते यथा पातवे वृषभासोऽद्रयो वृषभाय वृषणं सोमं वृषणाध्वर्यू च सुष्वति तथा यूयमपि भवत ॥५॥
पदार्थः
(वृष्णः) वर्षकात् सूर्य्यात् (कोशः) मेघः (पवते) प्राप्नोति। पवत इति गतिकर्मा० निघं० २। १४। (मध्वः) मधोः (ऊर्मिः) तरङ्गः (वृषभान्नाय) वृषभमन्नं यस्मात्तस्मै (वृषभाय) श्रेष्ठाय (पातवे) पातुम् (वृषणा) वरौ (अध्वर्यू) आत्मनोऽध्वरमहिंसामिच्छू (वृषभासः) वर्षका (अद्रयः) मेघाः (वृषणम्) बलकरम् (सोमम्) सोमलताद्योषधिरसम् (वृषभाय) दुष्टशक्तिप्रतिबन्धकाय (सुष्वति) सुन्वन्ति। अत्र बहुलं छन्दसीति शपः श्लुरदभ्यस्तादिति झोऽदादेशः ॥५॥
भावार्थः
यथा मेघः सूर्यादुत्पद्य पुष्कलान्ननिमित्तो भवति सर्वान् प्राणिनः प्रीणाति तथा विद्वद्भिरपि भवितव्यम् ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सूर्य विषय को अगले मन्त्र में कहा गया है।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे (मध्वः) शहद वा मधुर रसकी (ऊर्मिः) तरंग वा (वृष्णः) जल वर्षानेवाले सूर्य से (कोशः) मेघ (वृषभान्नाय) श्रेष्ठ जिससे अन्न हो उस (वृषभाय) श्रेष्ठ के लिये (पवते) प्राप्त होता वा जैसे (पातवे) पीने के लिये (वृषभासः) वर्षनेवाले (अद्रयः) मेघ (वृषभाय) दुष्टों की शक्ति को बाँधनेवाले के लिये (वृषणम्) बलकारक (सोमम्) सोमलतादि ओषधि रस को और (वृषणा) श्रेष्ठ (अध्वर्यू) अपने को अहिंसा की इच्छा करनेवाले का (सुष्वति) सार निकालते हैं, वैसे तुम भी निकालनेवाले हूजिये ॥५॥
भावार्थ
जैसे मेघ सूर्य से उत्पन्न होकर पुष्कल अन्न का निमित्त होता और सब प्राणियों को तृप्त करता है, वैसे विद्वानों को भी होना चाहिये ॥०५॥
विषय
शक्ति का कोश
पदार्थ
१. (वृष्णः कोशः) = सुखों के वर्षक सोम का कोश (पवते) = गतिमय होता है। जब हम सोम का रक्षण करते हैं तो यह हमारे में क्रियाशीलता को उत्पन्न करता है। यह कोश (मध्व ऊर्मिः) माधुर्य की तरंग के समान होता है - यह जीवन में माधुर्य का संचार करता है। (वृषभान्नाय) = शक्तिशाली अन्नवाले के लिए, अर्थात् जो पौष्टिक ही भोजन करता है और स्वाद के लिए नहीं खाता उस (वृषभाय) = औरों पर सुखों का वर्षण करनेवाले के लिए यह (पातवे) = पीने के लिए व रक्षण के लिए होता है। २. इस सोमपान के होने पर ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप (अश्व वृषणा) = शक्तिशाली होते हैं और (अध्वर्यू) = जीवनयज्ञ को सुन्दरता से चलानेवाले होते हैं। इस सोम का पान करनेवाले पुरुष (वृषभासः) = शक्तिशाली बनते हैं और (अद्रयः) = [अदृ] मार्ग से विचलित न किये जाने योग्य होते हैं, अथवा आदरणीय होते हैं [आदृ] । ये लोग (वृषणं सोमम्) = इस शक्तिशाली व सुखवर्षक सोम को (वृषभाय) = उस सर्वशक्तिमान् सुखों के वर्षक प्रभु की प्राप्ति के लिए (सुष्वति) = (सुन्वन्ति) अपने में उत्पन्न करते हैं। इनके रक्षण से ही तो उस सोमप्रभु की प्राप्ति होगी।
भावार्थ
भावार्थ–'सोम' तो एक कोश है जिसके रक्षण से ही वास्तविक ऐश्वर्य की प्राप्ति सम्भव । इसी से जीवन में उत्साह रहता है— शक्ति उत्पन्न होती है और बुद्धि की तीव्रता होकर प्रभुदर्शन है। की योग्यता आती है ।
विषय
प्रभुवत् प्रबल व्यक्ति का प्रमुख नायक करने का उपदेश परमेश्वर का वर्णन ।
भावार्थ
जिस प्रकार ( वृष्णः ) जल सेचन करनेवाले सूर्य से उत्पन्न ( मध्वः ऊर्भिः ) जल के तरंग के समान ऊपर को उठने वाला (कोशः) गर्जता हुआ मेघ ( वृषभान्नाय ) सुखों के देने वाले अन्न की उत्पत्ति और वृद्धि के लिये और (वृषभाय) वर्षने वाले विद्युत् या श्रेष्ठ पुरुष के (पातवे) पालन करने के लिये ( पवते ) आता है, जल प्रदान करता है उसी प्रकार ( कोशः ) उपदेश करनेवाला शब्दमय और वेदमय ज्ञानकोश ब्रह्म, परमेश्वर ( वृष्णः ) सुखों और आनन्दों के वर्षक ( मध्वः ) मधुर ज्ञान की ( ऊर्मि: ) दीप्ति (वृषभान्नाय) सुखों के वर्षक प्रभु के आनन्द को अन्न के समान उपभोग करने वाले (वृषभाय) बलवान् आत्मा के (पातवे) पालन करने के लिये ( पवते ) भीतर व्यापती है । ( अध्वर्यू ) हिंसा, आत्मविनाश न चाहने वाले, अविनाशी दोनों आत्मा, या यज्ञशील स्त्री पुरुष (वृषणौ) एक दूसरे को बांधने वाले, अखण्डित तपस्वी ब्रह्मचर्य के पालक हों लोग भी पर्वतों और मेघों के समान ( वृषभासः ) बलवान्, दृढ़ और ज्ञान जलों के वर्षक हों । वे पर्वतों और मेघों के समान ( वृषणं ) बल पुष्टिकारक ( सोमं ) ओषधिरस और जल के समान ज्ञान और ऐश्वर्य को ( सुष्वति ) उत्पन्न करें और प्रदान करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १, ७ जगती । विराड् जगती ४, ५, ६, ८ निचृज्जगती च । २ भुरिक् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जसा मेघ सूर्यापासून उत्पन्न होऊन पुष्कळ अन्नाचे निमित्त बनतो व सर्व प्राण्यांना तृप्त करतो, तसे विद्वानांनी बनले पाहिजे. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Treasure clouds of liquid energy explode from the sun and radiate all round, honey streams of light and power flow from the sun, in waves, for the nourishment and maturation of the vibrant life in existence as food and drink for the mighty humanity and other living beings. Roaring clouds rain down living waters for the health and joy of the children of earth. Generous high-priests of the yajna of love and non violence press out soma and distil the exciting drink of life and ecstasy from the herbs and raise it in flaming waves of fragrance.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of the sun are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The rains are instrumental for a good crop and it is because of the sun-rays, which create sweetness in the crops as well as in the drinking water. The clouds also help to grow the SOMA and other herbal plants which make it's takers strong with its juice enabling to punish the wickeds. They do it without creating any violence, and you therefore, emulate it.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The sun creates clouds and the clouds produce plenty of crops and thus nourishes the human and other beings. A scholar should take lesson from these events.
Foot Notes
(वृष्ण:) वर्षकात् सूर्यात् । = From the sun which is creator of the rains. (कोष:) मेघ:= Clouds. (पवते) प्राप्नोति । पवत इति गति कर्मा (N.G. 2-14) – Gets. (वृषभान्नाय ) वृषभमन्नं यस्मात्तस्मै = Which creates heavy crops. (अध्वर्यू) आत्मनोऽध्वरमहिंसामिच्छुः = Not desirous of violence. (सुष्वति) सुन्वन्ति । अत्र बहुलं छन्दसीति शप: श्लुरदभ्यस्तादिति झादादेशः। = Extracts of juices.
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