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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 32/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - राका छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    यास्ते॑ राके सुम॒तयः॑ सु॒पेश॑सो॒ याभि॒र्ददा॑सि दा॒शुषे॒ वसू॑नि। ताभि॑र्नो अ॒द्य सु॒मना॑ उ॒पाग॑हि सहस्रपो॒षं सु॑भगे॒ ररा॑णा॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याः । ते॒ । रा॒के॒ । सु॒ऽम॒तयः॑ । सु॒ऽपेश॑सः । याभिः॑ । ददा॑सि । दा॒शुषे॑ । वसू॑नि । ताभिः॑ । नः॒ । अ॒द्य । सु॒ऽमनाः॑ । उ॒प॒ऽआग॑हि । स॒ह॒स्र॒ऽपो॒षम् । सु॒ऽभ॒गे॒ । ररा॑णा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यास्ते राके सुमतयः सुपेशसो याभिर्ददासि दाशुषे वसूनि। ताभिर्नो अद्य सुमना उपागहि सहस्रपोषं सुभगे रराणा॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याः। ते। राके। सुऽमतयः। सुऽपेशसः। याभिः। ददासि। दाशुषे। वसूनि। ताभिः। नः। अद्य। सुऽमनाः। उपऽआगहि। सहस्रऽपोषम्। सुऽभगे। रराणा॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 32; मन्त्र » 5
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे राके यास्ते सुपेशसः सुमतयः सन्ति याभिस्त्वं दाशुषे वसूनि ददासि ताभिर्नोऽद्य सुमनाः सती उपागहि। हे सुभगे त्वं रराणा सती नोऽस्मभ्यं सहस्रपोषं देहि ॥५॥

    पदार्थः

    (याः) (ते) तव (राके) सुखप्रदे रात्रिरिव (सुमतयः) सुष्ठुप्रज्ञाः (सुपेशसः) सुरूपा दीप्तयः (याभिः) (ददासि) (दाशुषे) दात्रेऽपत्ये (वसूनि) द्रव्याणि (ताभिः) (नः) अस्मान् (अद्य) (सुमनाः) प्रसन्नचित्ताः (उपागहि) (सहस्रपोषम्) असङ्ख्यपुष्टिम् (सुभगे) सौभाग्ययुक्ते (रराणा) सुष्ठुदात्री ॥५॥

    भावार्थः

    यदि सुलक्षणा विदुषी स्त्री श्रेष्ठविदुषो जनस्य पत्नी स्यात्तर्हि धनस्य सुखस्य च बहुविधा प्राप्तिः स्यात् ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (राके) रात्रि के समान सुख देनेवाली जो (ते) आपकी (सुपेशसः) सुन्दर रूपवाली दीप्ति और (सुमतयः) उत्तम बुद्धि हैं जिनसे आप (दाशुषे) देनेवाले पति के लिये (वसूनि) धनों को (ददासि) देती हो उनसे (नः) हमलोगों को (अद्य) आज (सुमनाः) प्रसन्नचित्त हुई (उपागहि) समीप आओ, हे (सुभगे) सौभाग्ययुक्त स्त्री (रराणा) उत्तम देनेवाली होती हुई हम लोगों के लिये (सहस्रपोषम्) असङ्ख्य प्रकार से पुष्टि को देओ ॥५॥

    भावार्थ

    यदि सुलक्षणा विदुषी स्त्री श्रेष्ठ विद्वान् जन की पत्नी हो तो धन की और सुख की बहुत प्रकार प्राप्ति हो ॥५॥

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    विषय

    सुपेशसः सुमतयः

    पदार्थ

    १. हे (राके) = पूर्णचन्द्र निशा के समान आनन्द देनेवाली पत्नी! (या:) = जो (ते) = तेरी (सुपेशसः) = उत्तम रूपों का निर्माण करनेवाली (सुमतयः) = उत्तम बुद्धियाँ हैं (याभि:) = जिनके द्वारा तू (दाशुषे) = गृहस्थी उन्नति के लिए सब कुछ देनेवाले पति के लिए (वसूनि) = सब वसुओं को घर को उत्तम बनानेवाले धनों को (ददासि) = देती है (ताभिः) = उन सुमतियों से (सुमना:) = उत्तम मनवाली तू (अद्य) = आज (नः) = हमें (उपागहि) = समीपता से प्राप्त हो । पति अपनी सारी कमाई घर की उन्नति के लिए दे डालता है सो 'दाश्वान्' है। पत्नी उस धन का बुद्धिपूर्वक प्रयोग करती हुई घर को सब वस्तुओं से पूर्ण कर देती है। २. इस प्रकार (सुभगे) = गृह के उत्तम भाग्य की कारणभूत पत्नि! तू (सहस्रपोषं रराणा) = सहस्रसंख्यावाले धन की पुष्टि को देती है, हमें प्राप्त हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- पति अपना अर्जित धन गृह- उन्नति के लिए दे । पत्नी उसका सद्व्यय करती हुई घर को सब वस्तुओं से परिपूर्ण करनेवाली हो ।

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    विषय

    राका, सिनीवाली, गुड्डू, सरस्वती नाम उत्तम महिलाओं का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( राके ) चांदनी के समान सुख देने वाली ! स्त्रि ! ( याः ) जो ( ते ) तेरी ( सुपेशसः ) उत्तम रूप वाली दीप्तियां और ( सुमतयः ) शुभ संकल्पमय मतियां हैं ( याभिः ) जिनसे तू ( दाशुषे ) सर्वस्व देने वाले पति के लिये ( वसूनि ) नाना द्रव्य और अन्नादि बसने योग्य सुख-सामग्री ( ददासि ) प्रदान करती है (ताभिः) उनसे ही ( नः ) हमें ( अद्य ) आज सदा ही ( सुमनाः ) उत्तम चित्त वाली होकर ( उप आगहि ) प्राप्त हो । हे ( सुभगे ) सुभगे ! उत्तम सेवनीय ऐश्वर्यमयि ! तू ( सहस्र-पोषं ) असंख्य समृद्धियों को ( रराणा ) देती और उनमें रमती और रमाती हुई हमें प्राप्त हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ १, द्यावापृथिव्यौ । २, ३ इन्द्रस्त्वष्टा वा । ४,५ राका । ६,७ सिनीवाली । ८ लिङ्कोत्का देवता ॥ छन्दः– १ जगती । ३ निचृज्जगती । ४,५ विराड् जगती । २ त्रिष्टुप् ६ अनुष्टुप् । ७ विराडनुष्टुप् । ८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जर श्रेष्ठ विद्वान माणसाची सुलक्षणा विदुषी स्त्री असेल तर पुष्कळ धन व सुख प्राप्त होते. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Lady of the Moon, those visions of yours, of wisdom and beauty, with which you bless the generous giver with the wealths of conjugal life, with all those today, O mistress of noble and lovely mind, harbinger of good fortune, overflowing with a thousand blessings, come close to us and bless.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of woman are further stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O woman ! you are giver of pleasure like the night and are blessed with beauty, good appearance and excellent wisdom and through it you give wealth to your donor-husband. Well delighted, you come to us and a blessed woman! you give varied nourishments.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If one has a very nice and excellent wife, then a learned person gets immense wealth and happiness.

    Foot Notes

    (राके) सुखप्रदे रात्रिरिव ।= O giver of happiness like the night. (सुमतयः ) सुष्ठुप्रज्ञाः। =Excellent wisdom. (सहस्रपोषम् ) असंख्यपुष्टिम्। = Varied nourishment. (रराणा) सुष्ठुदात्री = Giver of immense desirables.

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