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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 12/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रा॑ग्नी रोच॒ना दि॒वः परि॒ वाजे॑षु भूषथः। तद्वां॑ चेति॒ प्र वी॒र्य॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । रो॒च॒ना । दि॒वः । परि॑ । वाजे॑षु । भू॒ष॒थः॒ । तत् । वा॒म् । चे॒ति॒ । प्र । वी॒र्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राग्नी रोचना दिवः परि वाजेषु भूषथः। तद्वां चेति प्र वीर्यम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राग्नी इति। रोचना। दिवः। परि। वाजेषु। भूषथः। तत्। वाम्। चेति। प्र। वीर्यम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 9
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे सेनासेनाध्यक्षौ ! यथेन्द्राग्नी दिवो रोचना परिभूषथस्तथा वाजेषु विजयेन सेनाजना युवां परिभूषन्तु तद्वां प्रवीर्य्यञ्चेति ॥९॥

    पदार्थः

    (इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (रोचना) रोचनानि रुचिकराणि कर्माणि (दिवः) प्रकाशस्य मध्ये (परि) (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (भूषथः) अलङ्कुरुथः (तत्) (वाम्) युवयोः (चेति) संज्ञपयति (प्र) प्रकृष्टम् (वीर्य्यम्) बलं पराक्रमम् ॥९॥

    भावार्थः

    ये राजानो सेनासेनाध्यक्षान् सर्वथोत्तमान् सम्पादयन्ति तेषां सर्वदा विजय एव भवतीति ॥९॥ अत्रेन्द्राग्न्यध्यापकोपदेशकसेनासेनाध्यक्षगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इति तृतीयमण्डले द्वादशं सूक्तं प्रथमोऽनुवाको द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे सेना और सेना के स्वामी ! जैसे (इन्द्राग्नी) वायु बिजुली (दिवः) प्रकाश के मध्य में (रोचना) प्रीतिकारक कर्मों को (परि) सब ओर से (भूषथः) शोभित करते हैं वैसे (वाजेषु) संग्रामों में विजय से सेना के पुरुष आप दोनों को शोभित करें और (तत्) वह कर्म (वाम्) आप दोनों के (प्र) उत्तम (वीर्य्यम्) पराक्रम को (चेति) सम्यक् जनाता है ॥९॥

    भावार्थ

    जो राजा लोग राज्यकार्य्य में सब प्रकार से निपुण सेना और सेना के स्वामियों को अधिकार देते हैं, उनका सबकाल में विजय ही होता है ॥९॥ इस सूक्त में इन्द्र अग्नि अध्यापक उपदेशक और सेना तथा सेना के स्वामी के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्वसूक्त के अर्थ के साथ संगति है, यह जानना चाहिये ॥ यह तीसरे मण्डल में बारहवाँ सूक्त पहिला अनुवाक और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    मस्तिष्क की दीप्ति व संग्रामविजय

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्राग्नी) = शक्ति व प्रकाश के तत्त्वो! आप (दिवः रोचना) = मस्तिष्करूप द्युलोक के दीप्त करनेवाले हो । ज्ञानरूपी सूर्य से मस्तिष्करूप द्युलोक चमक उठता है। और आप (वाजेषु) = सब संग्रामों में व गतियों में (परिभूषथः) = शोभायमान होते हो अथवा शत्रुओं का पराभव करते हो [परिभवथ: सा० ] । [२] (वाम्) = आप दोनों का (तद् वीर्यम्) = वह वीर्य [शक्ति] (प्रचेति) = प्रकर्षेण ज्ञात होता है। 'शक्ति व प्रकाश के मेल में किस प्रकार मनुष्य दीप्त मस्तिष्क होता है और संग्रामों में शत्रु विजय कर पाता है' यह साधक अनुभव करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ– शक्ति व प्रकाश का समन्वय हमें दीप्तमस्तिष्क व संग्रामविजयी बनाता है । सम्पूर्ण सूक्त 'शक्ति व प्रकाश के समन्वय' का माहात्म्य व्यक्त कर रहा है, इस समन्वय को करनेवाला व्यक्ति 'ऋषभ:='श्रेष्ठ बनता है। सब का यह मित्र तो होता ही है 'वैश्वामित्र: ' । यह 'ऋषभ वैश्वामित्र' प्रार्थना करता है कि -

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    विषय

    सेनाध्यक्ष सभाध्यक्षों का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (इन्द्राग्नी) सूर्य और वायु के समान तेजस्वी बलवान् सेनाध्यक्ष और सभाध्यक्षो ! आप दोनों (दिवः) ज्ञान, प्रकाश, तेजस्विता और उत्तम कामनायुक्त व्यवहारों में (रोचना) कान्ति और तेज से युक्त सब प्रजाजन को अच्छे लगने हारे होकर (वाजेषु) संग्रामों और ऐश्वर्यों के बीच (परि भूषथः) विद्यमान रहो या पदों को सुशोभित करो। (वां) आप दोनों का (तत्) वह अद्भुत (वीर्यं) बल पराक्रम (प्र चेति) सबसे उत्तम जाना जाए और अन्यों को ज्ञान देने वाला हो। इति द्वादशो वर्गः॥ इति तृतीये मण्डले प्रथमोऽनुवाकः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः – १, ३, ५, ८, ९ निचद्वि रा गायत्री। २, ४, ६ गायत्री। ७ यवमध्या विराड् गायत्री च॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे राजे राज्यकार्यात सर्व प्रकारे निपुण सेना व सेनेच्या स्वामींना अधिकार देतात त्यांचा सर्व काळी विजय होतो. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra and Agni, you are the light and fire of heaven and you shine all round in the battles of life. And that brilliance proclaims your power and splendour.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the administrators or rulers further elaborated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O army and its commander ! as the air and electricity adorn the works with light and speed, in the same manner, let the brave soldiers decorate or bring honor to you in the battles by securing the victory. That is what shows your strength and vigor.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those rulers who have the best men and material in the army and its commanders, are always victorious.

    Translator's Notes

    (रोचना) रोचनानि रुचिकराणि कर्माणि। = Interesting or charming acts. (चेति) सज्ञपयति = Denotes.

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