ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 41/ मन्त्र 6
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
स म॑न्दस्वा॒ ह्यन्ध॑सो॒ राध॑से त॒न्वा॑ म॒हे। न स्तो॒तारं॑ नि॒दे क॑रः॥
स्वर सहित पद पाठसः । म॒न्द॒स्व॒ । हि । अन्ध॑सः । राध॑से । त॒न्वा॑ । म॒हे । न । स्तो॒तार॑म् । नि॒दे । क॒रः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स मन्दस्वा ह्यन्धसो राधसे तन्वा महे। न स्तोतारं निदे करः॥
स्वर रहित पद पाठसः। मन्दस्व। हि। अन्धसः। राधसे। तन्वा। महे। न। स्तोतारम्। निदे। करः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 41; मन्त्र » 6
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे विद्वन् ! हि यतस्त्वं स्तोतारं निदे न करस्तस्मात्स त्वं तन्वाऽन्धसो महे राधसे मन्दस्व ॥६॥
पदार्थः
(सः) (मन्दस्व) आनन्द। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (हि) यतः (अन्धसः) अन्नादेः (राधसे) संसिद्धिकराय धनाय (तन्वा) शरीरेण (महे) महते (न) निषेधे (स्तोतारम्) विद्वांसम् (निदे) निन्दनाय (करः) कुर्यात् ॥६॥
भावार्थः
ये मनुष्या स्तुत्यर्हान् निन्दितान् न कुर्वन्ति ते महदैश्वर्य्यं प्राप्य शरीरेणात्मना च सदैव सुखयन्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे विद्वान् पुरुष ! (हि) जिससे आप (स्तोतारम्) विद्वान् पुरुष की (निदे) निन्दा करने के लिये (न) नहीं (करः) करें इससे (सः) वह आप (तन्वा) शरीर से (अन्धसः) अन्न आदि की (महे) बड़ी (राधसे) सिद्धि करनेवाले धन के लिये (मन्दस्व) आनन्द करो ॥६॥
भावार्थ
जो मनुष्य स्तुति करने योग्य पुरुषों की निन्दा नहीं करते, वे बड़े ऐश्वर्य को प्राप्त होकर शरीर और आत्मा से सदा ही सुखी होते हैं ॥६॥
विषय
अनिन्दित जीवन
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! (सः) = वे आप (हि) = निश्चय से (अन्धसः) = इस हमारे द्वारा शरीर में रक्षित किए हुए सोम से (मन्दस्वा) = आनन्दित होइये । हम सोम का रक्षण करते हुए आपको प्रसन्न करनेवाले हों। एक पुत्र अपने उत्तम कार्यों से पिता को प्रसन्न करनेवाला होता है। हमारा यह सोमरक्षणात्मक कार्य आपको प्रसन्न करनेवाला हो। [२] इस सोमरक्षण के होने पर आप (राधसे) = हमारे कार्यों की सिद्धि के लिए हों। (तन्वा) = शक्तियों के विस्तार द्वारा (महे) = हमारे महत्त्व के लिये हों तथा हे प्रभो ! (स्तोतारम्) = आपका स्तवन करनेवाले मुझको (निदे न करः) = निन्दा के लिए न करिए हम निन्दा के पात्र न हों।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से [क] आनन्द की प्राप्ति होती है, [ख] कार्यों में सफलता प्राप्त होती है, [ग] शक्तियों के विस्तार से महत्त्व प्राप्त होता है और [घ] हम कभी निन्दा का विषय नहीं बनते ।
विषय
उत्तम पुरुष को नीच कार्य में लगाने का निषेध।
भावार्थ
(सः) वह तू (महे राधसे) बड़े भारी धनैश्वर्य लाभ करने और कार्य साधने के लिये तू अपने आप (अन्धसः) अन्न आदि से (मन्दस्व) तृप्ति लाभ कर। तू (स्तोतारं) उपदेशप्रद विद्वान् को (निदे न करः) निन्दा कार्य वा निन्दनीय कार्य के लिये मत कर, उसे उसमें मत लगा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ यवमध्या गायत्री। २, ३, ५,९ गायत्री । ४, ७, ८ निचृद्गायत्री। ६ विराड्गायत्री। षड्जः स्वरः॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे स्तुती करण्यायोग्य पुरुषाची निंदा करीत नाहीत ती ऐश्वर्य प्राप्त करून शरीर व आत्मा यांनी सदैव सुखी होतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord lover of soma and commander of power, rejoice at heart with your whole personality for the realisation of food, energy and wealth of life. Let not your devotee and celebrant face an occasion of embarrassment, blame, insult or contempt.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of Agni is further elaborated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person! you do not reproach a devotee of God and enlightened man. Therefore with your physical let us force, labor for the attainment of great wealth that accomplishes good food and other necessities of life.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
These persons who do not reproach praise-worthy good persons, attain much wealth and make all happy physically or spiritually.
Foot Notes
(अन्धसः) अन्नादेः। = Of food grains and other things. (राधसे) संसिद्धिकराय धनाय राध इति धननाम (NG 2, 10) = For the wealth with which many works are accomplished.
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