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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 54/ मन्त्र 5
    ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - स्वराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    को अ॒द्धा वे॑द॒ क इ॒ह प्र वो॑चद्दे॒वाँ अच्छा॑ प॒थ्या॒३॒॑ का समे॑ति। ददृ॑श्र एषामव॒मा सदां॑सि॒ परे॑षु॒ या गुह्ये॑षु व्र॒तेषु॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । अ॒द्धा । वे॒द॒ । कः । इ॒ह । प्र । वो॒च॒त् । दे॒वान् । अच्छ॑ । प॒थ्या॑ । का । सम् । ए॒ति॒ । ददृ॑श्रे । ए॒षा॒म् । अ॒व॒मा । सदां॑सि । परे॑षु । या । गुह्ये॑षु । व्र॒तेषु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को अद्धा वेद क इह प्र वोचद्देवाँ अच्छा पथ्या३ का समेति। ददृश्र एषामवमा सदांसि परेषु या गुह्येषु व्रतेषु॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः। अद्धा। वेद। कः। इह। प्र। वोचत्। देवान्। अच्छ। पथ्या। का। सम्। एति। ददृश्रे। एषाम्। अवमा। सदांसि। परेषु। या। गुह्येषु। व्रतेषु॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 54; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या इह परमात्मानं धर्मञ्चाद्धा को वेद को देवानच्छ प्र वोचत्का पथ्या देवान्त्समेति य एषां परेष्ववमा सदांसि गुह्येषु व्रतेषु या ज्ञानसत्यभाषणादीनि ददृश्रे ते पूर्वोक्तं सर्वं विजानीयुः ॥५॥

    पदार्थः

    (कः) (अद्धा) साक्षात् (वेद) जानीयात् (कः) (इह) अस्मिन् विज्ञाने (प्र) (वोचत्) उपदिशेत् (देवान्) विदुषः (अच्छ) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (पथ्या) पथोऽनपेता (का) (सम्) (एति) प्राप्नोति (ददृश्रे) पश्येयुः (एषाम्) (अवमा) अर्वाचीनानि (सदांसि) वस्तूनि (परेषु) सूक्ष्मेषु (या) यानि (गुह्येषु) गुप्तेषु रक्षितव्येषु (व्रतेषु) सत्यभाषणादिनियमेषु ॥५॥

    भावार्थः

    अस्मिञ्जगति विरल एव मनुष्यो भवति यः परमात्मानं विदित्वा तदाज्ञानुकूलमाचरणं स्वीकृत्य सत्यमुपदिशति कश्चिदेव विद्वान् योऽत्र पराऽवरज्ञः स्यात् ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (इह) इस विज्ञान में परमात्मा और धर्म को (अद्धा) साक्षात् (कः) कौन (वेद) जाने और (कः) कौन पुरुष (देवान्) विद्वानों को (अच्छ) उत्तम प्रकार (प्र, वोचत्) उपदेश देवे (का) कौन (पथ्या) उत्तम मार्ग से युक्त (देवान्) विद्वानों को (सम्, एति) प्राप्त होती है और (एषाम्) इन विद्वानों के (परेषु) सूक्ष्मों को (अवमा) नीचे भाग में वर्त्तमान (सदांसि) वस्तुएँ (गुह्येषु) गुप्त अर्थात् रक्षा करने योग्य (व्रतेषु) सत्यभाषण आदि नियमों में (या) जो ज्ञान और सत्यभाषण आदिकों को (ददृश्रे) देखें, वे पूर्वोक्त सम्पूर्ण को जानें ॥५॥

    भावार्थ

    इस संसार में विरला ही ऐसा मनुष्य होता है कि जो परमात्मा को जान और उसकी आज्ञा के अनुकूल आचरण स्वीकार करके सत्य का उपदेश देता है, ऐसा कोई विद्वान् जो इस संसार में इस लोक और परलोक का ज्ञाता होवे ॥५॥

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    विषय

    देवमार्ग की दुर्विज्ञानता

    पदार्थ

    [१] (देवाँ अच्छा) = दिव्यगुणों की ओर (का पथ्या) = कौन-सा मार्ग (समेति) = जाता है ? इस बात को (कः) = वे आनन्दमय प्रभु ही (अद्धा) = साक्षात्रूपेण (वेद) = जानते हैं और (इह) = यहाँ (कः) = वे आनन्दमय प्रभु ही (प्रवोचत् =) वेदज्ञान द्वारा उस मार्ग का प्रवचन करते हैं। वेद द्वारा ही सत्यमार्ग का ज्ञान होता है । [२] (परेषु) = उत्कृष्ट (गुह्येषु) रहस्यमय (व्रतेषु) = व्रतों में (या) = जो (अवमा) = [अवम-protector] रक्षक (सदांसि) = स्थितियां हैं वे (एषां ददृश्रे) = इन देवों के जीवनों में दिखती हैं। दिव्यगुणों को धारण करनेवाले पुरुषों के जीवनों में उनके व्यवहारों को देखकर हम अपने कर्त्तव्यों को जान पाते हैं। उनके अनुसार चलते हुए हम भी उन मार्गों पर ही चल रहे होते हैं, जो कि अन्ततः हमें देव बनानेवाले होते हैं। उनका अनुसरण करते हुए हम भी गुह्य व्रतों में पहुँच जाते हैं। ये व्रत हमें सब प्रकार की वासनाओं का शिकार होने से बचाते हैं और अन्ततः प्रभु को प्राप्त कराते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु ने वेद में देवयान (देवमार्ग) का प्रतिपादन किया है। देववृत्ति के व्यक्तियों के जीवन में हम इन गुह्य व्रतों की झलक देख पाते हैं। एवं श्रुति व सदाचार धर्मज्ञान के उत्तम साधन हैं।

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    विषय

    (उत्तम) ज्ञान के वक्ता दुर्लभ हैं।

    भावार्थ

    (इह) इस संसार में (अद्धात्) साक्षात् सत्य, यथार्थ (कः वेद) कौन जानता है और (कः) कौन (देवान्) विद्वान् और ज्ञान कामना करने वाले शिष्यों को (प्र वोचत्) प्रवचन द्वारा उपदेश करता है। (का) कौनसा (पथ्या) सन्मार्ग (सम् एति) भली प्रकार उद्देश्य तक पहुंचता है। ज्ञाता, प्रवक्ता और सन्मार्ग सभी दुर्लभ हैं। (परेषां) पर, सर्वोत्कृष्ट परम सूक्ष्म (गुह्येषु) गुहा अर्थात् बुद्धि द्वारा जानने योग्य गूढ़ (व्रतेषु) कर्मों में (या) जो (अवमा) अन्तिम चरम आधारभूत (सदांसि) आश्रय-स्थान, शरण, विद्यास्थान वा शास्त्रसिद्धान्त हैं वे (एषाम्) इन विद्वानों को ही (दह) दिखाई देते हैं। इति चतुर्विंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्दः– १ निचृत्पंक्तिः। भुरिक् पंक्तिः। १२ स्वराट् पंक्तिः । २, ३, ६, ८, १०, ११, १३, १४ त्रिष्टुप्। ४, ७, १५, १६, १८, २०, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । ५ स्वराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। १९, २२ विराट्त्रिष्टुप्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या जगात एखादाच माणूस असतो जो परमेश्वराला जाणून त्याच्या आज्ञेनुसार आचरण करून सत्याचा उपदेश देतो. असा एखादाच विद्वान असतो जो या जगात लोक व परलोकाचा ज्ञाता असतो. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who knows here for certain, who can say, which path for sure leads to the lights of the Divine? (He knows.) Who can divine into the secret laws of the farthest mysteries? Who actually see even the nearest and closest operations of these? (He.)

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties and attributes of a learned person are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! tell me who knows truly the nature of God and Dharma? Who is in a position to tell learned persons about it thoroughly? Which is the path that leads to the divine virtues? The answers are-it is only those who see the gross substances in the world having their root in the subtle causes and avowedly seek knowledge and truthfulness. The others which are to be always protected, are those know these things and factors well.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There are few people in this world who know God, who act according to His commandments and preaches truth. There are few learned persons who know all the gross and subtle objects and their causes.

    Foot Notes

    (अद्धा ) साक्षात् । अद्धा इति सत्यनाम (NG 3, 10) एतत् खलु वैवतस्य रूपं यत्सत्यम् ( Stph. 12,8,2,4)) = Truly, Directly.(सदांसि ) वस्तूनि । = Things, objects. (व्रतेषु) सत्यभाषणादिनियमेषु। = In the laws or vows of knowledge, truth and others.

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