ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 34/ मन्त्र 2
वि॒दा॒नासो॒ जन्म॑नो वाजरत्ना उ॒त ऋ॒तुभि॑र्ऋभवो मादयध्वम्। सं वो॒ मदा॒ अग्म॑त॒ सं पुरं॑धिः सु॒वीरा॑म॒स्मे र॒यिमेर॑यध्वम् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठवि॒दा॒नासः॑ । जन्म॑नः । वा॒ज॒ऽर॒त्नाः॒ । उ॒त । ऋ॒तुऽभिः॑ । ऋ॒भ॒वः॒ । मा॒द॒य॒ध्व॒म् । सम् । वः॒ । मदाः॑ । अग्म॑त । सम् । पुर॑म्ऽधिः । सु॒ऽवीरा॑म् । अ॒स्मे इति॑ । र॒यिम् । आ । ई॒र॒य॒ध्व॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
विदानासो जन्मनो वाजरत्ना उत ऋतुभिर्ऋभवो मादयध्वम्। सं वो मदा अग्मत सं पुरंधिः सुवीरामस्मे रयिमेरयध्वम् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठविदानासः। जन्मनः। वाजऽरत्नाः। उत। ऋतुऽभिः। ऋभवः। मादयध्वम्। सम्। वः। मदाः। अग्मत। सम्। पुरम्ऽधिः। सुऽवीराम्। अस्मे इति। रयिम्। आ। ईरयध्वम् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 34; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे वाजरत्ना ऋभवो ! यूयं जन्मनो विदानासस्सन्त ऋभुभिः सह मादयध्वं यतो वो मदाः समग्मतोत पुरन्धिः प्राप्नोतु। अस्मे सुवीरां रयिं च समेरयध्वम् ॥२॥
पदार्थः
(विदानासः) ज्ञानवन्तो विद्याग्रहणाय कृतप्रतिज्ञाः (जन्मनः) (वाजरत्नाः) विज्ञानादीनि रत्नादीनि येषान्ते (उत) अपि (ऋतुभिः) मेधाविभिः सह (ऋभवः) मेधाविनः (मादयध्वम्) आनन्दयत (सम्) (वः) युष्मान् (मदाः) आनन्दाः (अग्मत) प्राप्नुवन्तु (सम्) (पुरन्धिः) पुरां धारको राज्यभावः (सुवीराम्) शोभना वीरा यस्यां सेनायां ताम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (रयिम्) श्रियम् (आ) समन्तात् (ईरयध्वम्) प्रापयतम् ॥२॥
भावार्थः
ये द्वितीये विद्याजन्मनि प्राप्तविद्यायौवना भवन्ति ते विद्वांसो भूत्वा विद्वत्सु मैत्रीमाचरन्तोऽविदुषां कल्याणाय प्रयतन्ते ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वाजरत्नाः) विज्ञान आदि रत्नों से युक्त (ऋभवः) बुद्धिमानो ! आप लोग (जन्मनः) जन्म से (विदानासः) ज्ञानवान् और विद्या ग्रहण के लिये प्रतिज्ञा करनेवाले हुए (ऋतुभिः) बुद्धिमानों के साथ (मादयध्वम्) आनन्द कराओ जिससे (वः) आप लोगों को (मदाः) आनन्द (सम्) उत्तम प्रकार (अग्मत) प्राप्त हों (उत) और (पुरन्धिः) नगरों का धारण करनेवाला राज्य प्राप्त हो तथा (अस्मे) हम लोगों के लिये (सुवीराम्) सुन्दर वीरों से युक्त सेना और (रयिम्) लक्ष्मी को (सम्, आ, ईरयध्वम्) सब प्रकार से प्राप्त कराओ ॥२॥
भावार्थ
जो दूसरे विद्यारूप जन्म के होने पर प्राप्त विद्यारूप यौवनावस्थायुक्त होते हैं, वे विद्वान् होकर विद्वानों में मित्रता करते हैं और अविद्वानों के कल्याण के लिये प्रयत्न करते हैं ॥२॥
विषय
ऋभुओं का लक्षण
पदार्थ
[१] हे ऋभुओ ! (विदानास:) = तुम ज्ञान को प्राप्त करने के स्वभाववाले होते हो। (जन्मन:) = [जनी प्रादुर्भावे] शक्तियों के विकास द्वारा (वाजरत्नाः) = बल व त्याग [वाज = strength, sacrifice] से रमणीय जीवनवाले हो । (उत) = और तुम (ऋतुभिः) = ऋतुओं के अनुसार नियमित गतियों से (मादयध्वम्) = आनन्द का अनुभव करो। [२] (व:) = तुम्हें (मदाः) = आनन्द व उल्लास (सं अग्मत) = संगत हों प्राप्त हों। (पुरन्धिः) = पालक व पूरक बुद्धि (सं) = [अग्मत ] प्राप्त हो । प्रभु कहते हैं कि (अस्मे) = हमारी (सुवीरां रयिम्) = उत्कृष्ट वीरता से युक्त सम्पत्ति को (एरयध्वम्) = अपने अन्दर प्रेरित करो ।
भावार्थ
भावार्थ - ऋभु [क] ज्ञान की रुचिवाले होते हैं, [ख] बल व त्याग से जीवन को रमणीय बनाते हैं, [ग] नियमित गतिवाले होते हैं, [घ] सदा 'प्रसन्नता, पालक बुद्धि व वीरतायुक्त धन' को प्राप्त करते हैं। ।
विषय
विद्वानों और शिल्पज्ञों के कर्त्तव्य
भावार्थ
हे (ऋभवः) सत्य ज्ञान से चमकने वाले विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (जन्मनः) जन्म से (विदानासः) ज्ञान लाभ करते हुए (उत) और (वाजरत्नाः) बल, ज्ञान, ऐश्वर्यादि के ‘रत्न’ अर्थात् रमण करने योग्य उत्तम सुख प्राप्त करते हुए (ऋतुभिः) ज्ञानवान् पुरुषों सहित वा (ऋतुभिः) वसन्तादि ऋतुओं के अनुसार (मादयध्वम्) स्वयं और अन्यों को भी प्रसन्न करो । (वः मदाः सम् अग्मत) आप लोगों को सब प्रकार के हर्षकर ऐश्वर्य प्राप्त हों और (वः पुरंधिः) आप लोगों को पुरादि धारण करने वाला राजा, वा गृहादि धारण करने वाली स्त्री प्राप्त हो । आप लोग (अस्मे) हमें (सुवीराम रयिम्) उत्तम वीरों और पुत्रों से युक्त ऐश्वर्य को (आ ईरयध्वम्) सब प्रकारों से प्राप्त कराओ ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः– १ विराट् त्रिष्टुप् । २ भुरिक् त्रिष्टुप । ४, ६, ७, ८, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । १० त्रिष्टुप् । ३,११ स्वराट् पंक्तिः । ५ भुरिक् पंक्तिः ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे द्वितीय विद्यारूपी जन्म प्राप्त करून विद्यारूपी तारुण्य प्राप्त करतात, ते विद्वान बनून विद्वानांशी मैत्री करतात व अविद्वानांच्या कल्याणासाठी प्रयत्न करतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Rbhus, blest from your very birth with the love of knowledge, commanding knowledge and the power of knowledge, work and rejoice with the scholars according to the seasons. May the peace and pleasure of life reach you, may divine intelligence and the ruling powers of the world with munificence bless you. And may you, for our sake, arouse the wealth of the nations, brave citizens and the coming generations.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of genius person is elaborated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O genius persons ! you are equipped with scientific knowledge and other qualities. Since you were born, you have been delighting the knowledgeable and wise man, who are devoted to attain learning. This will provide you great delight and the kingdom of various cities and towns. We also seek your guidance in order to have a well-disciplined army of brave soldiers and prosperity, too.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who secure knowledge in their childhood and thereafter become young and fully learned, they later on establish friendship with the learned persons. They also do their best for the welfare of less fortunate, i.e., illiterates and under-privileged.
Foot Notes
(विदानासः ) ज्ञानवन्तो विद्याग्रहणाय कृतप्रतिज्ञा: । = The learned persons who are devoted to secure learning. (वाजरत्नाः) विज्ञानादीनि रत्नादीनि येषान्ते । = Those who are equipped with the scientific knowledge and other qualities. (मादयध्वम्) आनन्दयत । = Give delight. (पुरन्धिः) पुरां धारको राज्यभाव: = The kingdom of various cities and towns. (सुवीराम्) शोभना वीरा यस्यां सेनायां ताम् । = The army formations, comprising the brilliant and brave persons. (ईरयध्वम् ) प्राप्पयतम् । =Secure well.
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