ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 45/ मन्त्र 3
मध्वः॑ पिबतं मधु॒पेभि॑रा॒सभि॑रु॒त प्रि॒यं मधु॑ने युञ्जाथां॒ रथ॑म्। आ व॑र्त॒निं मधु॑ना जिन्वथस्प॒थो दृतिं॑ वहेथे॒ मधु॑मन्तमश्विना ॥३॥
स्वर सहित पद पाठमध्वः॑ । पि॒ब॒त॒म् । म॒धु॒ऽपेभिः॑ । आ॒सऽभिः॑ । उ॒त । प्रि॒यम् । मधु॑ने । यु॒ञ्जा॒था॒म् । रथ॑म् । आ । व॒र॒निम् । मधु॑ना । जि॒न्व॒थः॒ । प॒थः । दृति॑म् । व॒हे॒थे॒ इति॑ । मधु॑ऽमन्तम् । अ॒श्वि॒ना॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मध्वः पिबतं मधुपेभिरासभिरुत प्रियं मधुने युञ्जाथां रथम्। आ वर्तनिं मधुना जिन्वथस्पथो दृतिं वहेथे मधुमन्तमश्विना ॥३॥
स्वर रहित पद पाठमध्वः। पिबतम्। मधुऽपेभिः। आसऽभिः। उत। प्रियम्। मधुने। युञ्जाथाम्। रथम्। आ। वर्तनिम्। मधुना। जिन्वथः। पथः। दृतिम्। वहेथे इति। मधुऽमन्तम्। अश्विना ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 45; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे अश्विना ! युवां मधुपेभिर्वीरैः सहासभिर्मध्वः प्रियं रसं पिबतमुत मधुने रथं युञ्जाथां मधुना वर्त्तनिमा जिन्वथः पथो जिन्वथो मधुमन्तं दृतिं सूर्य्यवायू वहेथे तथेमं वहेथाम् ॥३॥
पदार्थः
(मध्वः) मधुरादिगुणयुक्तस्य (पिबतम्) (मधुपेभिः) ये मधुरान् रसान् पिबन्ति तैः सह (आसभिः) आस्यैर्मुखैः (उत) अपि (प्रियम्) कमनीयम् (मधुने) विज्ञाताय मार्गाय (युञ्जाथाम्) (रथम्) विमानादियानम् (आ) (वर्त्तनिम्) वर्त्तन्ते यस्मिँस्तं मार्गम् (मधुना) माधुर्य्यगुणोपेतेन (जिन्वथः) गच्छथः (पथः) मार्गान् (दृतिम्) दृतिमिव वर्त्तमानं मेघम् (वहेथे) प्रापयेताम्। अत्र पुरुषव्यत्ययः। (मधुमन्तम्) मधुरादिगुणयुक्तम् (अश्विना) सेनेशयोद्धारौ ॥३॥
भावार्थः
हे सेनेशयोद्धारो ! यूयं सेनास्थवीरैः सहेदृशानि भोजनानि कुरुत यानानि रचयत यैर्बलवृद्धिः श्रीप्राप्तिश्च स्याद्यथा वायुविद्युतौ वृष्टिं कृत्वा सर्वान् सुखयतस्तथा प्रजाः सुखयथ ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अश्विना) सेना के ईश और योद्धा जन आप दोनों (मधुपेभिः) मधुर रसों को पीनेवाले वीर पुरुषों के साथ (आसभिः) मुखों से (मध्वः) मधुर आदि गुण से युक्त पदार्थ के (प्रियम्) मनोहर रस को (पिबतम्) पिओ (उत) और (मधुने) जाने गये मार्ग के लिये (रथम्) विमान आदि वाहन को (युञ्जाथाम्) युक्त करो तथा (मधुना) मधुरता गुण युक्त पदार्थ से (वर्त्तनिम्) जिसमें वर्त्तमान होते उस मार्ग को (आ, जिन्वथः) सब प्रकार प्राप्त होते हो और अन्य (पथः) मार्गों को प्राप्त होते हो और जैसे (मधुमन्तम्) मधुर आदि गुणों से युक्त (दृतिम्) जल के चर्मपात्र के सदृश वर्त्तमान मेघ को सूर्य्य और वायु (वहेथे) धारण करते हैं, वैसे इस व्यवहार को धारण करो ॥३॥
भावार्थ
हे सेना के ईश और योद्धाजनो ! तुम सेनास्थ वीरों के साथ ऐसे भोजन करो और वाहनों को रचो, जिनसे बल की वृद्धि और लक्ष्मी की प्राप्ति हो, जैसे वायु और बिजुली वर्षा करके सबको सुखी करते हैं, वैसे प्रजा को सुखी करो ॥३॥
विषय
मधुमान् रथ
पदार्थ
[१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! आप (मधुपेभिः आसभिः) = सोम [वीर्य] रूप मधु का पान करनेवाले मुखों द्वारा (मध्वः पिबतम्) = मधु का [सोम का] पान करो। प्राणायाम के होने पर सोम की शरीर में ऊर्ध्वगति होती है उस समय सब इन्द्रियाँ इस सोम का पान करनेवाली बन जाती हैं। ये इन्द्रियाँ मानो प्राणापान की मुख बनती हैं, इनके द्वारा वे सोम का पान करते हैं। (उत) = और इस (प्रियं रथम्) = प्रीति से युक्त [प्रसन्न] शरीर-रथ को मधुने इस सोमरूप मधु की प्राप्ति के लिए (युञ्जाथाम्) = निरन्तर कार्य में लगाए रखो। इस में घोड़े जुते ही रहें यह सदा मार्ग पर आगे और आगे बढ़ता ही रहे । [२] हे प्राणापानो! आप (वर्तनिम्) = इस शरीरूप गृह को तथा (पथ:) = जीवनमार्गों को मधुना सोमरूप मधु से (आ जिन्वथः) = सर्वथा प्रीणित करनेवाले होओ। आप (मधुमन्तम्) = सोमरूप मधु से परिपूर्ण (दृतिम्) = इस शरीरूप चर्मपात्र को वहेथे धारण करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ– प्राणसाधना से सोमरूप मधु शरीर में ही सुरक्षित रहता है। इससे सारा जीवन मधुर बन जाता है।
विषय
गृहस्थ स्त्री पुरुषों का कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे (अश्विना) अश्वों, इन्द्रियों के स्वामी, जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! आप दोनों (मधुपेभिः आसभिः) अन्न, जल को पान करने के अभ्यासी मुखों से (मध्वः) नाना मधुर जल और अन्नों का ही (पिबतम्) पान करो। इसी प्रकार (मधुपेभिः आसभिः) मधुर, सत्य ज्ञान को प्राप्त करने वाले (आसभिः) मुखों अर्थात् कान, आंख, नाक आदि ज्ञान-ग्रहणशील द्वारों से (मधु) ज्ञान को प्राप्त करो । (उत) और (मधुने) अन्न के प्राप्त करने के लिये जिस प्रकार रथ, गाड़ी आदि जोड़ी जाती है उसी प्रकार (मधुने) सत्य ज्ञान को प्राप्त करने के लिये (प्रियं रथम्) अति प्रिय, रसस्वरूप और परम रमणीय आत्मा को योग द्वारा समाहित वा परस्पर प्रेमवश मिलाये रक्खो । और (मधुना) जल और अन्न से जिस प्रकार (पथः वर्तनिं आजिन्वथः) मार्ग को तैयार कर लिया जाता है, उसी प्रकार (मधुना) वेद ज्ञान से (पथः) संसार मार्ग में (आ वर्तनिं) वार २ के आवागमन को (जिन्वथः) वश करो । जिस प्रकार यात्रा में (अश्विनौ) रथ पर स्थित स्वामी स्वामिनी वा स्वामी-सारथी दोनों (मधुमन्तं दृतिं वहेथे) अन्न वा जल से भरे पात्रों को रखते हैं जिससे मार्ग के भूख प्यास की निवृत्ति होती है उसी प्रकार विद्वान् जितेन्द्रिय स्त्री पुरुष (मधुमन्तं) उत्तम ज्ञान से युक्त (इतिम्) सब संकटों और संशयों के काटने वाले शास्त्र वेद का (वहेथे) धारण किया करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः- १, ३, ४ जगती। ५ निचृज्जगती । ६ विराड् जगती । २ भुरिक् त्रिष्टुप । ७ निचृत्त्रिष्टुप । सप्तर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे सेनापती व योद्धेजन हो ! तुम्ही सेनेतील वीरांबरोबर असे भोजन करा व वाहने निर्माण करा, ज्यामुळे बलाची वृद्धी व लक्ष्मी प्राप्त व्हावी. जसे वायू व विद्युत वृष्टी करून सर्वांना सुखी करतात तसे प्रजेला सुखी करा. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, drink the sweets with lips addicted to the taste of honey. Start the chariot to reach the dear sweets of life. Take to the high road on the way home by the chariot bearing the sweets of success as the sun and wind bear the cloud of showers.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of attributes of the solar energy is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Commander-in- Chief of the army and warriors! drink the sweet and tasteful Soma juice in the company of soldiers, who are fond of this sweet soma. Get ready your aircraft like vehicles for the paths of journey known to you, thereby reaching your destination sweetly (easily). As the sun and air carry the cloud, so you should carry this sweet juice of Soma etc. far and near.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O Commander-in-chief of the army and warriors ! take your meals along with the other soldiers of the army and manufacture such vehicles by which you may increase your mobility strength and wealth. As the wind and lighting gladden all by raining, so you should make all subjects happy.
Foot Notes
(अश्विना ) सेनेशयोद्धारो |= The Commander of the army and warriors. (मधुने ) विज्ञाताय मार्गाय । = For the known paths.
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